आज़ादी का छलावा: तिरंगे की ओट में छिपा नेहरू-गाँधी परिवार का तानाशाही युग

10 days ago
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1947 की आज़ादी के बाद लोगों को उम्मीद थी कि भारत में नई और स्वदेशी व्यवस्था बनेगी, लेकिन हुआ यह कि सत्ता तो अंग्रेज़ों से कांग्रेस के हाथ में आई, पर औपनिवेशिक ढांचा, कानून और अंग्रेज़ी का वर्चस्व जैसे का तैसा बना रहा।

नेहरू इस विरोधाभास का मुख्य चेहरा थे। उन्होंने राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक कानून नहीं हटाए, अंग्रेज़ी को राज्य भाषा बनाए रखा और केंद्रीकृत नौकरशाही को जारी रखा, जिससे जनता और शासन के बीच दूरी बनी रही।

ग्राम-स्वराज्य और आत्मनिर्भरता के सपने की जगह कांग्रेस ने केंद्रीकृत योजना, सरकारी एकाधिकार और लाइसेंस-परमिट-राज लागू किया। इसका नतीजा था धीमी आर्थिक वृद्धि और जनता का विकास से कट जाना।

कांग्रेस धीरे-धीरे एक परिवार-केन्द्रित पार्टी बन गई। नेहरू से इंदिरा, फिर राजीव, सोनिया और राहुल तक नेतृत्व लोकतांत्रिक प्रक्रिया से नहीं, बल्कि वंशानुगत अधिकार से चलता रहा। इससे लोकतंत्र कमजोर हुआ और अभिजात्य वर्ग मज़बूत।

असहमति और विरोध को दबाना, राज्यों की चुनी सरकारों को गिराना और दशकों तक अधूरी मतदाता सूची पर चुनाव कराना, यह सब दिखाता है कि आज़ादी के बाद भी शासन का रवैया ब्रिटिश जैसा ही रहा, बस परदे पर लोकतंत्र लिखा गया।

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