ज्ञानवाद क्या है?

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ज्ञानवाद: एक रहस्यमयी यात्रा

क्या आपने कभी ऐसे धर्मों के बारे में सुना है जो ईसाई धर्म से जुड़े थे, पर उनसे अलग भी? ज्ञानवाद, या ग्नोस्टिसिज्म, ऐसा ही एक आकर्षक और रहस्यमय विषय है। यह प्राचीन यूनानी शब्द "ग्नोसिस" से आया है, जिसका अर्थ है "ज्ञान" या "जागरूकता"। पर यह सामान्य ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मिक, आंतरिक अनुभव पर आधारित ज्ञान था। यह एक ऐसा ज्ञान था जो भगवान के साथ सीधे जुड़ने से मिलता था।

यह धर्म लगभग पहली और दूसरी शताब्दी ईस्वी में मिस्र के अलेक्जेंड्रिया शहर के आसपास उभरा। इसमें यहूदी-ईसाई विचार, यूनानी दर्शन और अन्य धार्मिक परंपराओं का मिश्रण था। ज्ञानवादियों का मानना था कि भौतिक दुनिया अपूर्ण है, और मुक्ति का रास्ता केवल ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करके ही है। उन्होंने भगवान को एक सर्वोच्च शक्ति मानते थे, जिससे अन्य देवता निकले थे। कुछ ज्ञानवादी मानते थे कि यीशु एक दिव्य शिक्षक थे, तो कुछ उन्हें एक भ्रामक नेता मानते थे। यहाँ तक कि यीशु के बारे में अलग अलग ज्ञानवादी विचार थे।

1945 में नाग हममादी पुस्तकालय की खोज ने ज्ञानवाद के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह बदल दिया। इससे पहले, हमारी जानकारी ज्यादातर उनके विरोधियों की लिखी बातों पर आधारित थी, जो उन्हें ईसाई धर्म से अलग बताते थे। पर नाग हममादी से मिले ग्रंथों ने दिखाया कि ज्ञानवाद कितना विविध और जटिल था।

ज्ञानवाद के कई उपसंप्रदाय थे, जिनमें से हर एक की अपनी मान्यताएँ थीं। कुछ समूहों ने प्लेटो के दर्शन से प्रभावित होकर भौतिक दुनिया को अपूर्ण, लेकिन पूरी तरह से बुरा नहीं माना। दूसरे समूहों ने प्रकाश और अंधकार के बीच एक बड़े संघर्ष के बारे में बताया। यह धर्म कई शताब्दियों तक फला-फूला और बाद में यूरोप के विभिन्न हिस्सों में भी दिखाई दिया।

ज्ञानवाद का इतिहास हमें सिखाता है कि सत्य एक नहीं हो सकता, और अलग अलग विचारों का होना स्वाभाविक है। धार्मिक मान्यताओं को समझने के लिए हमें पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर, खुले मन से सभी पक्षों को देखना चाहिए। अलग-अलग परंपराओं और विचारों का अध्ययन करके ही हम अपनी खुद की समझ को समृद्ध कर सकते हैं और दुनिया को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।

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