"सच्चे न्याय, मार्गदर्शन और जीवन की शिक्षा" मत्ती 7:1-29.#shorts #shortsvideo #youtube #youtubeshort

4 months ago
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"सच्चे न्याय, मार्गदर्शन और जीवन की शिक्षा" मत्ती 7:1-29.#shorts #shortsvideo #youtube #youtubeshorts
मत्ती 7:1-29 में यीशु विभिन्न नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षाएं देते हैं, जो उनके "पहाड़ी उपदेश" (Sermon on the Mount) का हिस्सा है। इस खंड में, यीशु जीवन जीने के सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यहाँ कुछ मुख्य बिंदुओं का वर्णन है:

न्याय न करो (मत्ती 7:1-5):
यीशु दूसरों की आलोचना और निंदा करने से पहले आत्म-निरीक्षण करने की शिक्षा देते हैं। वे कहते हैं कि जिस माप से आप दूसरों का न्याय करेंगे, उसी माप से आपका भी न्याय होगा। पहले अपने दोष देखें, फिर दूसरों की मदद करने के लिए तैयार हों।

पवित्रता की रक्षा (मत्ती 7:6):
यहां यीशु सलाह देते हैं कि पवित्र और मूल्यवान चीज़ों को उन लोगों के साथ साझा न करें जो उनकी कदर नहीं करते। इसे प्रतीकात्मक रूप से "कुत्तों" और "सूअरों" का उदाहरण देकर बताया गया है।

प्रार्थना और खोज (मत्ती 7:7-11):
यीशु कहते हैं कि यदि आप मांगेंगे, तो आपको दिया जाएगा; यदि आप खोजेंगे, तो आपको मिलेगा; और यदि आप दस्तक देंगे, तो आपके लिए द्वार खोला जाएगा। वे परमेश्वर की कृपा और प्रेम की तुलना एक अच्छे पिता से करते हैं, जो अपने बच्चों को केवल अच्छी चीजें देता है।

स्वर्ण नियम (मत्ती 7:12):
यीशु यह सिखाते हैं कि जैसा व्यवहार आप दूसरों से चाहते हैं, वैसा ही उनके साथ भी करें। यह नियम संपूर्ण व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं के संदेश का सार है।

संकरी और चौड़ी राह (मत्ती 7:13-14):
यीशु दो रास्तों के बारे में बात करते हैं: एक संकरी राह जो जीवन की ओर ले जाती है और एक चौड़ी राह जो विनाश की ओर ले जाती है। संकरी राह पर चलने वाले कम होते हैं, लेकिन यह मार्ग सच्चे जीवन की ओर ले जाता है।

झूठे भविष्यवक्ताओं से सावधान रहें (मत्ती 7:15-20):
यीशु झूठे भविष्यवक्ताओं के बारे में चेतावनी देते हैं, जो भेड़ के भेष में आते हैं, लेकिन अंदर से भेड़िए होते हैं। उन्हें उनके फलों (कर्मों) से पहचाना जाएगा। एक अच्छा पेड़ अच्छे फल देता है, जबकि बुरा पेड़ बुरे फल देता है।

सच्चे अनुयायी (मत्ती 7:21-23):
यीशु यह स्पष्ट करते हैं कि केवल उन्हें "प्रभु" कहने से कोई स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा, बल्कि वही जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं। वे ऐसे लोगों से कहेंगे, "मैं तुम्हें नहीं जानता।"

बुद्धिमान और मूर्ख व्यक्ति का उदाहरण (मत्ती 7:24-27):
यीशु अपने उपदेश को एक उदाहरण के साथ समाप्त करते हैं: जो व्यक्ति उनकी बातों को सुनकर उन पर अमल करता है, वह उस बुद्धिमान व्यक्ति के समान है जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। विपरीत परिस्थितियों में उसका घर अडिग रहता है। जबकि जो व्यक्ति उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता, वह उस मूर्ख व्यक्ति के समान है जिसने अपना घर रेत पर बनाया, जो तूफान में गिर जाता है।

लोगों की प्रतिक्रिया (मत्ती 7:28-29):
जब यीशु ने अपना उपदेश समाप्त किया, तो लोग चकित रह गए क्योंकि वह अधिकारपूर्वक शिक्षा दे रहे थे, जैसा कि किसी अन्य शिक्षक ने नहीं किया।

इस प्रकार, मत्ती 7:1-29 में यीशु नैतिकता, आत्म-निरीक्षण, ईश्वर पर विश्वास, और जीवन के सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं।
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