आपको अपने लक्ष्य तक ले जाने के लिए मजबूर कर देगी हिंदी कहानी|motivation story in Hindi ||

4 months ago
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कहानियाँ जो आपको अपने लक्ष्य तक ले जाने के लिए मजबूर कर देगी
1. सफलता का रहस्य - सुकरात
एक बार एक व्यक्ति ने महान दार्शनिक सुकरात से पूछा कि "सफलता का रहस्य क्या है?" - सफलता का राज क्या है?
सुकरात ने उस इंसान से कहा कि वह कल सुबह नदी के पास मिला, जहां उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिला।
दूसरे दिन सुबह जब वह एक व्यक्ति नदी के पास मिला तो सुकरात नेसे नदी में उतरकर, नदी की गहराई के बारे में बताया।
वह व्यक्ति नदी में उतरकर आगे की तरफ जाने लगा| जैसे ही पानी उस व्यक्ति के नाक तक पहुंचा, पीछे से सुकरात ने अचानक अपने मुंह में पानी डाला। वह व्यक्ति बाहर नौका के लिए झटपटाने लगा, प्रयास करने लगा लेकिन सुकराट काफी हद तक मजबूत थे। सुकरात ने उन्हें काफी देर तक पानी में डब्बे में रखा।
कुछ समय बाद सुकरत ने उसे छोड़ दिया और उस व्यक्ति ने जल्दी-जल्दी मुंह में पानी भरकर बाहर ले जाकर जल्दी-जल्दी सांस ली।
सुकरात ने उस व्यक्ति से पूछा - "जब तुम पानी में थे तो तुम क्या चाहते थे?" व्यक्ति ने कहा – “जल्दी से बाहर की ओर सांस लेना चाहता था।”
सुकरात ने कहा - ''यही फ़ेस प्रश्न का उत्तर है। जब तुम्हें सफलता मिलती है तो तुम्हारी सफलता निश्चित रूप से मिल जाएगी।
2.अभ्यास का महत्व
प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में ही पढ़ते थे। बच्चे को शिक्षा ग्रहण कराने के लिए गुरुकुल में भेजा गया। बच्चे को गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में आश्रम में देखभाल की जाती थी। और भी अध्ययन किया।
वरदराज को सभी प्रकार के गुरुकुल द्वारा भेजा गया। आश्रम में अपने साथियों के साथ वहाँ मिलना हुआ।
लेकिन वह पढ़ने में बहुत ही ख़राब था। गुरुजी की कोई भी बात उनकी बहुत कम समझ में आती थी। इस कारण सभी के बीच वह उपहास का कारण बनता है।
उसके सभी दोस्त अगली कक्षा में चले गए लेकिन वे आगे नहीं बढ़े।
गुरुजी ने भी आख़िरकार हार मानकर उससे कहा, “बेटा वरदराज़! मैं सारा प्रयास करके देख लेता हूं। अब यही होगा कि तुम यहां अपना समय बर्बाद मत करो। अपने घर चले जाओ और दोस्तों की काम में मदद करो।"
वरदराज ने भी सोचा था कि शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं है। और भारी मन गुरुकुल से घर के लिए निकल गया। दो का समय था. रास्ते में उसे प्यास लग गई। इधर उधर देखने पर पता चला कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलाएं कहानियों से पानी भर रही थीं। वह कुवे के पास गया।
वहाँ पेप पर बैल के आने से निशान बने हुए थे,तो उसने महिलाओ से पूछा, “यह निशान तुमने कैसे बनाया।”
तो एक महिला ने जवाब दिया, “बेटे यह निशान हमें नहीं चाहिए।” यह तो पानी खींचते समय इस कोमल भालू के बार-बार आने से ठोस पत्थर पर भी ऐसे निशान बन गए।"
वरदाराज सोच में पड़ गया। उन्होंने विचार किया कि जब एक कोमल से भालू के बार-बार आने से एक ठोस पत्थर पर गहरा निशान बन सकता है तो निरंतर अभ्यास से विद्या ग्रहण क्यों नहीं कर सकते।
वरदराज पूरे उत्साह के साथ वापस गुरुकुल आये और काफी कड़ी मेहनत की। गुरुजी ने भी दी खुशी, उत्साहवर्धक सहायता। कुछ ही प्राचीन बाद येही मंदबुद्धि बालक वरदराज आगे आश्रम संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बना। जो लघुसिद्धा जीनोमकौमुदी, रशीदसिद्धा डेवलपरकौमुदी, सारसिधा सिद्धार्थकौमुदी, गिर्वानपदमंजरी की रचना की।
शिक्षा(नैतिक):
दोस्तो अभ्यास की शक्ति का तो कहना ही क्या है। यह आपका हर सपने को पूरा करेगा। अभ्यास बहुत जरूरी है कि कागज़ वो खेल हो जो पढ़ाई में या किसी अन्य चीज़ में हो। बिना अभ्यास के आप सफल नहीं हो सकते। यदि आप अभ्यास के बिना केवल योग्यता के साथ बैठे रहेंगे, तो अंतिम रूप से मैं आपको पछतावे के सिवा और कुछ हाथ नहीं लगाऊंगा। अभ्यास के साथ धैर्य, मेहनत और लगन के साथ आप अपनी मंजिल को पाने के लिए निकल पड़ें।
3. नवोन्वेष बिंद्रा: जिद और जुनून ने मॅक्स गोल्ड
ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल मिलने से हर भारतवासी खुशी से झूम उठा। बिंद्रा की जिद और पैस ने उन्हें इस जगह पर पहुंचाया है। बैंकॉक में आयोजित वर्ल्ड शूटिंग रैंकिंग में बिंद्रा की टीम के साथ काम करने वाले राष्ट्रीय स्टूडियो में श्वेता चौधरी ने कहा कि बिंद्रा ने जो कहा, वह दिखावा कर रहे हैं। ओलम्पिक टीम की ओर से ब्राइट मीडियम ऑर्क ने जगह बनाई नाकाम रूक में। श्वेता ने बताया कि बिंद्रा ओलंपिक गोल्ड के लिए पिछले चार साल से लगातार मेहनत कर रहे थे। बिंद्रा ने जो कहा, उसने दिखाया।
ऐसी बदली दुनिया में श्वेता बताती हैं कि एथेंस ओलिंपिक के बाद अभिनव के व्यवहार में चेन्ज आईं। एथेंस ओलम्पिक में पदक हासिल न करने के बाद ही उन्होंने कहा कि उन्हें अगला मौका (बीजिंग ओलम्पिक) नहीं मिलेगा। एक स्मरण सुनाते हुए श्वेता ने कहा कि जब बैंकॉक में विश्व रैंकिंग के दौरान भारतीय टीम के अन्य खिलाड़ी शाम को सिटी घूमने गए थे, तो बिंद्रा जिम में बेवकूफ बना रहे थे। एथेंस ओलिंपिक में इनोवेटिव इनोवेटिव को मेडल नहीं मिलने का सदमा ऐसा लगा कि उनके व्यवहार में काफी बदलाव आ गया। उसके बाद से वह आरक्षित रहने लगा। इससे पहले वह साथियों के बीच ग्यान-हंसी-मज़ाक करते थे। इसके बाद वह कॉन्स्टेंटिस्टा में प्रशिक्षु अभ्यास करने लगे।
श्वेता ने बताया कि बिंद्रा ने खुद को अपने लिए प्राइवेट कोच, पैडकोलॉजिस्ट व फिजियो नियुक्त किया था। इसके बावजूद, छोटे एलिज़ाबेथ ने अपने मेडल एन रेज़्यूमे में कई बार अपनी आलोचना भी की है, लेकिन अध्ययन करने वालों को पता था कि इनोवेशन में वह क्षमता है, जो बड़ी प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए बोलते हैं। उनकी साखी ओलम्पिक ही थी। कृपया चैनल को सब्सक्राइब कर वीडियो को लाइक व दोस्तों में शेयर करें
4. भारत रत्न प्राप्त डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के एक गाँव धनुरामकोडी में हुआ था। इनके पिता, व्यवसायी को नाव किराए पर दी गई थी। कलाम ने अपनी पढ़ाई के लिए धन की प्राप्ति के लिए पेपर पत्रिका का काम भी किया। डॉ. कलाम ने जीवन में कई उपन्यासों का सामना किया। उनका जीवन सदा संघर्षशील रहने वाले एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसने मनी नहीं खोई और देशहित में अपना सर्वस्व न्योछावर करते रहे, सदा उत्कृष्टता के पथ पर बने रहे। 71 साल की उम्र में भी वे काफी मेहनत करते हुए भारत को सुपर पावर बनाने की ओर प्रयासरत थे।
भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। वे भारत रत्न से सम्मानित होने वाले तीसरे राष्ट्रपति हैं। भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक, डॉ. कलाम ने देशों को 'अग्नि' और 'पृथ्वी' जैसी मिसाइलों को डेक, चीन और पाकिस्तान को यूक्रेनी रेंज में, दुनिया को चौंका दिया।
एक बार एयरफोर्स के पाइलेट के साक्षात्कार में 9वें नंबर पर आने के कारण (कुल आठ ऑर्केस्ट्रा का चयन करना था) उन्हें निराश होना पड़ा।
वे ऋषिनाथ बाबा शिबानंद के पास चले गए और उनकी व्यथा देखी।
बाबा ने उनसे कहा:-
अपने भाग्य को स्वीकार करें और अपने जीवन के साथ आगे बढ़ें। एयरफोर्स पायलट बनना आपकी किस्मत में नहीं है। आपका क्या बनना तय है यह अभी प्रकट नहीं हुआ है लेकिन यह पूर्व निर्धारित है। इस विफलता को भूल जाओ, क्योंकि यह तुम्हें तुम्हारे अस्तित्व तक ले जाने के लिए आवश्यक थी। अपने आप में एक हो जाओ, मेरे बेटे। अपने आप को ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पित कर दो।
बाबा शिवानंद के कथन का अर्थ यह था कि दुर्भाग्य से निराश होने की आवश्यकता नहीं है। यह आपकी दूसरी सफलताओं का द्वार खोल सकता है। पृष्ठभूख जीवन में पता लगाना है, इसका पता नहीं। आप कर्म करो, ईश्वर पर विश्वास करो।
डॉ. कलाम का जीवन, हर उस नवयुवक के लिए आदर्श प्रेरणा स्रोत है, जो अपने जीवन में एक असफल मुलाकात पर ही निराश हो जाते हैं। डॉ. कलाम ने अपने संपूर्ण जीवन में निःस्वार्थ सेवा कार्य किया। उनके राष्ट्र प्रेम और देश का जज्बा हर भारतीय के लिए सबक और प्रेरणा का पुंज है और हमेशा रहेगा।
5. महान गणितज्ञ रामानुजन: धुन के पक्के
रामानुजन का जन्म एक गरीब परिवार में 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के शहर में हुआ था। उनके पिता एक बेरोजगारी की दुकान पर क्लर्क का काम करते थे। रामानुजन के जीवन पर उनकी माँ का बहुत प्रभाव था। जब वे 11 वर्ष के थे, तब उन्होंने एसएल लोनी द्वारा गणित की किताब की पूरी मास्टरी कर ली थी। गणित का ज्ञान तो उन्हें ईश्वर के यहाँ से ही मिला था। 14 साल की उम्र में उन्हें मेरिट सर्टिफिकेट और कई अवॉर्ड मिले। वर्ष 1904 में जब वे टाउन इन्स्टाग्राम से स्नातक पास की, तो उन्हें के। रंगनाथ राव पुरस्कार, लालची कृष्ण स्वामी अय्यर द्वारा प्रदान किया गया।
साल 1909 में उनकी शादी हुई, उसके बाद साल 1910 में उनका एक ऑपरेशन हुआ। युवाओं के पास उनका ऑपरेशन कौशल पर्याप्त राशि नहीं था। एक डॉक्टर ने उनका फ्री में यह ऑपरेशन किया था। इस ऑपरेशन के बाद रामानुजन की नौकरी की तलाश में छोड़ दिया गया। वे मद्रास में जगह-जगह नौकरी के लिए घूमते हैं। इसके लिए उन्होंने निशान भी लगाए। वे पुनः बीमार पड़ गए।
इसी बीच वे गणित में अपना कार्य करते रहे। ठीक होने के बाद, उनके संपर्क नेलौर के जिला रजिस्ट्रार-रामचंद्र राव से हुए। वह रामानुजन के गणित कार्य से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने रामानुजन की आर्थिक मदद भी की।
वर्ष 1912 में उन्हें मद्रास के प्रमुख अकौंटेंट कार्यालय में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। वे ऑफिस का कार्य शीघ्र पूरा करने के बाद, गणित का अध्ययन करते रहे, इसके बाद वे इंग्लैंड चले गए। वहां उनके काम को काफी सराहना मिली। उनके गणित के अनुठे ज्ञान को बहुत अच्छा रिकॉर्ड मिला।
वर्ष 1918 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो (ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो) चुना गया। वह पहले भारतीय थे, जिसमें इस सम्मान (पद) के लिए चयन किया गया था।बहुत मेहनत और धुन के पक्के थे। कोई भी विषम परिस्थिति, आर्थिक कठिनाइयाँ, बीमारी एवं अन्य परेशानियाँ उन्हें अपनी 'धुन' से नहीं दूँगा। वे अन्ततः सफल हुए।
आज उन्हें विश्व के महान गणितज्ञों में शामिल किया गया है। 32 साल की छोटी सी उम्र में ही हो गया था इस साज़िश व्यक्तित्व का देहवासन। दुनिया ने एक महान गणितज्ञ को खो दिया। हमारी ये "वास्तविक जीवन प्रेरणादायक कहानियाँ हिंदी में आपको कैसी लगी?  चैनल को सब्सक्राइब करके कमेंट में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें!

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