Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1038))
धुन :
*कृपा करो श्री राम*
*सब पर कृपा करो*
*कृपा करो श्री राम*
*सब पर कृपा करो ।।*
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५५५(555)*
*राम कृपा स्वरूप है ।*
*भाग-१*
*बहुत-बहुत धन्यवाद माला, बहुत धन्यवाद प्रेम जी । ईश्वर स्वरूप के अंतर्गत भगवान का सर्वशक्तिमान स्वरूप वर्णन किया जा रहा है । प्रथम प्रसंग स्वामी जी महाराज ने राम सत्य स्वरूप है, राम ज्ञान स्वरूप है, राम आनंद स्वरूप है, राम शक्तिमान है, राम प्रेम स्वरूप है, राम मुनि जन अनुभूत वस्तु है । इनके अंतर्गत स्वामी जी महाराज ने ईश्वर का स्वरूप वर्णन किया हुआ है । भक्तजनों रूप एवं स्वरूप में संत महात्मा अंतर मानते हैं । यह एक ही नहीं है । रूप तो बाह्य आकार को कहा जाता है, लेकिन स्वरूप भीतरी गुणों को कहा जाता है । जैसे मिश्री का आकार गोल भी होती है, दानेदार भी होती है, चपटी भी होती है । यह तो उसका रूप हो गया, मिश्री का आकार हो गया ।*
*लेकिन स्वभाव चाहे वह गोल है, दानेदार है, चपटी है, स्वभाव मिठास रूप से कोई फर्क नहीं पड़ता । तो रूप बाह्य आकार को
कहते हैं और स्वरूप भीतरी गुणों को कहा जाता है । भगवान के भीतरी गुणों का वर्णन ईश्वर स्वरूप के अंतर्गत स्वामी जी महाराज कर रहे हैं।*
भगवान श्री सर्व शक्तियों के मालिक हैं । इसीलिए उन्हें सर्वशक्तिमान कहा जाता है। अनेक सारी शक्तियां है, अनगिनत शक्तियां। कुछ से हम परिचित हैं,
जैसे इच्छाशक्ति है, उनके नियंत्रण की शक्ति है । अभी आपने पढ़ा तीन लोक है । कभी आपस में इन लोको को टकराते हुए किसी ने नहीं देखा, ना ही सुना । तो कितना नियंत्रण है इन लोको के ऊपर । यह भगवान की नियंत्रण शक्ति है, इच्छा शक्ति है, नियंत्रण शक्ति है । सारे जहान को नियामक रखने की शक्ति है ।
क्षमा करने की शक्ति है, अद्वितीय ।
कोई मुकाबला ही नहीं । जितनी भी शक्तियां हैं भगवान में, परमात्मा में, उनका कोई parallel नहीं है ।
उनकी दया करने की शक्ति । अतिशय करुणावान है वह । करुणानिधान उन्हें कहा जाता है, करुणानिधि उन्हें कहा जाता है । इन सारी शक्तियों से भगवान की कृपा शक्ति सर्वोपरि है । इससे बढ़कर भगवान के अंदर कोई और शक्ति नहीं है, ऐसा संत महात्मा, विशेषतया भक्ति मार्ग के अनुयाई इस बात को मानते हैं । उनकी कृपा शक्ति सर्वेसर्वा है, एवं सर्वोपरि है ।
कृपा करने की शक्ति । भगवान का कृपा करना स्वभाव है । जैसे सूर्य का स्वभाव है तेज प्रदान करना, मांगना नहीं पड़ता,
उनसे तेज उनसे प्रकाश मांगना नहीं पड़ता, स्वभाव है । चंद्रमा का ज्योत्सना देना स्वभाव है, उनसे चांदनी मांगनी नहीं पड़ती, शीतलता मांगनी नहीं पड़ती चंद्रमा से । मेघ का स्वभाव है बरसना, उसने बरसना ही बरसना है । वह नहीं देखता कि यह गरीब का घर है, या अमीर का महल है, या झोपड़ी। उसे बरसना ही है । उसका स्वभाव है । ठीक इसी प्रकार से परमेश्वर का स्वभाव ही है कृपा करना । भक्तजनों फिर भी बेशक ठंडे नगर जो है, ठंडे देश जो है, पहाड़ी इलाके है, उनका स्वभाव है ठंडक देना । लेकिन ठंडक पाने के लिए आपको जाना तो पड़ेगा वहां पर ।
ठीक इसी प्रकार से परमेश्वर का स्वभाव है कृपा करना । लेकिन उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए, उनकी चरण शरण में तो आपको जाना ही होगा । यह शर्त मत भूलिएगा आप । चंद्रमा ज्योत्सना प्रदान कर रहा है, लेकिन आप अपना घर द्वार सब बंद करके भीतर बैठे हैं, तो आप उसकी शीतलता से, उसकी चांदनी से वंचित रह जाओगे । आपका मकान किसी इस गली मोहल्ले में है, जहां ऊंचे ऊंचे मकान है, तंग गली है, जहां सूर्य का प्रकाश कभी गलती से भी नहीं जा सकता, तो दोष सूर्य का नहीं है। वह तो अपना तेज सबको प्रदान कर रहा है, वह तो अपनी रोशनी सबको प्रदान कर रहा है । भूल आपकी है कि आपने मकान गलत जगह पर लिया हुआ है, जहां रोशनी आने की कोई संभावना नहीं है ।
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