भाग -2 रानी अहिल्या बाई साहिबा होल्कर 🇮🇳 भारतीय महिला शक्ति।

1 year ago
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******सेनापति के रूप में******
मल्हारराव के भाई-बंदों में तुकोजीराव होल्कर एक विश्वासपात्र युवक थे। मल्हारराव ने उन्हें भी सदा अपने साथ में रखा था और राजकाज के लिए तैयार कर लिया था। अहिल्याबाई ने इन्हें अपना सेनापति बनाया और चौथ वसूल करने का काम उन्हें सौंप दिया। वैसे तो उम्र में तुकोजीराव होल्कर अहिल्याबाई से बड़े थे, परंतु तुकोजी उन्हें अपनी माता के समान ही मानते थे और राज्य का काम पूरी लगन ओर सच्चाई के साथ करते थे। अहिल्याबाई का उन पर इतना प्रेम और विश्वास था कि वह भी उन्हें पुत्र जैसा मानती थीं। राज्य के काग़ज़ों में जहाँ कहीं उनका उल्लेख आता है वहाँ तथा मुहरों में भी 'खंडोजी सुत तुकोजी होल्कर' इस प्रकार कहा गया है।

******मराठी में किताबें******
पुण्यश्लोक अहिल्या एमएस दीक्षित
अहिल्याबाई – हीरालाल शर्मा
अहिल्याबाई चरित्र – पुरुषोत्तम
अहिल्याबाई चरित्र – मुकुंद वामन बर्वे
कर्मयोगिनी – विजया जहांगिरदार
ज्ञात-अज्ञात अहिल्याबाई होल्कर – विनया खडापेकर

******महिला सशक्तीकरण की पक्षधर******
भारतीय संस्कृति में महिलाओं को दुर्गा और चण्डी के रूप में दर्शाया गया है। ठीक इसी तरह अहिल्याबाई ने स्त्रियों को उनका उचित स्थान दिया। नारीशक्ति का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने यह बता दिया कि स्त्री किसी भी स्थिति में पुरुष से कम नहीं है। वे स्वयं भी पति के साथ रणक्षेत्र में जाया करती थीं। पति के देहान्त के बाद भी वे युध्द क्षेत्र में उतरती थीं और सेनाओं का नेतृत्व करती थीं। अहिल्याबाई के गद्दी पर बैठने के पहले शासन का ऐसा नियम था कि यदि किसी महिला का पति मर जाए और उसका पुत्र न हो तो उसकी संपूर्ण संपत्ति राजकोष में जमा कर दी जाती थी, परंतु अहिल्या बाई ने इस क़ानून को बदल दिया और मृतक की विधवा को यह अधिकार दिया कि वह पति द्वारा छोड़ी हुई संपत्ति की वारिस रहेगी और अपनी इच्छानुसार अपने उपयोग में लाए और चाहे तो उसका सुख भोगे या अपनी संपत्ति से जनकल्याण के काम करे। अहिल्या बाई की ख़ास विशेष सेवक एक महिला ही थी। अपने शासनकाल में उन्होंने नदियों पर जो घाट स्नान आदि के लिए बनवाए थे, उनमें महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था भी हुआ करती थी। स्त्रियों के मान-सम्मान का बड़ा ध्यान रखा जाता था। लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने का जो घरों में थोड़ा-सा चलन था, उसे विस्तार दिया गया। दान-दक्षिणा देने में महिलाओं का वे विशेष ध्यान रखती थीं।

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