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Ramayani Sadhna Satsang Bhag 16
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1140))
*रामायणी साधना सत्संग*
*अयोध्या कांड भाग-१६*
*मंथरा का कुसंग*
वर्षा होती ही देखते हो, कीट पतंग कहां से आ जाते हैं । होंगे ना वहां, तभी आए ।
नहीं तो कहां से आएंगे ? इसी प्रकार से इन कुसंस्कारों का हाल है । यह कुसंस्कार हमारे चित्त में इस प्रकार से पड़े हुए रहते हैं, मात्र अवसर ढूंढते हैं ।
कब अवसर मिले और हम अपना काम दिखाएं ।
इनका काम,
आप ही तो कहते हो ना आज सुबह ध्यान बहुत अच्छा लगा था, आज सुबह की रामायण जो थी बहुत अच्छी थी,
बहुत अच्छी पढ़ने को लगी,
इस वक्त मजा नहीं आया । मानो कोई कुसंस्कार आड़े आ गया है, कोई कुसंस्कार जागृत हो गया है । पड़ा हुआ था, अवसर ढूंढ रहा था । आज उसे मौका लगा है, आज उसने अपना काम दिखा दिया है ।
डेढ़ घंटा बर्बाद करके रख दिया । कुछ पल्ले नहीं पड़ने दिया । क्यों ? कोई कुसंस्कार आपके आगे आड़े आ गया ।
मंथरा रूपी कुसंग ने कैकई की मति को विकृत कर दिया है, बिगाड़ कर रख दिया
है । आगे का काम मंथरा नहीं कर रही, कैकई कर रही है । और वह कहती है मेरी जुबान तेरे मुख में है कैकई ।
रात को करेंगे चर्चा इसके आगे । अब यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद
कभी-कभार जाने अनजाने हमसे इस प्रकार की बात हो जाती है, जिससे दो व्यक्तियों में दूरी हो जाती है या हो जाए ।
कभी प्रयास भी होता है, कभी अनायास ही हो जाता है । दो व्यक्तियों में जब दूरी हो, उस वृत्ति को मंथरा कहते हैं ।
किसी भी ढंग से हो,
आप लिखकर करें, मुख से कहें,
बात थोड़ी सी तोड़ मरोड़ कर इस प्रकार से करें, समझ लीजिएगा की इस वक्त मंथरा सक्रिय हैं ।
भक्तजनों जैसे ही मंथरा आती है, तो राम दूर चले जाते हैं । अभी देखा ना आपने ।
मंथरा का आगमन हुआ,
कैकई के हृदय में मंथरा ने निवास कर लिया है, तो राम दूर चले गए हैं ।
दशरथ से भी दूर चले गए हैं । उनके हृदय में भी किसी न किसी प्रकार की मंथरा ने प्रवेश किया हुआ है । वह राम कहिएगा, कुछ कहिएगा, पर कुछ ना कुछ उनके हृदय में भी हुआ हुआ है, जो राम को दूर कर देता है । थोड़ी देर में समय लगा तो करेंगे थोड़ी इस बात की चर्चा । अभी मंथरा को ही समझते हैं ।
भेद बुद्धि है यह,
द्वैत बुद्धि है यह ।
यदि हमारा राम, हमारा घर एक है,
हम एक ही की संतान हैं, तो फिर दो कहां से आ गए ? द्वैत बुद्धि पैदा करती है यह
मंथरा ।
अपना, अपना है ।
पराया, पराया है । अरे अपने ही काम आते हैं । इसलिए तू भरत की बात सोच ।
यह राम ने काम नहीं आना, यह कौशल्या ने काम नहीं आना । अपने ही काम आएंगे । जैसे मैं तेरे काम आ रही हूं । देख किसी ने आकर तुझे कोई सलाह अच्छी नहीं दी, किसी ने आकर तुझे बताया नहीं । मैं तेरी अपनी हूं, मैं तेरी अपनी ही काम आई हूं ।
अपने मायके से लेकर आई हुई है मंथरा को। कैकई साथ ही लेकर आई हुई है, और कोई नहीं लेकर आया दासी । लेकिन यह दासी उनके साथ ही आई हुई है । परमेश्वर ने कोई विशेष काम जो लेना था इनसे । यह ना होती तो शायद रामायण चलती ही ना, खत्म हो जाती । सो मंथरा की भूमिका भी बड़ी आवश्यक भूमिका है । भगवान ने कोई चीज निरर्थक बनाई ही नहीं है देवियो सज्जनो ।
कुछ भी देख लो आप हर एक का किसी ना किसी ढंग से मतलब है । मंथरा ना आई होती कैकई के जीवन में, तो रामायण खत्म हो गई होती । रामायण चलती ना आगे । बससस जितनी है, पर्याप्त हैं ।
मंथरा आ जाती है, कैकई के जीवन में द्वैत भाव पैदा करती है, लड़ाई झगड़ा पैदा करती है, आपस में दूरी बना देती है यह मंथरा । यह मंथरा ऐसी ही वृत्ति है । हमारे अंदर भी कभी ना कभी आई रहती है । जब हम काम किया करते थे तो बहुत अच्छा काम होता था। अब औरो ने करना शुरू कर दिया है। हमें उनकी सहायता देने की आवश्यकता नहीं है । ना सहायता मांगने की आवश्यकता है, ना सहायता देने की आवश्यकता है ।
तो समझ लीजिएगा साधक जनों कहीं ना कहीं मंथरा काम कर रही है ।
स्वामी जी महाराज यदि यह सोचें,
मैंने अनेक वर्ष अमुक स्थान पर बिताए हैं, इसीलिए मेरा उसी स्थान के साथ सब कुछ है । बाकी स्थान मेरे लिए कुछ नहीं है, तो यह स्वामी जी महाराज को बिल्कुल यह शोभा नहीं देता । स्वामी जी महाराज ऐसा कर ही नहीं सकते । क्यों ? उनकी तो मंथरा मर गई हुई है, और हमारी मंथरा अभी जीवित है । यह बातें हम तो सोच सकते हैं । पर हम सोचते भी हैं, और हम करते भी हैं ऐसी बातें । यह अपने पराए का सिलसिला तो हम बनाकर रखते हैं ।
मध्य प्रदेश के हैं, यूपी के हैं, पंजाब के हैं, हिमाचल प्रदेश के हैं, दिल्ली के हैं, अब जब से दिल्ली वालों ने काम संभाला है हमें उनकी सहायता करने की कोई आवश्यकता नहीं । और मीन मेख निकालेंगेऔ ।
ताकि यह सिद्ध कर दिया जाए जब हम करते थे, तो बहुत अच्छा काम होता था । समझ लीजिएगा भक्तजनों, आप जितने मर्जी बड़े हो, समझ लीजिएगा उस वक्त मंथरा काम कर रही है । है ना ।
मंथरा काम कर रही है, सक्रिय है अंदर ।
आप भले ही ऊपर से बहुत जाप पाठ इत्यादि करने वाले हैं, पर कभी ना कभी जब यह वृत्ति आ जाती है, तो समझना चाहिए कि मंथरा भीतर सक्रिय हो गई है, मंथरा हमारे जीवन में आ गई है ।
आज सुबह अर्ज करी थी आपसे राज महल में रोज कथा होती है । महर्षि वशिष्ठ, सारे जितने भी कर्मचारी हैं, उनको या जितने भी राज महल में रहने वाले हैं, राजपरिवार के जितने भी सदस्य हैं, सब रोज महर्षि वशिष्ठ से कथा सुनते हैं । और कथा महर्षि वशिष्ठ द्वारा सुनाई हुई कोई साधारण कथा तो नहीं।
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