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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1050))
धुन :
सीताराम सीताराम, सीताराम कहिए,
जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए ।
राम राम राम राम राम राम राम राम,
राम राम राम राम राम राम राम राम ।
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५६७(567)*
*प्रारब्ध (होनी बहुत प्रबल है)*
और कोई चारा नहीं देवियों सज्जनों ।
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए । दशरथ नंदन राम आज के प्रसंग में यही दिखा रहे हैं ।
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए ।
राज्याभिषेक मिल रहा था तो राम इच्छा, राज्य अभिषेक की जगह पर वनवास मिल रहा है तो राम इच्छा ।
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए । अपनी प्रारब्ध इतनी प्रबल है साधक जनों होनी इतनी प्रबल है, उसको कभी टाला नहीं जा सकता । सामान्यता आप प्रगाढ़ भक्ति करें, इतनी भक्ति करें कि जिन कर्मों के द्वारा आपने प्रारब्ध रची थी, आप रचने वाले हैं तो आप उसे परिवर्तित भी कर सकते हैं । आप उसे मोड़ भी सकते हैं । उसका रुख भी मोड़ा जा सकता है । उसको हल्का भी किया जा सकता है । यह सब आपके अधीन है, आपकी भक्ति के अधीन
है ।
ज्ञान भी संभवतः कर सकता होगा लेकिन भक्ति के लिए तो यकीनन कहा जाता है इसमें माथे के कुलेख को सुलेख में परिवर्तित करने का समर्थ है भक्ति में । प्रगाढ़ भक्ति, ऐसी भक्ति जैसी भक्ति संतों महात्माओं भक्तों ने की है ।
इसमें ऐसा मत समझिएगा, हम गृहस्थ हैं इसलिए हमें थोड़ी छूट
होगी । नहीं, आप अपने किए को यदि परिवर्तित करना चाहते हो, परिवर्तित कर सकते हो । इसमें कोई संदेह नहीं, पर आपकी भक्ति बहुत प्रगाढ़ होनी चाहिए, अनन्य भक्ति, निष्काम भक्ति, आप की होनी चाहिए । तो परमात्मा को यह सब कुछ करने में कोई दिक्कत नहीं होगी । अन्यथा देवियों सज्जनों हम सब के लिए, जैसे हम सब हैं, हम सब के लिए प्रारब्ध बहुत प्रबल है ।आज राजा राम भी कुछ परिवर्तन नहीं कर सके, यह दर्शाने के लिए की होनी बहुत प्रबल है ।
एक लकड़ी का टाल है । जहां लकड़ी बेची जाती है । एक साधु अपनी चिलम में कोयला डालने के लिए ऐसी चिलम पीते है ना । साधु लोग तो उसमें कोयला डालते हैं । कोयला चाहिए था, कोयला मांगने के लिए उस व्यक्ति के पास गया । एक बालक बैठा हुआ था वहां । कहा बाबा थोड़ी देर इंतजार करो इस सारे टाल को आग लगने वाली है जितनी मर्जी आग ले लेना, जितने मर्जी कोयले ले
लेना । देखते ही देखते साधक जनों सारी की सारी लकड़ी जलकर राख हो
गई । मानो कोयले ही कोयले हैं । साधु कोयला तो उठाना भूल गया । उस बालक के पास गया जाकर कहा, तुम्हें पता था कि इसे आग लगने वाली है । तूने पहले प्रबंध क्यों नहीं किया बचाव का । क्यों Fire brigade इत्यादि नहीं बुलाए ? क्यों पानी का प्रबंध नहीं किया ? ताकि यह Disaster ना होता । बालक कहता है, महात्मन-क्षमा करें । इसका उत्तर मैं नहीं दे पाऊंगा । अमुक नदी के किनारे मेरे गुरु महाराज बैठे हुए हैं। उनके पास जाओ वह तुम्हें उत्तर देंगे ।
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