जब तक हिन्दू मंदिर औपनिवेशिक जंजीरों में जकड़े रहेंगे, भारत का सांस्कृतिक उत्थान अधूरा रहेगा

19 days ago
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हिंदू मंदिर ऐतिहासिक रूप से भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन के केंद्र में रहने वाले जीवंत संस्थान रहे हैं।

ये केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं थे, बल्कि समाज कल्याण, शिक्षा, कला और स्थानीय शासन के केंद्र बिंदु थे।

लेकिन औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक शासन—विशेष रूप से वामपंथी इतिहास लेखन और विचारधारात्मक विमर्शों के ज़रिए—मंदिरों को योजनाबद्ध तरीके से शोषणकारी, जातिवादी और प्रतिगामी बताया गया।

मंदिरों की मूल भूमिका शास्त्रों, अभिलेखों और ऐतिहासिक साक्ष्यों में स्पष्ट रूप से दर्ज है।

आज ज़रूरत है कि इन थोपे गए दृष्टिकोणों को विस्थापित किया जाए और मंदिरों को उनके मूल धर्मिक स्वरूप में पुनर्स्थापित किया जाए।

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