अंग्रेजों द्वारा गढ़ी शूद्र उत्पीड़न की झूठी कथा: एक मिथक का खंडन

20 days ago

वास्तविकता यह है कि शूद्र और अन्य गैर-ब्राह्मण समुदाय अक्सर राजनीतिक सत्ता में रहे, शिक्षा तक पहुँच रखते थे और सामाजिक उन्नति भी हासिल करते थे।

पूर्व-औपनिवेशिक भारत में जाति की स्थिति स्थिर और शाश्वत नहीं थी, बल्कि स्थितियों और समय के अनुसार बदलती-ढलती रहती थी।

लेकिन औपनिवेशिक शासन ने नस्ल-विज्ञान और जनगणना के द्वाराभारतीय समाज की इन गतिशील पहचानों को एक कठोर “जाति व्यवस्था” में जकड़ दिया।

इस तरह “शूद्रों के संगठित उत्पीड़न” का मिथक ऐतिहासिक सच्चाई से अधिक एक औपनिवेशिक गढ़ंत साबित होता है, जो आज की राजनीति को भी प्रभावित करता है।

सच्चे अर्थों में डिकॉलोनाइज़ेशन के लिए ज़रूरी है कि हम भारत के सामाजिक ढाँचे की जटिलता, परिवर्तनशीलता और उसकी सहनशीलता को पहचाने।

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