Geeta Gyan || Adhyay -1 || Part-11 @geeta gyan|

1 month ago
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तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् कृपया परयाऽऽविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला | अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति अर्जुन ने कहा - हे कृष्ण ! इस प्रकार युद्ध कि इच्छा रखने वाले मित्नों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंगू काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है | तात्पर्य
यथार्थ भक्ति से युक्त मनुष्य में वे सारे सदुण रहते हैं जो सत्पुरुषों या देवताओं में पाये जाते हैं जबकि अभक्त अपनी शिक्षा या संस्कृति के द्वारा भौतिक योग्यताओं में चाहे कितना ही उन्नत क्यों न हो इस इश्वरीय गुणों से विहीन होता है | अतः स्वजनों, मित्रों तथा सम्बन्धियों को युद्धभूमि में देखते ही अर्जुन उन सबों के लिए करुणा से अभिभूत हो गया, जिन्होनें परस्पर युद्ध करने का निश्चय किया था | जहाँ तक उसके अपने सैनिकों का सम्बन्ध थे, वह उनके प्रति प्रारम्भ से दयालु था, किन्तु विपक्षी दल के सैनिकों कि आसनन मृत्यु को देखकर वह उन पर भी दया का अनुभव कर रहा था | और जब वह इस प्रकार सोच रहा था तो उसके अंगों में कंपन होने लगा और मुँह सूख गया | उन सबको युद्धाभिमुख देखकर उसे आश्चर्य भी हुआ | प्रायः सारा कुटुम्ब, अर्जुन के सगे सम्बन्धी उससे युद्ध करने आये थे | यद्यपि इसका उल्लेख नहीं है, किन्तु तो भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि न केवल उसके अंग काँप रहे थे और मुँख सूख रहा था अपितु वह दयावश रुदन भी कर रहा था | अर्जुन में ऐसे लक्षण किसी दुर्बलता के कारण नहीं अपितु हृदय की कोमलता के कारण थे जो भगवान् के शुद्ध भक्त का लक्षण है |
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।
गाण्डीवं संसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीब धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है | तात्पर्य
शरीर में दो प्रकार का कम्पन होता है और रोंगटे भी दो प्रकार से खड़े होते हैं | ऐसा या तो आध्यात्मिक परमानन्द के समय या भौतिक परिस्थितियों में अत्यधिक भय उत्पन्न होने पर होता है | दिव्य साक्षात्कार में कोईभय नहीं होता | इस अवस्था में अर्जुन के जो लक्षण हैं वे भौतिक भय अर्थात् जीवन की हानि के कारण हैं | अन्य लक्षणो से भी यह स्पष्ट है; वह इतना अधीर हो गया कि उसका विख्यात धनुष गाण्डीव उसके हाथों से सरक रहा था और उसकी त्वचा में जलन उत्पन्न हो रही थी | ये सब लक्षण देहात्मबुद्धि से जन्य हैं | न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ |

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