"ANTARVYATHA" HINDI STORY BY AMRITA PREETAM |अमृताप्रीतम की हिंदी कहानी अन्तरव्यथा

6 months ago
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"ANTARVYATHA" HINDI STORY BY AMRITA PREETAM |अमृताप्रीतम की हिंदी कहानी अन्तरव्यथा
story Narration SANJAY SHUBHANKAR
CREATIVE CONSULTANT ASIFA KAYNAT
ज़िंदगी के एक बहुत ही अलग रंग की कहानी जो दिल को बैचैन कर देती है .रिश्तों की कथा व्यता और अंतर्व्यता को बखूबी बयान करती है कहानी "अंतरव्यथा " नीचे के कपडे
अमृता प्रीतम हिंदी और पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है।प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। अमृता प्रीतम को भारत – पाकिस्तान की बॉर्डर पर दोनों ही तरफ से प्यार मिला।
प्रीतम को उनकी मार्मिक कविता, अज्ज आखां वारिस शाह नू (आज मैं वारिस शाह का आह्वान करता हूं - "ओड टू वारिस शाह") के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, जो 18वीं सदी के पंजाबी कवि के लिए एक शोकगीत है, और विभाजन के दौरान नरसंहारों पर उनकी पीड़ा की अभिव्यक्ति है। भारत की।
अगर अमृता की आत्मा के शब्द पढ़ने हों, उनकी विद्रोही जिंदगी के एक-एक मासूम पल से गुजरना हो, ‘रसीदी टिकट’ की अतल गहराइयों में उतर जाइए, उनकी भावनाओं, उनके शब्दों के सारे पते-ठिकाने पन्ना-पन्ना खुलते चले जाते हैं. वह लिखती हैं – ‘सबसे पहला विद्रोह मैंने नानी के राज में किया था. देखा करती थी कि रसोई की एक परछत्ती पर तीन गिलास, अन्य बर्तनों से हटाए हुए, सदा एक कोने में पड़े रहते थे. ये गिलास सिर्फ तब परछत्ती से उतारे जाते थे, जब पिताजी के मुस्लिम दोस्त आते थे और उन्हें चाय या लस्सी पिलानी होती थी और उसके बाद मांज-धोकर फिर वहीं रख दिए जाते थे.’ ‘रसीदी टिकट’ के पन्ने पलटते हुए किसी को भी बखूबी अहसास हो जाता है कि प्रेम में सिर से पांव तक डूबी रहने वाली अमृता आजाद खयाल, खुद्दारी से लबरेज लेखक थीं, अमृता ने एक दिन लिखा, ‘सोच रही हूं, हवा कोई भी फ़ासला तय कर सकती है, वह आगे भी शहरों का फ़ासला तय किया करती थी. अब इस दुनिया और उस दुनिया का फ़ासला भी जरूर तय कर लेगी…’
उपन्यासकार के रूप में अमृता की पहचान ‘पिंजर’ से हुई.
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