रक्षक से भक्षक: कांग्रेस की रक्तरंजित राजनीति

1 day ago

कांग्रेस को स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन उसका इतिहास हिंसा, दमन और विश्वासघात से भरा है।

1948 में गांधी की हत्या के बाद चितपावन ब्राह्मणों पर हिंसक हमले कांग्रेस की मौन सहमति से हुए।

1966 के गोपाष्टमी आंदोलन में निहत्थे साधुओं पर गोली चलाकर कांग्रेस ने बहुसंख्यक समाज के धार्मिक भावों को कुचला।

1984 का सिख-विरोधी नरसंहार योजनाबद्ध राज्य–भीड़ गठजोड़ का परिणाम था, जिसमें कांग्रेस नेताओं और पुलिस की भूमिका उजागर हुई।

आपातकाल (1975–77) ने दिखाया कि सत्ता बचाने के लिए कांग्रेस लोकतांत्रिक संस्थाओं और नागरिक स्वतंत्रताओं को बेरहमी से कुचल सकती है।

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