माया दासी बनकर रहती है।

2 months ago
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चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसे, मिले राम अविनाशी।।

कबीर साहिब जी कहते हैं जहाँ चारों प्रकार की मुक्ति स्वयं सेवा में लगी होती हैं, माया वहाँ दासी बनकर रहती है। गरीबदास जी कहते हैं कि जब मैंने उस अविनाशी राम (सतपुरुष) के चरणों को पाया, तब मुझे निर्भय और सदा रहने वाला सुख प्राप्त हुआ।

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