न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था की ओर: वैश्विक दक्षिण का सांस्कृतिक पुनर्जागरण

11 days ago
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“तीसरी दुनिया” जैसी उपेक्षात्मक सोच को पीछे छोड़ते हुए, शीत युद्ध के बाद “वैश्विक दक्षिण” शब्द ने एक नई, गरिमापूर्ण पहचान बनानी शुरू की।

ग्लोबल साउथ को केवल उसकी गरीबी या आर्थिक स्थिति से नहीं समझा जा सकता, बल्कि उसके उपनिवेशवादी अतीत को भी ध्यान में रखना ज़रूरी है।

पिछले 10 सालों में ग्लोबल साउथ ने तेजी से उभर कर दिखाया है कि वह अपने उपनिवेश काल के पुराने नैरेटिव को चुनौती दे रहा है। वह अपनी सभ्यतागत पहचान से शक्ति ले रहा है और एक न्यायपूर्ण वैश्विक व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, जिसमें पश्चिमी देशों का वर्चस्व कम हो।

ग्लोबल साउथ अपनी साझा संस्कृति और इतिहास के आधार पर पश्चिमी दबदबे वाले विचारों का सामना कर सकता है।

ग्लोबल साउथ के लिए सभ्यता और भू-राजनीति दो अलग चीज़ें नहीं हैं—ये दोनों गहराई से जुड़ी हुई हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।

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