Ramayani Sadhna Satsang Bhag-6
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1131))
रामायणी साधना सत्संग
भाग- ६
पुन: देवर्षि नारद का एक बार आगमन
हुआ । नाम की कमाई जब की जाती है भक्तजनों तो गुरु दर्शन होते रहते हैं । नाम की कमाई ना हो तो गुरु दूर रहता है । पुन: देवर्षि नारद ढूंढते ढूंढते अपने शिष्य को मिलने के लिए आए है । नाम की कमाई करी है, तप किया है, तपस्या करी है, त्याग किया है । आज गुरु एक शिष्य के दर्शन करने के लिए, मिलने के लिए, आशीर्वाद देने के लिए पुन: आ गए हैं ।
बातचीत हुई । कुछ एक प्रश्न पूछे महर्षि वाल्मीकि ने ।
देवर्षि नारद उनका उत्तर देते हैं ।
आज आपने पढ़ा, सर्वगुण संपन्न कौन है ? तो वह बताते हैं । अनेक सारे प्रश्न हैं । एक-एक का उत्तर देते हैं । इस प्रकार से रामायण जी की रचना का शुभारंभ होता है।
महर्षि वाल्मीकि रामायण जी की रचना इस प्रकार से बहुत स्थान पर आकर, उधर से ब्रह्मा जी का संकेत मिलता है तो रामायण जी की रचना का आरंभ होता है, और इतनी मोटी मोटी तीन चार पुस्तकें रच दी महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में ।
जिनका अनुवाद करके कविता रूप में स्वामी जी महाराज ने आपके सामने छह सौ पृष्ठ की पुस्तक जो है प्रस्तुत करी है ।
आइए भक्तजनों जो एक पांच एक मिनट रह गए हैं, इस रामायण पर ही चर्चा । रामायण अर्थात राम का घर, राम जो हमारे घर ।
क्या अभिप्राय है इसका ?
भक्तजनों यह व्यक्ति जब तक भूलता रहता है, तब तक शरीर है । जैसे ही अपनी याद आती है, मैं कौन हूं, तो फिर अपने घर की भी याद आती है ।
जिस बुद्धि ने हमें इस प्रकार की प्रेरणा दी है, सत्य को भुला दिया है, परमेश्वर को भुला दिया है, और बाकी सब कुछ इकट्ठा करवा दिया है, संत महात्मा कहते हैं ऐसी बुद्धि को अत्याचारी बुद्धि समझो, शत्रु बुद्धि समझो । यह आपकी मित्र नहीं है । यह आपकी सर्वनाश करने वाली है । करके रहेगी ।
इसने परमेश्वर का विस्मरण करवा दिया, सत्य का विस्मरण करवा दिया और बाकी चीजों में आप को उलझा कर रखा । बाकी चीज एक ही रहती है, जिसे संसार कहते हैं। संसार में इस बुद्धि ने उलझा कर रख दिया। वह बुद्धि शत्रु है, अत्याचारी है, वह मित्र बुद्धि नहीं । इस बुद्धि को संसार में उलझाने के लिए नहीं, इस संसार को पार पाने के लिए प्रयोग करिएगा और वह आपको अपने घर की ओर वहां वह ले जाएगी ।
Second world war की बात है ।
एक सैनिक बहुत बुरी तरह से कहीं घायल हो गए । इतने घायल हुए, पट्टी-वट्टी करने के बाद, उपचार करने के बाद बाकी तो सब कुछ ठीक हो गया, लेकिन स्मृति जो है वह total memory loss, जो कुछ नाम निशान इनका होता है, जो फीता इत्यादि लगाया हुआ, जिस पर नाम इत्यादि लिखा होता है, identity card जो कुछ भी, इनके पास पता नहीं कहां है, कहां नहीं है । इस व्यक्ति को, किसी को पता नहीं लग रहा इसका घर कहां है, गांव कहां है ?
मनोवैज्ञानिकों, डॉक्टरों के पास उन्हें ले जाया गया । उपचार हुआ । बाकी तो सब कुछ ठीक हो गया, लेकिन यह बात हम इसे कहां छोड़े ? अब कहां ले जाए इसे ?
इसका कोई record हमारे पास नहीं मिल रहा । कैसे ढूंढा जाए । कोई नाम पता, कोई इस प्रकार का हो, मनोवैज्ञानिकों ने कहा जिस country का है यह, उसके आसपास इसे घुमाइएगा । घुमाते जाइएगा तो सैनिक और गए हैं साथ ।
UK का, london का रहने वाला है वह । उसको लेकर चले गए । जगह-जगह घुमा रहे हैं । कभी रेलगाड़ी से, कभी बस से, कभी कैसे, कभी कैसे, sign board उसे पढ़ाए जाते हैं, लेकिन उसे कोई कुछ याद नहीं आता ।
कई दिन इस प्रकार से बीत गए । आज अचानक एक local train में बैठे हुए हैं। बड़ा छोटा सा एक स्टेशन आया है । इन जो दो साथी थे, उन्होंने सोचा यहां उतरकर चाय मिल रही है, चाय पी लेते हैं । चाय पीने के लिए उतरे, sign board देखा, कुछ मन हिला, इस व्यक्ति ने चाय नहीं पी ।
तेज-तेज चलना आरंभ कर दिया । मानो कुछ उसे रास्ता सा याद आ गया । गली कूचे इत्यादि निकलता निकलता, वह इस मोहल्ले से निकल, उस मोहल्ले से निकल, इस गली से निकल, इधर से निकल, उधर से निकल अपने घर पहुंच गया, और घर पहुंचकर वह कहता है, this is my house, घर की याद आ गई ।
भगवान ने अर्जुन को कई घर दिखाएं । ज्ञान का घर दिखाया, कर्म का घर दिखाया, भक्ति का घर दिखाया, लेकिन उसे अपना घर याद नहीं आ रहा । कहां जाना है, कहां उसका घर है, उसे घर याद नहीं आ रहा । इस सब के बाद भगवान श्री अर्जुन से कहते हैं -
अरे अर्जुन ! छोड़ इन सब झंझटो को ।
एक मेरी शरण में आजा । मैं ही तेरा घर हूं। जो तेरा घर है, वही मेरा घर है । हम दोनों का घर एक ही है भाई । अरे सारे के सारे जितने भी यह संप्रदाय हैं, जितने भी यह सारे झगड़े हैं, यह ज्ञान है, यह कर्म है, यह भक्ति है, यह मोह है, यह योग है, यह ध्यान है, यह हठ है, इन सब को छोड़कर एक मेरी शरण में आजा । आ मेरी शरण में, मैं ही तेरा घर हूं । वह राम ही हमारा देवियों सज्जनों घर है ।
जब तक व्यक्ति अपने घर नहीं पहुंचता तब तक वह यह नहीं कह सकता this is my house, उस सैनिक ने अपने घर पहुंचते ही यह कहा है, this is my house, यह मेरा घर है । ठीक इसी प्रकार से साधक जनों संत महात्मा बार-बार पुस्तकों के माध्यम से, अपने वचनों के माध्यम से, बार-बार यही याद दिलाते हैं, भाई चलो अपने घर, लौटो अपने घर । उसके बिना भटकना बनी रहेगी, उसके बिना यह जन्म मरण का चक्र, आवागमन का चक्र बना रहेगा । अपने घर चलो, तभी विश्राम मिलेगा, तभी आराम मिलेगा, तभी यह भटकना बंद होगी, तभी यह जन्म मरण का चक्कर बंद होगा, तभी यह आवागमन का चक्र जो है, वह बंद होगा।
आज सुबह भी भक्तजनों प्रार्थना करी थी, चलो प्रयत्न करके चलते हैं अपने घर, चलते हैं प्रभु राम के पास । वही है अपना घर, वही है अपना निवास स्थान, वही है श्री राम शरणम । श्री राम शरणम् का अर्थ भी, स्वामी जी महाराज ने बहुत अच्छा रखा है नाम । श्री राम शरणम् का अर्थ ही यही है, श्री राम जो हमारा घर है
“श्री राम शरणम् गच्छामि” मैं अपने घर जाता हूं । श्री राम शरणम् गच्छामि,
मैं अपने घर जाता हूं । यह श्री राम शरणम् किसी बिल्डिंग का नाम नहीं है ।
राम जो हमारा घर है मैं उनके पास जाता हूं। बिल्डिंग का नाम नहीं है श्री राम शरणम् । श्री राम जो हमारा घर है, मैं उनके पास जाता हूं, अपने घर लौटता हूं । बहुत-बहुत धन्यवाद । यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद ।
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