श्रीमद् भगवत गीता |अध्याय 1||कुरुक्षेत्र के युद्धस्थि में सैन्यटनरीक्षण | Part-3 | अर्जुन विशद योग

1 month ago
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अत्न शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः
भावार्थ: इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं- यथा महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद
तात्पर्य
यद्यपि युद्धकला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष धृष्टद्युम्न महत्त्वपूर्ण बाधक नहीं था किन्तु ऐसे अनेक योद्धा थे जिनसे भय था । दुर्योधन इन्हें विजय-पथ में अत्यन्त बाधक बताता है क्योंकि इनमें से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के समान दुर्जेय था। उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था, इसीलिए वह अन्यों की तुलना इन दोनों से करता है।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् । पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः
भावार्थः इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजितू, कुन्तिभोज तथा शैब्य जेसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं।

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् । सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः
भावार्थः पराक्रमी युधामन्यु, बलवान् उत्तमौजा, सुभद्रापुल (अभिमन्यु) और द्रोपदी के पुल ये सब महारथी हैं।०
तात्पर्य
यहाँ (पाण्डवों की सेना में) बड़े-बड़े शूरवीर हैं, जिनके बहुत बड़े-बड़े धनुष हैं तथा
जो युद्ध में भीम और अर्जुन के समान हैं। उनमें युयुधान (सात्यकि), राजा विराट
और महारथी द्रुपद भी हैं। धृष्टकेतु और चेकितान तथा पराक्रमी काशिराज भी हैं।
पुरुजित् और कुन्तिभोज--ये दोनों भाई तथा मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य भी हैं। पराक्रमी
युधामन्यु और पराक्रमी उत्तमौजा भी हैं। सुभद्रापुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के
पाँचों पुत्त्र भी हैं। ये सब-के-सब महारथी हैं।

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