Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

10 months ago
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परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1041))
धुन :
*जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो*
*जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो*
*जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो*
*जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो।।*

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५५८(558)*
*जैसी करनी वैसा फल भाग-४*
*“जैसी करनी वैसा फल,*
*आज नहीं तो निश्चय कल”*

कल चर्चा चल रही थी साधक जनो
“जैसी करनी वैसा फल,
आज नहीं तो निश्चय कल”
कल आप जी ने देखा था कुछ कर्मों का फल तत्काल मिल जाता है । कुछ का कुछ समय के बाद, कुछ का कुछ माह के बाद, कुछ का कुछ वर्षों के बाद, और कुछ का अगले जन्म में, उससे अगले जन्म में मिलता रहता है । अकाट्य सिद्धांत है । इससे छुटकारा नहीं है । फल कर्म के पीछे पीछे या यूं कहिए, कर्म कर्ता के पीछे पीछे घूमता है । कहीं भी चले जाओ । यह पीछा नहीं छोड़ता । जब तक कि अपना फल दे नहीं लेता ।

कल आपने राजकुमार की कहानी थोड़ी सी सुनी थी । विवाह करके लौट आए हैं । नगर में प्रवेश नहीं पाया ।मानो अपने राज महल में नहीं गया । शगुन शुभ नहीं था । अतएव किसी मठ में सारी की सारी बारात ठहरी हुई है । वहां आप जी ने सुना था, रात्रि पति पत्नी एक कक्ष में रखे गए । पत्नी सो नहीं सकी । पति सो गए हैं । उनके गले पर तलवार गिर गई । गर्दन कट गई ।
पति की मृत्यु हो जाती है । बेसुध हो गई
है पत्नी । सुबह उठते ही कोलाहल मच गया है । पत्नी पर किसी प्रकार का शक नहीं किया जा सकता । अतएव उस आश्रम के जो मठाधीश हैं, जो महंत हैं उन्हें पकड़ा गया ।

राजा ने कहा -साधु है मृत्यु दंड तो इन्हें नहीं दिया जा सकता । अतएव यह दोनों हाथ जिनसे दुष्कर्म किया है काट दिए जाए । दोनों हाथ यहां से काट दिए गए । कुछ देर के बाद धीरे-धीरे healing हो गई होगी । मन ही मन सोचते हैं, निर अपराधी हूं, अपराध नहीं है, हाथ कटे हैं ।
परमेश्वर के घर में कोई अन्याय अत्याचार तो नहीं है, कोई गलती नहीं है ।
स्पष्ट है किसी पुराने कर्म का फल मुझे आज मिला होगा । आज वह कर्म परिपक्व हुआ होगा । Mature हुआ होगा ।

या कुछ ऐसा भी होता है साधक जनों,
यह कर्म दबे रहते हैं । आदमी कुकर्म करता है । कई दफा ऐसा होता है ना, आपको दिखाई नहीं देता है कि, व्यक्ति पाप कर्म करता हुआ भी फल फूल रहा है । मानो वह पाप अभी उनके Mature नहीं हुए हैं । अभी कुछ पुण्य कर्मों से वह पाप कर्म दबे हुए हैं । अतएव पुण्य कर्मों का फल तो अभी मिल रहा है, लेकिन अभी पाप की बारी नहीं आई ।

पाप की बारी, जैसे इनके साथ हुआ, इतनी देर तक मठाधीश गुरु, आचार्य बने रहे । आज पाप Mature हो गया है, तो हाथ कट गए ।
वंदनीय, निंदनीय हो गया ।
लोग निंदा करने लग गए । उनके मन में किसी प्रकार का सम्मान ना रहा, लोग गाली गलोच निकालते हैं । मिथ्या आरोप लगाते हैं, आलोचना करते हैं । हम तो कुछ और समझते थे । यह कुछ और निकला । तरह-तरह की बातें । कौन माने कि यह निरअपराधी हैं । राजा साहब ने सजा दी है। मन ही मन सोचा इतने वर्ष यहां रहकर, यहां के लोगों की सेवा की है, उन्हें मुझ पर इतना विश्वास नहीं, जितना राजा की करनी पर । यहां रहना ठीक नहीं, मुझे यहां से चले जाना चाहिए ।

एक मित्र हैं उनके । काशी में रहते हैं ।
यह तो इस तरफ आ गए ।
वह ज्योतिषाचार्य बन गए । वह मित्र जो काशी में रहते हैं बहुत बड़े ज्योतिषी हैं । इतना ही नहीं परमात्मा की उन पर विशेष कृपा है, कि वह पिछले जन्मो का, और अगले जन्म का भी जान सकते हैं । कईयों को यह परमात्मा की देन हुआ करती है। साधना सिद्धि नहीं है, लेकिन परमात्मा की देन है ।

साधारण ज्योतिषी है । ज्योतिष विद्या वह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं । सोचा बहुत देर से उनसे मिला नहीं । चलो इतनी घनिष्ठ मित्रता थी, आज उनसे मिल कर आता हूं। उनके पास चले गए । पता भी नहीं था वह कहां रहते हैं । लेकिन थे प्रसिद्ध ।
अतएव घर के पते की जानकारी कर ली । काशी जाकर उनके घर का द्वार
खटखटाया । पत्नी ने द्वार खोला ।
कौन है आप ? बड़े कर्कश शब्दों में, बड़े कठोर शब्दों में पूछा । यह उन्हीं का घर है जिनके पास में आया हूं, नाम लिया ज्योतिष आचार्य अमुक,अमुक ।
हां उन्हीं का घर है । मैं उनकी पत्नी हूं ।
उन्हें भी गाली दी और इन को भी गाली सुनाई । कोई महिला, चंडी स्वभाव की महिला थी । कथा में कहां जा रहा है, अच्छे स्वभाव की महिला नहीं थी । दोनों को गालियां सुनाइ । बड़े बड़े कटु शब्द प्रयोग किए । कहा इस वक्त कहां मिलेंगे । मैं उनसे मिलना चाहता हूं । काशी घाट पर अमुक अमुक वहां पता कर लीजिएगा जाकर ।
घाट पर मिलेंगे मिलेंगे ।

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