जातिगत राजनीति बनाम हिंदू एकता: भारत की सभ्यतागत आत्मा के लिये संघर्ष

20 days ago

“सांस्कृतिक राष्ट्रवाद”की जो भावना आज भारत के सभ्यतागत पुनर्जागरण को दिशा दे रही है, उसमें जाति जैसे कृत्रिम ढांचे के लिए कोई स्थान नहीं है।

जहांहिंदू समाज एक ओर पहले से कहीं अधिक एकजुट हो रहा है और औपनिवेशिक दौर के विमर्श को चुनौती दे रहा है, वहीं दूसरी ओर भारतीय राजनीति अब भी जातिगत दलदल में फंसी हुई है।

संविधान में जाति आधारित आरक्षणपर दिया गया अत्यधिक ज़ोर — चाहे वह अनजाने में ही क्यों न हो — भारत में जाति तुष्टिकरण की राजनीति के लिए एक मज़बूत आधार बन गया है।

मोदी सरकार काजाति जनगणना कराने का फ़ैसला इस सच्चाई को उजागर करता है कि जाति आधारित राजनीति की पकड़ अब भी इतनी अधिक मज़बूत है कि कोई भी पार्टी — चाहे उसकी विचारधारा कुछ भी हो — इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।

वहीं दूसरी ओर,हिंदू आध्यात्मिक नेता लगातार उस जातिगत नैरेटिव को ध्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल दशकों से हिंदू समाज में आपसी फूट डालने के लिए किया जा रहा है।

साथ ही, वैश्विक स्तर पर फैल रही‘वोकिज़्म’ की विचारधारा, जो हिंदू जाति व्यवस्था को हर सामाजिक असमानता की जड़ के रूप में पेश करती है, भारत में जाति विमर्श के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को और भी ज़्यादा हवा दे रही है।

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