Premium Only Content

श्रीमद् भगवत गीता | अध्याय 1-Part-6 | कुरुक्षेत्र के युद्धस्थि में सैन्यटनरीक्षण | #bhagwadgeeta
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः । पौण्डूं दध्मौ महाशङ्ख भीमकर्मा वृकोदरः
भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा भयंकर कर्म करने वाले भीम ने पौण्डू नामक महाशंख बजाया।
तात्पर्य
इस श्लोक में भगवान् कृष्ण को हृषीकेश कहा गया है क्योंकि वे ही समस्त इन्द्रियों के स्वामी हैं | सारे जीव उनके भिन्नांश हैं अतः जीवों की इन्द्रियाँ भी उनकी इन्द्रियों के अंश हैं | चूँकि निर्विशेषवादी जीवों कि इन्द्रियों का कारण बताने में असमर्थ हैं इसीलिए वे जीवों को इन्द्रियरहित या निर्विशेष कहने के लिए उत्सुक रहते हैं | भगवान् समस्त जीवों के हृदयों में स्थित होकर उनकी इन्द्रियों का निर्देशन करते हैं | किन्तु वे इस तरह निर्देशन करते हैं कि जीव उनकी शरण ग्रहण कर ले और विशुद्ध भक्त की इन्द्रियों का तो वे प्रत्यक्ष निर्देशन करते हैं । यहाँ कुरुक्षेल कि युद्धभूमि में भगवान् कृष्ण अर्जुन की दिव्य इन्द्रियों का निर्देशन करते हैं इसीलिए उनको हृषीकेश कहा गया है | भगवान् के विविध कार्यों के अनुसार उनके भिन्न-भिन्न नाम हैं | उदाहरणार्थ, इनका एक नाम मधुसूदन है क्योंकि उन्होंने मधु नाम के असुर को मारा था, वे गौवों तथा इन्द्रियों को आनन्द देने के कारण गोविन्द कहलाते हैं, वसुदेव के पुल होने के कारण इनका नाम वासुदेव है, देवकी को माता रूप में स्वीकार करने के कारण इनका नाम देवकीनन्दन है, वृन्दावन में यशोदा के साथ बाल-लीलाएँ करने के कारण ये यशोदानन्दन हैं, अपने मित्न अर्जुन का सारथी बनने के कारण पार्थसारथी हैं | इसी प्रकार उनका एक नाम हृषीकेश है, क्योंकि उन्होंने कुरुक्षेल के युद्धस्थल में अर्जुन का निर्देशन किया | इस श्लोक में अर्जुन को धनगचय कहा गया है क्योंकि जब इनके बड़े भाई को विभिन्न यज्ञ सम्पन्न करने के लिए धन की आवश्यकता हुई थी तो उसे प्राप्त करने में इन्होंने सहायता की थी | इसी प्रकार भीम वृकोदर कहलाते हैं क्योंकि जैसे वे अधिक खाते हैं उसी प्रकार वे अतिमानवीय कार्य करने वाले हैं, जैसे हिडिम्बासुर का वध | अतः पाण्डवों के पक्ष में श्रीकृष्ण इत्यादि विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विशेष प्रकार के शंखों का बजाया जाना युद्ध करने वाले सैनिकों के लिए अत्यन्त प्रेरणाप्रद था | विपक्ष में ऐसा कुछ न था; न तो परम निदेशक भगवान् कृष्ण थे, न ही भाग्य की देवी (श्री) थीं | अतः युद्ध में उनकी पराजय पूर्वनिश्चित थी - शंखों की ध्वनि मानो यही सन्देश दे रही थी |
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्त्रो युधिष्ठिरः । नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ
कुन्तीपुत्त्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्त विजय नामक शंख और नकुल व सहदेव ने क्रमशः सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये।
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्
हे राजन् ! श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी तथा धृष्टद्युम्न एवं राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद और द्रौपदी के पाँचों पुत्त्र तथा लम्बी-लम्बी भुजाओंवाले सुभद्रा-पुत्ल अभिमन्यु - इन सभी ने सब ओर से अलग-अलग (अपने-अपने) शंख बजाये।
तात्पर्य
संजय ने राजा धृतराष्ट्र को अत्यन्त चतुराई से यह बताया कि पाण्डु के पुत्रों को धोखा देने तथा राज्यसिंहासन पर अपने पुत्त्रों को आसीन कराने का अविवेकपूर्ण नीति श्छाघनीय नहीं थी | लक्षणों से पहले से ही यह सूचित हो रहा था कि इस महायुद्ध में सारा कुरुवंश मारा जायेगा | भीष्म पितामह से लेकर अभिमन्यु तथा अन्य पौत्नों तक विश्व के अनेक देशों के राजाओं समेत उपस्थित सारे के सारे लोगों का विनाश निश्चित था | यह सारी दुर्घटना राजा धृतराष्ट्र के कारण होने जा रही थी क्योंकि उसने अपने पुत्त्रों की कुनीति को प्रोत्साहन दिया था।
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् । नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्
इन बिभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्बी को शन्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्नों के हृदयों को बिदीर्ण करने लगी |
तात्पर्य
जब भीष्म तथा दुर्योधन के पक्ष के अन्य वीरों ने अपने-अपने शंख बजाये तो पाण्डवों के हृदय विदीर्ण नहीं हुए | ऐसी घटनाओं का वर्णन नहीं मिलता किन्तु इस विशिष्ट श्लोक में कहा गया है कि पाण्डव पक्ष में शंखनाद से धृतराष्ट्र के पुत्त्रों के हृदय विदीर्ण हो गये | इसका कारण स्वयं पाण्डव और भगवान् कृष्ण में उनका विश्वास है | परमेश्वर की शरण ग्रहण करने वाले को किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता चाहे वह कितनी ही विपत्ति में क्यों न हो |
अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः । प्रवृत्ते शस्त्रसंपाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्त्रन अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ | हे राजन! धृतराष्ट्र के पुत्नों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे |
तात्पर्य
युद्ध प्रारम्भ होने ही वाला था | उपर्युक्त कथन से ज्ञात होता है कि पाण्डबों की सेना की अप्रत्याशित व्यवस्था से धृतराष्ट्र के पुल बहुत कुछ निरुत्साहित थे क्योंकि युद्धभूमि में पाण्डबों का निर्देशन भगवान् कृष्ण के आदेशानुसार हो रहा था | अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चिन्ह भी विजय का सूचक है क्योंकि हनुमान ने राम तथा रावण युद्ध में राम कि सहायता की थी जिससे राम विजयी हुए थे | इस समय अर्जुन की सहायता के लिए उनके रथ पर राम तथा हनुमान दोनों उपस्थित थे | भगवान् कृष्ण साक्षात् राम हैं और जहाँ भी राम रहते हैं वहाँ नित्य सेवक हनुमान होता है तथा उनकी नित्यसंगिनी, वैभव की देवी सीता उपस्थित रहती हैं | अतः अर्जुन के लिए किसी भी शलु से भय का कोई कारण नहीं था | इससे भी अधिक इन्द्रियों के स्वामी भगवान् कृष्ण निर्देश देने की लिए साक्षात् उपस्थित थे | इस प्रकार अर्जुन को युद्ध करने के मामले में सारा सत्परामर्श प्राप्त था
-
LIVE
DoldrumDan
5 hours agoRAREST WEAPON - CHALLENGE RUN - First Playthrough - Elden Ring ?! DAY 18
25 watching -
LIVE
darkprometheus112
6 hours agoContinuing MindsEye l Day 2
17 watching -
LIVE
B_DubzZ
36 minutes ago🔴Live | Warzone
27 watching -
1:13:58
Larry O'Connor
17 hours ago🚨BREAKING: Democrat Governors TORCHED LIVE! Newsom Attacks OUR SHOW!
9.09K31 -
8:22
Nate The Lawyer
1 day ago $1.01 earnedTikTok’s #1 Star Detained & Self DEPORTED in Trump’s Immigration Blitz!
8.8K8 -
53:21
The Chris Cuomo Project
22 hours agoHow Trump MANUFACTURED the Perfect Political Crisis
18.3K40 -
5:02
Sugar Spun Run
21 hours ago $2.29 earnedPasta Salad
76.7K6 -
8:19
The Art of Improvement
17 hours ago $7.15 earnedHow to Improve Your Decision-Making
26.7K5 -
3:55
The Official Steve Harvey
11 hours ago $2.30 earnedTop 5 Motivation Moments with Steve Harvey | Part 1
18K5 -
18:37
Lacey Mae ASMR
11 hours ago $5.07 earnedASMR Plucking Your Negative Energy and Sending Positive Affirmations!
31.5K10