संगठन की ताकत

1 year ago

एक व्यक्ति था जो की अपने संगठन में हमेशा बहुत ज्यादा सक्रिय रहता था। उस व्यक्ति को कई सारे बड़े लोग जानते थे। उसका मान – सम्मान भी लोगो के बीच काफी अच्छा था।

किन्तु किसी कारण की वजह से एक दिन उस व्यक्ति को अपने संगठन से निष्क्रिय होना पड़ा। अब वो अपने संगठन के लोगो को मिलता भी नहीं था और धीरे –धीरे वो अपने संगठन से दूर हो गया।
कुछ समय ऐसे ही बीत गया। एक दिन ठंड की रात में उस संगठन के मुखिया ने इस व्यक्ति से मिलने का फैसला किया। मुखिया इस व्यक्ति के घर पर पहुंच जाते है । उसके घर जाकर मुखिया देखते है की ये व्यक्ति अकेला ही बैठा है ।

ये व्यक्ति जलती हुई लकड़ियों के सामने आराम से बैठकर आग ताप रहा था । मुखिया को देखते ही इस व्यक्ति ने उनका खामोशी के साथ स्वागत किया ।

अब मुखिया और वो व्यक्ति दोनों चुप चाप बैठकर आराम से आग ताप रहे थे । कुछ समय के बाद संगठन के मुखिया ने आग में से एक लकड़ी को उठाकर अलग कर दिया और फिर से अपनी जगह पर आकर बैठ गए । वो व्यक्ति ये सब देख रहा था ।

वो व्यक्ति बहुत समय से अकेला था इसलिए मुखिया के घर आने पर वो अंदर से बहुत खुश था । मुखिया ने आग में से जिस लकड़ी को अलग रख दिया था उस लकड़ी की आग धीरे – धीरे पूरी तरह से बुज गयी थी । अब उस लकड़ी में आग की तपन खत्म हो गई और वो एक काला टुकड़ा बनकर रह गया था ।
मुखिया और वो व्यक्ति दोनों कम शब्दों में बातें कर रहे थे । जब मुखिया के जाने का समय हुआ तब उन्होंने उस अलग पड़ी लकड़ी जो की एक काला टुकड़ा बन गयी थी उसे उठाया और फिर से आग में डाल दिया। ऐसा करने से वो लकड़ी फिर से जलने लगी और अपना ताप बिखेरने लगी।

अब मुखिया जा रहे थे । वो व्यक्ति भी मुखिया को दरवाजे तक छोड़ने गया और उनसे ये भी कहा की मेरे घर पर पधारने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
मुखिया ने बिना कुछ बोले ही उस व्यक्ति को एक अच्छा पाठ पढ़ाया । एक अकेले व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता, अगर वह संगठन के साथ होता है तो वह चमकता है । किन्तु संगठन से अलग होते ही वह बुझ जाता है । उस व्यक्ति को भी मुखिया की बात समज में आ गयी और वो फिरसे अपने संगठन में जुड़ गया ।

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