Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((984))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५०१(501)*
*वचन के साधन (वाणी की महत्ता)*
*भाग-८*
एक राजा, एक मंत्री और उनके साथ एक नौकर, तीनों के तीनों वन में गए हैं । राजा के पास भी घोड़ा है । तीनों के पास एक एक घोड़ा होगा । जंगल में पहुंचकर राजा जंगल के मनोरम दृश्य देखकर खो सा गया है । बहुत अच्छा लगा उसे, कहने को जंगल, पर बहुत सुन्दर वाटिका जैसी सब कुछ बहुत systematic जैसे बगीचे में होता है । जंगल तो जंगल ही होता है । जंगल जंगली, लेकिन बगीचा तो जंगली नहीं होता । बगीचा तो बहुत systematic होता है ।
कहीं-कहीं light लगी हुई होती है । एक ही तरह के पेड़ होते हैं । एक ही तरह के फूल होते हैं । बड़े कतारों में होते हैं, इत्यादि इत्यादि । ऐसा ही वह जंगल था । राजा उसे देखकर तो खो से गए हैं ।
दूर एक सुंदर हिरण पर नजर पड़ी । राजा उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े । घोड़े पर थे । खूब तेज घोड़ा दौड़ाया । लेकिन हिरण भी कोई कम दौड़ने वाला नहीं था । उसकी speed भी बहुत अच्छी थी । दूर राजा को कहीं ले गया । हिरण पकड़ा भी नहीं गया, लेकिन राजा दूर चला गया है । इधर मंत्री एवं नौकर दोनों इंतजार कर रहे हैं राजा साहब की । जब लौटने में देरी लगी तो मंत्री महोदय ने कहा नौकर से-जाओ राजा साहब को
ढूंढो । निकल पड़ा है । दूर जाकर एक कुटिया आती है । कुटिया देखता है । उसके बाहर एक दृष्टिहीन महात्मा बैठे हुए हैं । यह नौकर जाकर उन्हें कहता है -
अरे ओ अंधे; इधर से कोई घोड़े वाला निकल कर तो नहीं गया । क्या तूने देखा है इधर से किसी को ? प्रश्न ही कैसा था । एक नेत्रहीन व्यक्ति, एक दृष्टिहीन व्यक्ति क्या देखेगा ? प्रश्न गलत है उसका । कहा मुझे पता नहीं, मुझे माफ करें, मुझे पता नहीं ।
नौकर को भी लौटने में देरी हो गई ।
तो मंत्री खुद निकल पड़े हैं ढूंढने के लिए । अब नौकर को भी ढूंढना है और राजा साहब को भी ढूंढना है । मंत्री साहिब भी उसी कुटिया के सामने पहुंचे हैं । उनसे कहते हैं - ओ साधु क्या इधर से कोई व्यक्ति निकले हैं। हाथ जोड़कर कहता है, मंत्री महोदय आपका नौकर आया था, इसके अलावा मुझे और कोई पता नहीं । थोड़ी देर के बाद उसी कुटिया के आगे राजा स्वयं आए हैं । आकर हाथ जोड़कर कहते हैं -साधु बाबा चरणों में प्रणाम स्वीकार करें । क्या मुझे खोजते खोजते कोई व्यक्ति इधर से निकले तो नहीं । हां, राजा साहब सबसे पहले आपका नौकर आया था । उसके बाद फिर आप के मंत्री महोदय आए थे । अब आप स्वयं पधारे हैं । तीनों इकट्ठे हुए हैं । मन में गहरी सोच । एक दृष्टिहीन व्यक्ति को कैसे पता लग गया की एक राजा है, एक मंत्री और एक नौकर ।
चलो उन्हीं से जाकर पूछते हैं । तीनों मिलकर उस दृष्टिहीन महात्मा के पास पहुंचे हैं । जाकर बैठ गए । राजा साहब ने पूछा महात्मन् आपको दिखाई तो देता नहीं। लेकिन कैसे पता लग गया कि हम में से एक राजा है, एक मंत्री और एक नौकर ।
महात्मा कहते हैं - राजा साहब व्यक्ति का व्यक्तित्व जानने के लिए दृष्टि की आवश्यकता नहीं, वाणी पर्याप्त है ।
नौकर ने आकर कहा - अरे ओ अंधे ।
मंत्री थोड़ा ज्यादा समझदार था,
उसने कहा - ओ साधु ।
आपने कहा - साधु महाराज, बाबा प्रणाम । व्यक्ति का वजन तोलने के लिए दृष्टि की आवश्यकता नहीं, उसकी वाणी पर्याप्त है, उसका वजन बताने के लिए ।
कितनी महत्वपूर्ण है हमारी वाणी साधक जनो । बिन आंखों, बिन दृष्टि के भी व्यक्ति का व्यक्तित्व पहचाना जाता है । इसके के माध्यम से । वाणी जो भी कहिएगा हमारे आचरण, हमारे व्यवहार के प्रतीक है । हमारा स्वभाव किस प्रकार का है, आप कितनी क देर तक उसे छुपा कर रखोगे । कितनी क देर तक उसे बदलकर रखोगे ।
एक ना एक दिन असलियत प्रकट होकर रहती है । पता लग जाता है, यह व्यक्ति क्रोधी है, यह व्यक्ति अभिमानी है, यह व्यक्ति ऊपर ऊपर से कुछ नम्र बन रहा है, वास्तव में नम्र है नहीं, इत्यादि इत्यादि ।
साधक जनो यह वाणी, यह जिव्हा इसको सिधाया ना जाए तो बड़ी क्लेश, कष्टदाई हो सकती है ।
बड़ी पुरानी बात कहीं बचपन में सुनी थी । एक किसी को सिगरेट सुलगाने के लिए matchbox की आवश्यकता थी, एक matchstick की आवश्यकता थी ।
अतएव सिगरेट पीने वाले को इधर पूछते हैं, इधर पूछते हैं, इधर पूछते हैं, आपके पास matchbox है जी, या किसी का सुलगता हुआ सिगरेट हो तो उसको कहते हैं कि आप सिगरेट दे दीजिएगा, थोड़ा मैं भी अपना सिगरेट सुलगा लूं । एक व्यक्ति के पास यह सिगरेट लेकर गए । कहने लगे आपके पास matchbox हो तो मुझे एक matchstick चाहिए सिगरेट सुलगाने के लिए । उसने कहा मेरे पास तो नहीं है,
वह सामने एक व्यक्ति खड़ा है, उसके पास है, आप उसके पास जाओ, उससे matchbox ले लो । वह व्यक्ति उनके पास चला गया है । जाकर कहता है, कुछ नहीं पूछा कि आपके पास है कि नहीं, क्योंकि उसने कहा इसके पास है, अतएव कहा मुझे मेहरबानी करके matchbox दे दीजिएगा । बेचारे को सिगरेट पिए बिना मुश्किल पड़ रही होगी, अतएव request कर रहा है, की मुझे matchbox दे दीजिएगा । इस ने भी कहा मेरे पास नहीं है ।
पुन: उसके पास गया । आप कहते उसके पास matchbox है, और वो कहता है कि उसके पास नहीं । झूठ बोलता है वह
व्यक्ति । कहता है झूठ बोलता है, फिर जाओ उसके पास । यह सिगरेट पीने वाला व्यक्ति फिर चला गया है । इस प्रकार से दो, तीन, चार चक्कर लगे । आखिर उस व्यक्ति ने जिसके पास यह बार-बार जा रहा था, उसने पूछा तुम्हें कौन भेज रहा है, मेरे पास बार-बार ?
तो उसने इशारा किया वह व्यक्ति ।
कहा चलो पूछते हैं । उसके पास जाकर डांटा । मेरे पास matchbox है नहीं, तो क्यों मेरे पास उसको बार-बार भेज रहा है । कहा माफ करना मैंने तो आपके लिए सुना है की आपके पास ऐसा matchbox है जिसने अनेक घर जला कर राख कर दिए और आप एक matchstick इसको सिगरेट सुलगाने के लिए नहीं दे सकते ।
किस की और इशारा था, जिव्हा की और । आपके पास ऐसी matchbox है, जिसने अनेक घर जलाकर राख कर दिए, मानो फूट फैलाने वाली, दूसरों के घर को आग लगाने वाली, इधर की बात कुछ, इधर की बात
कुछ । ऐसे लोग होते हैं ।
मत कहिएगा कि आपने ऐसे लोग देखे नहीं है । हम सबके हमारे जीवन में कोई ना कोई व्यक्ति इस प्रकार का देखने सुनने को मिल जाता है । जिसका काम यही है, जो दूसरों के परिवारों को, दूसरों के घरों को ।
वचन के साधनों की साधक जनो चर्चा यहीं समाप्त करते हैं । आज थोड़ी इस वक्त ईर्ष्या पर चर्चा शुरु कर देते हैं । परसों जारी
रखेंगे ।
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