हिंदू पीड़ा पर दुनिया की चुप्पी: केवल संयोग या सुनियोजित अनदेखी?

7 days ago
1

हॉलीवुड और वैश्विक सांस्कृतिक एलीट गाज़ा के लिए तो ज़ोर-शोर से एकजुट हो जाते हैं, लेकिन पहलगाम, 26/11, बांग्लादेश के नरसंहार या पश्चिम में बढ़ते एंटी-हिंदू अपराधों पर पूरी तरह खामोश रहते हैं।

इस्लामिस्ट और वाम-उदारवादी ग्रुप अपने मुद्दों को बहुत आक्रामक और योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ाते हैं। नतीजा यह है कि उनके मुद्दे मीडिया, कला और अकादमिक जगत में छा जाते हैं। इसके उलट हिंदू समाज के पास अपनी सही चिंताओं को दुनिया तक पहुँचाने की कोई मज़बूत व्यवस्था नहीं है।

पश्चिमी यूनिवर्सिटीज़ अक्सर हिंदू मुद्दों को “कट्टरपंथी” या “अल्पसंख्यक-विरोधी” कहकर उनकी नकारात्मक छवि बनाती हैं। यही छवि मीडिया और सांस्कृतिक जगत में दोहराई जाती है। नतीजतन हिंदुओं के मुद्दे या तो नज़रअंदाज़ हो जाते हैं या फिर अमान्य घोषित कर दिए जाते हैं।

दुख की बात यह है कि कई हिंदू अरबपति उन्हीं संस्थानों को दान देते हैं जो हिंदुओं के खिलाफ़ माहौल बनाते हैं। जबकि ज़रूरत इस बात की है कि वे वैश्विक स्तर पर हिंदू नैरेटिव खड़ा करने वाले सांस्कृतिक और बौद्धिक ढाँचों में निवेश करें।

अब वक्त आ गया है कि हिंदू, इस्लामिस्ट्स की रणनीति से सीख लें—यहूदी समुदाय जैसे साथियों से गठबंधन करें, सांस्कृतिक संस्थान खड़े करें, युवाओं को जोड़ें और ऐसा नैरेटिव सिस्टम बनाएँ जिससे दुनिया के मंचों पर हिंदुओं की आवाज़ दब न सके।

Loading comments...