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Ramayani Sadhna Satsang Bhag 17
परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1141))
*रामायणी साधना सत्संग*
*अयोध्या कांड भाग -१७*
*परम पूजनीय श्री प्रेम जी महाराज जी के ""अवतरण दिवस की पूर्व संध्या पर श्री महाराज जी द्वारा दिशा निर्देश*
देवियो एवं सज्जनो कोटिशय प्रणाम है ।
आप सब के श्री चरणों में नत शिर वंदना । कल 2 अक्टूबर है । पूज्य गुरुदेव श्री प्रेम जी महाराज का जन्म दिवस । उनके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाएंगे कल प्रातः नाश्ते के तुरंत बाद । जैसे ही आप नाश्ता करें, तत्काल हॉल में आ जाइएगा । महाराज श्री के श्री चरणों में पंखुड़ियां पुष्पों की अर्पित की जाएंगी । पंक्तियां बन जाएंगीं। एक-एक पंक्ति से आते जाएंगे सब लोग। सब साधक, बाहर से लोग भी आएंगे ।
फूल इत्यादि लाने की आपको आवश्यकता नहीं । यहीं से गोविंद राम जी प्रबंध कर देते हैं । हो गया हुआ होगा प्रबंध । इस प्रकार से, दोनों हाथ इस प्रकार से कर कर पंखुड़ियां लीजिएगा, और महाराज के श्री चरणों में अर्पित कर दीजिएगा । ऐसे करने की आवश्यकता नहीं, बहुत आगे उनके चरणों पर ऐसे रखने की आवश्यकता नहीं । आप जहां भी रखेंगें, मुझे पूर्ण आशा है महाराज श्री स्वीकार करेंगे ।
आप मेहरबानी करके बिल्कुल बड़ी श्रद्धा पूर्वक, श्रद्धा सुमन मात्र फूल नहीं है, यह पंखुड़ियां नहीं है, श्रद्धा से ओतप्रोत आपका अपना सुंदर मन सुमन, वह अर्पित कीजिएगा महाराज के श्री चरणों में । कोशिश की जाए की 9:00 बजे तक यह कार्यक्रम समाप्त हो जाए । महाराज श्री के श्री चरणों में चढ़े हुए फूल प्रसाद के रूप में आपको दे भी दिए जाएंगें, और यदि आप बहुत देर नहीं लगाएंगे तो उस वक्त आपको एक-एक 108 मनके की माला भी दे दी जाएगी । यदि आप देर ना लगाएं तो । यदि आप देर लगाते रहे तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी ।
9:00 बजे तक कार्यक्रम की समाप्ति होनी ही है ।
9:30 बजे तो श्री रामायण जी का पाठ आरंभ होगा । पूर्ण आशा है आप सब सहयोग देंगे ।
“सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः” का पाठ चलता रहेगा, और इसी पाठ के साथ हम महाराज के श्री चरणों में पुष्प अर्पित करेंगे । धन्यवाद ।
रामायण जी की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए, मंथरा को थोड़ा और समझ ले । भले ही यह ताड़का या मंथरा हमें बाहर तो दिखाई नहीं देती पर हमारे भीतर तो विराजमान है यह। और भीतर हम देखते नहीं, बाहर तो दिखाई देता है । आंखें बाहर की ओर देख सकती हैं, भीतर की ओर देखती नहीं । पर अनुभव तो यह कहता है, स्पष्ट दर्शाता है, इस वक्त ताटिका काम कर रही है भीतर, शूर्पणखा काम कर रही है, या मंथरा ।
दो टूटे हुए को जो जोड़ दे, वह तो है राम;
जो दूरी-देरी को मिटा दे, वह है राम;
जो जुड़े हुओ को तोड़ दे, वह है मंथरा;
जोड़ को तोड़फोड़ कर रख दे, वह मंथरा है।
*महर्षि वशिष्ठ*
वही है महर्षि वशिष्ठ जिन्होंने योग वशिष्ठ की रचना करी है, वही है महर्षि वशिष्ठ जिन्होंने राम जैसे शिष्य को शिक्षा दी है ।
छोटी मोटी हस्ती तो नहीं । अनेक प्रकार के वार्तालाप चलते होंगें, चर्चा चलती होगी । बहुत ज्ञान गोष्ठी इत्यादि होती होगी । राम भी बैठते हैं, मंथरा भी बैठती है, कैकई भी बैठती है, कथा सुनने के लिए ।
एक पौराणिक कथा है ।
कश्यप जी महाराज की दो पत्नियां है ।
कदरु और विनता । विनता बहुत सरल स्वभाव की है, बहुत सुशील है, नेक है । किसी प्रकार का द्वेष, वैर इत्यादि उसके अंदर नहीं है ।
कदरु बिल्कुल विपरीत है । सौत है इसलिए हर वक्त दृष्टि कुदृष्टि रहती है कदरु की, विनता की नहीं ।
बदकिस्मती है कश्यप की । दो, दो है तो कदरु जो है हर वक्त इस प्रकार की दृष्टि उस पर रखती है, किसी ना किसी ढंग से इस को नीचा दिखाया जाए, किसी ना किसी ढंग से उसको तंग किया जाए, परेशान किया जाए, ईर्ष्या की भावना के कारण ।
ईर्ष्या आ गई है ।
एकदा सूर्यदेव का रथ आया है । देखा दोनों ने सफेद घोड़े हैं । सफेद ही पूंछ है ।
कदरु कहती है- नहीं, इसकी पूंछ काली है । विनता कहती है- नहीं सफेद घोड़े हैं, श्वेत घोड़े हैं, तो इनकी पूंछ भी सफेद ही है । कदरु कहती है नहीं, सफेद नहीं काली है ।
सर्पों की मां है यह कदरु । पौराणिक कथाएं हैं । इसी प्रकार की है । सर्पों की मां है ।
काले जितने सांप थे सबको बुला लिया । शर्त रख दी । पास जा कर देख लेना, यदि पूंछ काली हुई तो जिंदगी भर तू मेरी दासता करेगी । यह कदरु की चाल है ।
और यदि सफेद हुई, शर्त रख दी आपस में काली दिखाई देगी ।
मैं कहती हूं काली है, तू कहती है सफेद है। यदि काली निकली तो जिंदगी भर तू मेरी दासता करेगी । विनता बेचारी मान जाती है। ठीक है । उसे सत्य बिल्कुल ठीक दिखाई दे रहा है । सूर्य के रथ के जो घोड़े हैं उनकी पूंछ सफेद है, काली नहीं है ।
यह सर्पों की मां है । सारे काले सर्पों को बुलाकर हुक्म देती है, सारी पूंछो को इस प्रकार से लपेट दो की पूंछ काली दिखाई दे। और विनता को कहती है-
आ मेरे साथ आकर देख पूंछ सफेद है या काली ? सारे के सारे जितने घोड़े हैं उनकी पूछें काली दिखाई दे रही हैं । विनता जिंदगी भर दास, नौकरानी, सेविका बनकर व्यतीत करती है । कदरु का षड्यंत्र है यह, उसकी चाल है, उसकी कूटनीति है, यह दुष्टा है ।
विनता के ही पेट से कालांतर में गरुड़ देव का जन्म होता है, जो सांपो को खाता है । अपनी मां का बदला लेने के लिए, प्रतिकार के लिए । इन्होंने मेरी मां के साथ अन्याय किया है, अत्याचार किया है, दासता दी है, सेविका बन कर रही है वह कदरु की,
जो इस के योग्य नहीं है । उसका बदला लेने के लिए वह सर्पों को खाते हैं । खाते रहते हैं। गरुड़ जी महाराज का यह काम है, वह सर्पों को खाते रहते हैं । जानते हो ऐसी कथाएं, जहां सौत है, यह कथाएं चुन चुन कर तो मंथरा कैकई को सुनाती है ।
मंथरा कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं । आप तो जानती ही हो ना माताओं, किसी महिला को यदि आपने अपने पति के विरुद्ध करना है, तो किसी दूसरी की बात कर दो । है ना यह बात । ठीक ऐसे ही होता है ना । किसी दूसरी की बीच में लाकर चर्चा कर दो, बससस बात बन गई ।
यही बात बार-बार मंथरा कैकई को याद दिला रही है ।
अरी कौशल्या सौत है तेरी,
तू तो बड़ी सरल है विनता की तरह, कदरु की तरह cunning नहीं कहती । तू तो बड़ी सरल है विनता की तरह । देख तेरी दुर्दशा भी ऐसी ही, जैसी विनता की हुई थी ।
वह कौशल्या तो कदरु है । तू तो बड़ी सरल है । कैकई अपनी प्रशंसा सुनकर,
भक्तजनों यह प्रकृति है ना, परिस्थिति है ना। यह हमारी कमजोरियों को भलीभांति जानती है । जहां-जहां आपकी जो जो कमजोरी है, उस कमजोरी का वह परिस्थिति लाभ लेती है । कैकई हम सब की तरह अपनी प्रशंसा की बड़ी भूखी है ।
आज मंथरा ने उसे विनता के तुल्य बता दिया । मानो प्रशंसा का पुल बांध दिया, तो वह राजी हो गई । मंथरा जैसे तू कहती है, वैसा ही होगा । अपनी प्रशंसा सुनकर तो अति प्रसन्न हो गई है । ऐसी कथाएं चुन-चुन कर सुनाती है । ताकि पति को नहीं कहती है कि वह गलत है, यह कौशल्या का पढ़ाया हुआ है, इसलिए वह ऐसा कर रहा है ।
दूसरी महिला की यह बात किसी एक महिला के लिए सुननी अति कठिन, यह नहीं सुनी जाती । इसलिए दशरथ की बात वह जानती है, इस बात को इसलिए नहीं करती, वह कौशल्या की बात करती है । उसका पढ़ाया हुआ है यह । यह तो तेरी मुट्ठी में बंद था । आज देख किस प्रकार का यह कर्म कर रहा है, क्यों कर रहा है ?
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