Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।
((1017))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५३४(534)*
*आत्मिक भावना*
*भाग १३*
*श्री राम शरणम् की महिमा*

यह बल मेरे गुरुजनों के स्थान से मिलता है। देवियों मेरी और नहीं देखना, मेरे और नहीं झांकना । आप मेरी औकात को बहुत अच्छी तरह से जानते हो । मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है, जो मैं आपको दे सकूं । हां, यह स्थान जो मेरे गुरुजनों का है, जो मेरे सद्गुरुओं का है, आपको स्पष्ट करूं देवियों सज्जनों सद्गुरु कभी मरा नहीं करते । उनकी अविनाशी चेतना उनकी तपस्थली पर सदैव व्याप्त रहती है ।‌ वही हम सब को देखने को मिल रहा है । जो कोई भी इस स्थान पर आता है, वह बलवान होकर जाता है, वह बल प्राप्त करके जाता है ।

कल भी आपसे एक अर्ज की थी इस स्थान पर आकर रोग भी ठीक होते होंगे, लेकिन लक्ष्य यह नहीं होना चाहिए । समस्याएं भी सुलझती होंगी, लेकिन लक्ष्य यह नहीं होना चाहिए । इससे इस स्थान की महिमा कम होती है । बड़ी जगह से, बड़ों से बड़ी चीजें मांगनी चाहिए । छोटी चीजें तो बाजार से भी मिल जाती हैं । छोटी चीजें तो छोटों से भी मिल जाती हैं । जो चीज यहां से मिलती है, परमेश्वर के मार्ग पर, परमेश्वर के साथ जुड़े रहने की प्रेरणा एवं बल यह हर जगह नहीं मिलता । यहां आकर यह आपको मिलता है। आप को बल मिलता है, प्रचूर बल मिलता है यहां पर आकर समस्याओं का सामना करने के लिए ।

हम समस्याएं सुलझाने के लिए यहां नहीं आते, उनसे तो हम निपटेगें, लेकिन उसके लिए बल चाहिए । वह इस स्थान से मिलता है । यहां आकर आप परमात्मा की भक्ति करती हैं/करते हैं, यह स्थान भक्ति के लिए है । आकर भक्ति कीजिए, जप कीजिए, अमृतवाणी का पाठ कीजिए, भक्ति प्रकाश का पाठ कीजिए, रामायण जी का पाठ कीजिए, यह सब भक्ति के अंतर्गत हैं । इस भक्ति से आपको बहुत बल मिलता है । आप प्रत्येक समस्या का सामना करने योग्य हो जाते हैं, सक्षम हो जाते हैं आप ।

रोगों के लिए भी परमेश्वर की कृपा प्राप्त होती है, दवाई तो आप डॉक्टर से लेते हैं, यह अस्पताल नहीं है । यह श्री राम शरणम् है । दवाइयां तो अस्पताल से मिलती हैं, इलाज तो अस्पतालों में होता है ।‌ यहां परमात्मा की कृपा मिलती है ।‌ ताकि वह दवाइयां, वह इलाज आप को ठीक कर
सके । यदि दवाइयां ही ठीक कर सकती होती, डॉक्टर ही ठीक कर सकते होते,
तो कोई मरता ना । यह उनके बस की बात नहीं है । परमेश्वर की कृपा होती है, तो दवाई लेने से तत्काल आराम मिलता है । यदि कृपा नहीं होती, अभी कर्मों का कोई हिसाब किताब, प्रारब्ध का कोई हिसाब किताब बाकी है, तो कोई दवाई, कोई डॉक्टर जहां मर्जी घूम लीजिएगा । कोई फर्क नहीं पड़ता।

तो साधक जनो इसी चर्चा को और आगे बढ़ाते हैं । यहां आते हैं आप, जाप करते हैं। आज अंतिम अहम भावना की समाप्ति होती है । आज जिस अहम की बात की है स्वामी जी महाराज ने, यह वह अहम नहीं साधक जनो, अब आप छोटे-मोटे साधक नहीं हो, आप बहुत उच्च हो, इन चीजों को हमें बहुत गहराई से समझना है ।

जैसे कल आपसे अर्ज की थी यदि आप भक्ति करना चाहते हो, यदि आप भक्ति की प्राप्ति करना चाहते हो, तो आपको जगह-जगह भटकने की जरूरत नहीं । हां, महत्त्वकांक्षा है, कुछ आप बनना चाहते हैं, औरों को दिखाना चाहते हैं, कुछ भक्ति के अतिरिक्त प्राप्त करना चाहते हैं, तो फिर बेटा आपको यहां जाने की जरूरत, वहां जाने की जरूरत, वहां जाने की जरूरत, वहां जाने की जरूरत । भक्ति प्राप्ति के लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है । कल भी आपसे अर्ज की थी देवी, भक्ति के लिए आदमी को भीतर जाना है । और बहुत भीतर जाना है । बहुत deep जाना है,और deep जाना है, या बेटा ऊपर उठना है । भक्ति के लिए आपको कहीं भी भटकने की आवश्यकता नहीं । जो आपको अंतर्मुखी, इसी को कहा जाता है अंतर्मुखी होना ।

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