ओशो आंदोलन का इतिहास

3 months ago
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एक रोमांचक यात्रा: ओशो आंदोलन का उदय और पतन

कल्पना कीजिए, एक ऐसा समय जब एक भारतीय रहस्यवादी, भगवान श्री रजनीश, जिन्हें ओशो के नाम से भी जाना जाता है, ने दुनिया भर में ध्यान और आध्यात्मिक जागरण की लहर ला दी। १९३१ से १९९० तक जीवित रहे ओशो ने १९५८ में सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू किया, जहाँ उन्होंने ध्यान और मुक्त प्रेम के आदर्शों का प्रचार किया। उनके विचारों ने कई लोगों को आकर्षित किया, और जल्द ही उनके अनुयायी, जिन्हें रजनीशी या "ऑरेंज पीपल" के रूप में जाना जाता था, एक विशाल आंदोलन का निर्माण किया।

रजनीश के विचारों ने समाज में विवाद भी उत्पन्न किया। भारत में हिंदू नैतिकता और बाद में अमेरिका में ईसाई नैतिकता पर उनके आक्रमक विचारों ने बहुत विरोध किया। सोवियत संघ में, उनके विचारों को "भारतीय संस्कृति के सकारात्मक पहलुओं" के विपरीत माना गया। १९८० के दशक की शुरुआत में ओरेगन में रजनीशपुरम नामक उनके आश्रम ने स्थानीय समुदाय में तनाव पैदा कर दिया। कई अपराधों, जिसमें एक हत्या का प्रयास और जैविक आतंकवाद भी शामिल था, के कारण आंदोलन और भी विवादास्पद हो गया। इसके परिणामस्वरूप ओशो को १९८५ में अमेरिका से निष्कासित कर दिया गया।

हालांकि, ओशो के निधन के बाद, भारत में आंदोलन को अधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन अब पुणे में ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट का संचालन करता है। हालांकि, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क विवादों ने भी आंदोलन को प्रभावित किया। आज भी दुनिया भर में कई छोटे केंद्र सक्रिय हैं।

यह यात्रा हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाती है: आध्यात्मिक विकास की चाहत एक सराहनीय लक्ष्य है, लेकिन इसके पीछे की प्रेरणा और तरीके महत्वपूर्ण हैं। सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए, हमें सहिष्णुता, शांति और सच्चाई के मूल्यों का पालन करना चाहिए। आइए, हम अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाएँ और एक बेहतर दुनिया बनाने में योगदान दें। आप भी ध्यान और आत्म-जागरूकता की यात्रा पर निकलने का प्रयास करें, और देखें कि यह आपके जीवन में क्या परिवर्तन लाता है!

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