हिंदी का गला घोंटकर, धर्म से विच्छेद: एक सभ्यता के विनाश की मार्मिक कहानी

14 days ago

हिंदी केवल एक भाषा नहीं है — यह भारतीय सभ्यता की जीवनरेखा है। यह भारत के विविध क्षेत्रों को जोड़ती है, और हमें हमारे शास्त्रों, हमारी सांस्कृतिक जड़ों, और हिन्दू धर्म की जीवंत आत्मा से गहराई से जुड़ने में मदद करती है।

महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के त्रिभाषा फ़ार्मूले का हालिया विरोध, हिंदू विरोधी विमर्श के उस घिनौने रूप को दर्शाता है, जो राष्ट्रीय एकता को ताक पर रख हिंदी का घोर राजनीतिकरण करता है।

हिंदी को बढ़ावा देना न तो धर्मनिरपेक्षता के ख़िलाफ़ है और न ही संघीय ढांचे के। हमारा संविधान क्षेत्रीय भाषाओं को पूरा सम्मान और सुरक्षा देता है, साथ ही हिंदी को एक साझा भाषा के रूप में विकसित करने का भी समर्थन करता है, ताकि देश एकजुट रह सके।

अनुच्छेद 351 के तहत हिंदी को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है, न कि राज्यों की। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु उठाये गये कदमों का अगर कोई राज्य विरोध करता है, तो यह विरोध न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि देश के इस साझा उद्देश्य में रुकावट भी पैदा करता है।

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