हानि-लाभ को परमात्मा की देन मानकर संतोष करे।

2 months ago
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मान अपमान

कबीर,
मान अपमान सम कर जानै, तजै जगत की आश।
चाह रहित संस्य रहित, हर्ष शोक नहीं तास।।

भक्त को चाहे कोई अपमानित करे, उस ओर ध्यान न दे।

उसकी बुद्धि पर रहम करे और जो सम्मान करता है,

उस पर भी ध्यान न दे यानि किसी के सम्मानवश होकर अपना धर्म खराब न करे।

हानि-लाभ को परमात्मा की देन मानकर संतोष करे।

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