स्मृतियों की हत्या: 1946 के बंगाल के हिन्दू नरसंहार को कैसे छुपाया जा रहा है

20 days ago

अहमद हुसैन ने The Wire में लिखा कि 1946 की हिंसा “न्याय के लिए किसानों का विद्रोह” थी। जबकि सच्चाई यह है कि यह हिंदुओं को निशाना बनाकर पाकिस्तान के नाम पर रचा गया सुनियोजित नरसंहार था।

यह दावा कि इस्लाम ने दलितों को सम्मान और हिंदू उत्पीड़न से मुक्ति दी, भ्रामक है। मुस्लिम समाज में आज भी ‘पसमांदा’ जैसी गहरी जातिगत असमानताएँ मौजूद हैं, जो इस मिथक को झुठलाती हैं।

जोगेंद्रनाथ मंडल को एक दलित उत्थान का उदाहरण बताना गलत है। पाकिस्तान में उनका राजनीतिक जीवन धोखे और निराशा में खत्म हुआ। हिंदुओं पर हुए अत्याचारों को देखकर वे 1950 में निर्वासन के लिए मजबूर हुए।

साम्प्रदायिक हिंसा को वर्गीय टकराव बताना हकीकत को झूठ में बदल देना है। यह बलात्कार, हत्याओं और जबरन धर्मांतरण जैसे अपराधों के पीछे की धार्मिक नीयत को ढक देता है और हिंदू पीड़ितों की याद का अपमान करता है।

जिहादी हिंसा को प्रगतिशील भाषा में लपेटकर पेश करना इतिहास को झूठा दिखाने जैसा है। इससे असलियत पर पर्दा पड़ता है और समाज विभाजन-काल की कड़वी सच्चाइयों को भूलने लगता है।

Loading comments...