भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की राह में रोड़ा: औपनिवेशिक सोच और वोक उपभोक्ता

4 days ago
3

विदेशियों की सदियों की हुकूमत और हमलों ने भारतीयों के मन में एक तरह की ग़ुलामी की आदत बसा दी है, जिससे हम अपने दमन करने वालों को ही महान मानने और उनकी सोच को अपनाने लगे हैं।

भारत में आज की उपभोक्तावादी संस्कृति अक्सर पश्चिम की नकल करती है और हमारे अंदर की असुरक्षा और हीन भावना का फ़ायदा उठाती है।

वोक सोच और नई ग़ुलामी का यह खतरनाक मेल भारत को बाज़ार और विचारों की परीक्षण भूमि बना रहा है।

सच्चाई यह है कि हम अपनी कला, परंपरा और शिल्प को तब तक अहमियत नहीं देते जब तक उसे पश्चिम वाले चुरा कर, चमका कर, और ‘मॉडर्न‘ बताकर वापिस हमें न बेच दें।

भारतीयों के दिल-दिमाग में बैठी यह हीन भावना ही हमारे सांस्कृतिक जागरण की सबसे बड़ी रुकावट है।

Loading comments...