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"प्रार्थना का आदर्श" मत्ती 6:9,10 |#shortsvideo #shorts #youtubeshorts #youtube #yt #ytshortsindia
मत्ती 6:9-10 का विवरण
श्लोक:
मत्ती 6:9:
"इस प्रकार प्रार्थना करो: ‘हे हमारे पिता, जो स्वर्ग में हैं, तेरा नाम पवित्र माना जाए।"
मत्ती 6:10:
"तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में होती है, वैसी पृथ्वी पर भी हो।"
संदर्भ और अर्थ
1. पृष्ठभूमि
संदर्भ:
यह प्रार्थना येशु मसीह द्वारा उनके शिष्यों को दी गई थी। इसे "प्रभु की प्रार्थना" (The Lord's Prayer) के नाम से जाना जाता है और यह मत्ती के सुसमाचार के छठे अध्याय में स्थित है। यह "पर्वत प्रवचन" (Sermon on the Mount) का हिस्सा है, जिसमें येशु ने अपने शिष्यों और अनुयायियों को शिक्षाएं दीं।
2. अर्थ और महत्व
मत्ती 6:9 – भगवान की महिमा:
"हे हमारे पिता, जो स्वर्ग में हैं, तेरा नाम पवित्र माना जाए।"
व्याख्या: इस श्लोक में येशु सिखाते हैं कि प्रार्थना की शुरुआत ईश्वर की महिमा से करनी चाहिए। "हे हमारे पिता" कहकर, प्रार्थना करने वाला व्यक्ति भगवान के साथ व्यक्तिगत और निकट संबंध को स्वीकार करता है। "तेरा नाम पवित्र माना जाए" का अर्थ है कि ईश्वर के नाम को आदर और सम्मान दिया जाए। यह व्यक्ति को याद दिलाता है कि भगवान का नाम पवित्र और सम्माननीय है।
आध्यात्मिक महत्व:
ईश्वर का महिमामंडन: यह पंक्ति हमें अपने जीवन में ईश्वर को सबसे पहले रखने और उनकी पवित्रता को सम्मान देने का महत्व सिखाती है।
व्यक्तिगत संबंध: "हमारे पिता" शब्द भगवान के साथ व्यक्तिगत और विश्वास भरे संबंध को दर्शाते हैं।
मत्ती 6:10 – भगवान का राज्य और इच्छा:
"तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में होती है, वैसी पृथ्वी पर भी हो।"
व्याख्या: इस श्लोक में येशु के अनुयायी भगवान के राज्य के आगमन और उनकी इच्छा के पूरे होने की प्रार्थना करते हैं। "तेरा राज्य आए" का अर्थ है कि भगवान का न्यायपूर्ण और प्रेममय राज्य स्थापित हो। "तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में होती है, वैसी पृथ्वी पर भी हो" से आशय यह है कि लोग ईश्वर की इच्छा को समझें और उसे अपने जीवन में लागू करें।
आध्यात्मिक महत्व:
ईश्वर का राज्य: यह इच्छा व्यक्त करता है कि पृथ्वी पर भगवान का राज्य स्थापित हो, जहां सच्चाई, प्रेम और न्याय का वास हो।
आत्मसमर्पण: यह पंक्ति आत्मसमर्पण और भगवान की इच्छा के प्रति समर्पण को दर्शाती है। इसमें व्यक्ति भगवान की योजना को अपने जीवन में प्राथमिकता देने की कामना करता है।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ
ईसाई धार्मिक जीवन में स्थान:
"प्रभु की प्रार्थना" ईसाई पूजा में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे प्रार्थना का एक आदर्श मॉडल माना जाता है। यह प्रार्थना ईसाई समुदायों में प्रतिदिन की प्रार्थनाओं में शामिल की जाती है और विशेष रूप से पवित्र भोज और अन्य धार्मिक समारोहों में प्रयोग की जाती है।
सांस्कृतिक महत्व:
भारत में ईसाई समाज: भारत में, जहां ईसाई धर्म कई सांस्कृतिक और भाषाई समुदायों में फैला हुआ है, यह प्रार्थना विभिन्न भाषाओं में की जाती है। यह सांस्कृतिक विविधता के बावजूद ईसाई विश्वास के एकीकृत पहलू को दर्शाती है।
निष्कर्ष
मत्ती 6:9-10 प्रार्थना में भगवान की महिमा और उनके राज्य की कामना की अभिव्यक्ति करता है। यह ईश्वर के प्रति समर्पण और उनके मार्गदर्शन में चलने की प्रेरणा देता है। यह प्रार्थना न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामुदायिक जीवन में भी गहरी आध्यात्मिक समझ प्रदान करती है।
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