Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((992))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५०९(509)*
*नेपाल श्री राम शरणम् के उद्घाटन समारोह के शुभ अवसर पर*
*श्री राम शरणम् की महिमा*

*दूसरों के काम आना साधक जनों, दूसरों को सुख देना, यह हिंदू संस्कृति है, एक साधक के लक्षण हैं । यह सब कुछ श्री राम शरणम् से सीखने को मिलना चाहिए । जहां यह सब कुछ सीखने को मिलता है, याद आती है यह करना है, उसी को श्री राम शरणम् कहा जाता है, ऐसी अपेक्षा है स्वामी जी महाराज की ऐसे श्री राम शरणमों से ।*

*एक आदमी अपने पास सभी कार्य संभाल कर रखें, लोग इसे पसंद नहीं करेंगे । ऊब जाएंगे । यह भी मैं ही करूं, यह भी मैं ही करूं, यह भी मैं ही करूं, इत्यादि इत्यादि। मानो उस साधक ने अभी बांटना नहीं सीखा । लोग बहुत जल्दी ऊब जाएंगे और फिर व्यक्ति यदि ऊब जाता है, तो यही होता है, यह जितनी देर यहां से दूर रहे ठीक है । यहां इसका होना ठीक नहीं, ऐसा प्रभाव उस व्यक्ति का पड़ता है । बांटने की प्रथा साधक जनों बहुत सुंदर है । जो बांटेगा, सुख बांटेगा, तो परमसुख को पाएगा । रोटी बांटेगा, तो कभी भूखा नहीं रहेगा* ।

आज एक राजा के सौ पुत्र हैं । अपना उत्तराधिकारी चुनना चाहता है सौ में से । प्रथा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र को राजकुमार उत्तराधिकारी बनना चाहिए । लेकिन यह बात राजा को पसंद नहीं । अतएव किसी संत महात्मा के माध्यम से सोचा कैसे चुनाव किया जाए ? उसने कुछ युक्ति बताई ।
उस युक्ति के अनुसार आज राजा ने घोषणा कि, पुत्रों मैं आप सब को भोजन पर आमंत्रित करता हूं । आप सब भोजन करो इकट्ठे बैठकर । सब लोग, सभी के सभी राजकुमार पंक्ति में बैठे हुए हैं भोजन करने के लिए । बढ़िया, अच्छे थाल में भोजन, जैसे सोने के थाल होते हैं, ऐसे ही जैसी प्रथा है, वैसे थाल रखे उनके सामने । जैसे ही एक ग्रास उठाने की बारी आई, ग्रास उठाया, अभी गया नहीं मुख में भीतर, राजा साहिब ने शिकारी कुत्ते छोड़ दिए । हुक्म दिया शिकारी कुत्ते छोड़ दिए जाएं । सब के सब भाग गए । किसे खाना, खाना था । शिकारी कुत्ते काटते, इत्यादि इत्यादि, डर से बिना खाए भूखे पेट सब के सब भाग गए । एक बैठा रहा ।

अगले दिन राजा साहब ने सब से पूछा भाई मैंने इतना स्वादु भोजन बनाया था, आप लोगों ने किसी ने कोई प्रशंसा नहीं करी ।
कैसा था भोजन ? पिताश्री हमने भोजन खाया ही नहीं । क्यों ? क्या बात है, क्यों नहीं खाया ? कहा जब खाने ही लगे तो शिकारी कुत्ते भागते भागते आ गए, तो हम डर से भाग गए । एक ग्रास भी अपने मुख में नहीं डाला । एक जो बैठा हुआ था उसे डांटते हुए पूछा, यह तेरे सारे बड़े भाई भाग गए, तू क्यों नहीं भागा ? क्या तुझे अपने जीवन का भय नहीं था । कहा -नहीं पिताश्री । तूने क्या किया ? कहा मैंने इतना ही किया अनेक सारी थालियां थी, अपना भोजन उनका भोजन, जैसे ही कुत्ते आते गए, उनको देता गया । पिताश्री, जो सब को खिलाता है, वह स्वयं कभी भूखा नहीं रह सकता । जो दूसरों को बांटता है, वह कभी गरीब नहीं रह सकता । सुख बांटोगे, तो परमसुख परमात्मा आपको देगा । जो कुछ भी बांटोगे आप, परमात्मा आपको संपन्न करता रहेगा।

जहां साधक जनों इस त्याग की भावना का संदेश मिले, उसी को कहेंगे श्री राम शरणम्। यह स्थान ऐसा ही होना चाहिए । मिल जुल कर रहना साधक जनों । आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं, और यह श्री राम शरणम् अपने गुरुजनों की तरफ से, काठमांडू निवासी, नेपाल निवासियों को सौंपता हूं, संभालिएगा ।
डॉक्टर साहब सब लोग मिलकर संभालिएगा इस स्थान को । इस स्थान की साज संभार आपके हाथ । सफाई करनी है, रोज खोलना है, सत्संग का आयोजन, नियमों का पालन, यह सब कुछ आप के जिम्मे । मेहरबानी करके इस स्थान को खूब संभाल कर रखिएगा । खूब जाप पाठ हो।

गीता मंदिर के साथ आप लोगों का संबंध इतना घनिष्ठ हो गया है अब, कि दोनों को एक कहा जाए तो यह exaggeration नहीं, यह अतिशयोक्ति नहीं यह सत्य है। अब आध्यात्मिक संबंध भी स्थापित हो गया । गीता जी का ज्ञान गीता मंदिर में, भक्ति की साधना श्री राम शरणम् में, तो साधक की साधना पूर्ण हो जाएगी । उनके साथ भी पूरा सहयोग रखिएगा । जो कुछ पढ़ो, जो कुछ गीता जी में सुनो, उसका क्रियात्मक रूप आपको यहां करना है । यहां करने की चीज है, वहां सब सुनने की चीज है, समझने की चीज है । वहां पढ़ने की चीज है, यहां करने की चीज है । भक्ति की जाती है साधक जनों, ज्ञान किया नहीं जाता । ज्ञान तो सुना जाता है, पढ़ा जाता है, उपार्जन किया जाता है । भक्ति तो की जाती है । यह स्थान भक्ति करने के लिए है और यहां पर जाप किया जाता है, कीर्तन किया जाता है, भक्ति प्रकाश का पाठ किया जाता है, रामायण जी का पाठ किया जाता है । सब कुछ किया ही जाता है । सब कुछ करना ही करना होता है। अतएव ऐसी चीज का बहुत ही महत्व है। साधक जनों जहां किया जाता है, खूब डटकर करिएगा ।
पुन: आप सबको साधक जनों बहुत-बहुत बधाई देता हूं ।

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