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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((996))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५१३(513)*
*मन का प्रबोधन*
*भाग-१*
धुन :
रम जा, रम जा, रम जा मनवा
रम जा अपने राम में,
रम जा, रम जा, रम जा मनवा
रम जा अपने राम में ।।
*पूज्य पाद स्वामी जी महाराज ने आज साधक जनो मन के प्रबोधन का प्रसंग समाप्त कर लिया है । मन को साधक जनो कोई बकरा कहता है, कोई घोड़ा कहता है, कोई दर्पण कहता है, कोई छड़ा कहता है, यह है क्या मन ? आज थोड़ी चर्चा यहीं से शुरू कर लेते हैं । जारी रहेगी आगामी दिनों में यह चर्चा । उपनिषदों में वर्णन आता है, शरीर को रथ कहा जाता है । जीवात्मा उस रथ के रथी हैं सवार करने वाले, सवारी करने वाले । बुद्धि सारथी है, रथ को चलाने वाली । मन लगाम है, इंद्रियां घोड़े हैं और विषय मार्ग है । अर्जुन के रथ के सारथी भगवान श्री कृष्ण । अर्जुन तो रथी थे, उस पर सवार गीताचार्य भगवान श्री कृष्ण स्वयं सारथी थे । मानो जो हमारे रथ का संचालक है, उसे बुद्धि कहा जाता है । वह भगवान श्री कृष्ण हैं, भगवान होने चाहिए । मन को लगाम कहा जाता है, ढीली हुई तो, घोड़े मुंह जोर हुए, तो आपको किस गड्ढे में जा कर गिरा देंगे, कभी बाहर नहीं निकल सकोगे । मन की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है इस रथ के लिए, इस शरीर के लिए, मन की भूमिका अति महत्वपूर्ण है । कस कर लगाम रखेंगे तो घोड़ों पर नियंत्रण रहेगा । अन्यथा यह घोड़े क्या कर देंगे, आप बहुत अच्छी तरह से परिचित हैं । यह घोड़े किसी को नहीं*
*छोड़ते । पतन की ओर ले जाते हैं । गहरी खाई में जा कर गिरा देते हैं । जहां से एक साधक कभी बाहर नहीं निकल पाता ।*
संत महात्मा कहते हैं साधक जनों, इस मन पर नियंत्रण करना, इस लगाम को कसकर पकड़ कर रखना, अपने वश में रखना ही सारी की सारी साधनाओं का लक्ष्य है । सिर्फ शब्दों का हेरफेर है देवियो सज्जनों
लक्ष्य यही है मनोनिग्रह, मन पर नियंत्रण, मन का पवित्रीकरण, मन का शुद्धीकरण, मन को निरोग बनाना । यह सब एक ही बात है । इसमें कोई भेद की बात नहीं है । सारी की सारी साधनाओं का लक्ष्य साधक जनो यह है । जब तक यह नहीं हो पाएगा, तब तक साधक जनो भीतर विराजमान परमात्मा का बिंब, प्रतिबिंबत नहीं हो
पाएगा । अतएव इस मन को दर्पण कहा जाता है ।
दर्पण जितना साफ होगा उतना प्रतिबिंब भी आपको साफ दिखाई देगा । हमारा मन रूपी दर्पण इतना गंदा है कि हमें उस बिंब का प्रतिबिंब दिखाई नहीं देता । मानो वह दर्पण, दर्पण ही नहीं रहा । वह दर्पण किसी काम का नहीं जिसमें आपको अपना प्रतिबिंब ना दिखाई दे । हमने इस दर्पण को इतना मलिन कर रखा हुआ है, इतना गंदा कर रखा हुआ है, भीतर विराजमान परमात्मा; जिन्हें बिंब कहा जाता है, उनका प्रतिबिंब मन रूपी दर्पण में दिखाई नहीं देता । एकदा पहले भी आप जी की सेवा में एक उदाहरण दी गई
थी ।
एक संत आज सत्संग में रुमाल लेकर गए हैं, और सभी से पूछते हैं; ऐसे करके बच्चो बताओ यह क्या है ? सभी ने कहा गुरु महाराज रुमाल है । किस काम आता है ? सभी ने बताया इस काम के लिए आता है, मुख साफ करना हो, हाथ साफ करने हो, पसीना आ गया है, उसे साफ करना हो, कोई गंदगी है उसे साफ करने के लिए रूमाल का प्रयोग होता है । शाबाश, गुरु महाराज बहुत प्रसन्न, बहुत सही उत्तर आपने दिया ।
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