Sadhna Satsang Bhag 30

9 months ago
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परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1154))

*रामायणी साधना सत्संग*
*किष्किन्धाकाण्ड भाग-३०(30)*

*भगवान श्री राम जी का परम भक्त श्री हनुमान जी एवं सुग्रीव जी से मिलन व बाली वध*

दंडक वन में ही रहती है शूर्पणखा । इसी को मन कहा जाता है दंडक को । इसी में वासना रहती है, और इसी में भक्तिमय वृत्ति भी रहती है, भावना भी रहती है । वासना प्रभु से दूर करती है, जैसा शूर्पणखा ने कर दिखाया है । भक्तिमय भावना परमेश्वर से जोड़ कर रखती है । यह दोनों वृत्तियां हम सबके मनों में भी हैं । भगवान की सुग्रीव के साथ मित्रता हो गई है । अग्नि परिक्रमा हुई। बड़ी घनिष्ठ मित्रता । भगवान ने अपनी ओर से मित्र बनाया है, पर सुग्रीव को भक्त ही कहिएगा । मानो दो भक्त मिले हैं, एक हनुमान जी महाराज और दूसरे सुग्रीव ।

हनुमान जी महाराज के बारे में तो दो राय ही नहीं हो सकती । वह तो परम अनन्य भक्त हैं। उन्हें कुछ नहीं चाहिए ।
निष्काम भक्त हैं, निश्छल भक्त हैं, निष्कपट भक्त हैं, अनन्य भक्त हैं । सुग्रीव के विषय में थोड़ा सोचना पड़ेगा । है तो सुग्रीव भी भक्त ही, लेकिन यह ऐसा भक्त है जो भगवान के जब साथ होता है, तो भक्ति की भावना बनी रहती है, और जैसे ही थोड़ा बाहर जाता है, तो विषयों में रम जाता है, संसार में रम जाता है । अभी आपने देखा जैसे ही उसको विजय प्राप्त हुई है, अपना काम उसका सध गया है, तो वह जाकर महल में बैठ गया हुआ है ।

अभी लक्ष्मण जी महाराज गए हैं उसे याद दिलाने के लिए ।
Come out, बाहर आइएगा मेहरबानी करके । पर वह तो महल में चले गए हैं । ऐसे भक्त को भी भगवान अपना कर रखते हैं ।
हनुमान जी को तो कुछ नहीं कहा कि तेरे साथ मेरा संबंध क्या है, तेरे साथ मैंने संबंध जोड़ लिया है, कोई शब्द नहीं कहे ।
हां, तू तो मुझे लक्ष्मण से भी दुगना प्रिय है, इतना कहा ।

सुग्रीव को क्या कहा है,
तेरे मिलने से पहले हम चार थे, अब पांच। सुग्रीव जैसे विषयी भक्त को भगवान ने अपना भाई बना लिया है, अब हम पांच हो गए, पहले चार थे, अब पांच । इसी मित्रता के बलबूते पर सुग्रीव बाली को जाकर ललकारता है । तारा समझाती है लेकिन बाली समझते नहीं । जब अपने अति प्रिय कोई समझाएं, अपने हितकारी कोई समझाए, परम हितकारी कोई समझाए, और बात समझ में ना आए, तो समझ लीजिएगा कोई अनिष्ट होने वाला है । बाली के साथ भी ऐसा ही हुआ । तारा की बात नहीं मानी । इससे पहले कभी नहीं कहा उसने,
आप मत लड़ो सुग्रीव से ।
ना जाने कितनी बार लड़ाई हुई होगी इससे पहले । लेकिन आज कहा है, तो इसका कोई कारण विशेष होगा, जिस पर बाली ने कोई ध्यान नहीं दिया और चले गए, और मर गए। राम ने मार दिया उनको, खत्म कर दिया ।

बाली उलाहना देता है, अभी मूर्छित पड़े हुए हैं, मरे नहीं । उलाहना देता है -
प्रभु मुझे किस कारण मारा है ?
प्रभु राम कहते हैं -
बाली तूने अपने छोटे भाई का राज्य भी हड़प कर लिया और उसकी पत्नी भी जो है वह छीन ली ।
बाली पूछता है महाराज क्या यही कारण, इसी कारण से मुझे मारा है ?
राम कहते हैं नहीं और कारण भी हैं ।
वह क्या है ?
प्रभु कहते हैं -
तूने अपनी पत्नी तारा ने जो उपदेश दिया था उस पर भी ध्यान नहीं दिया । मानो तेरे अंदर अभिमान इतनी चरम सीमा पर चला गया हुआ था, और मैंने अवतार लिया है ऐसे दोनों पापों को दूर करने के लिए, ऐसे दोनों दुर्गुणों को दूर करने के लिए । जहां भक्तजनों रामचरित्र की बात आती है, वहां यह कहा जाता है जिस में अभिमान आ जाता है, राम उसका अभिमान नष्ट कर देते हैं ।
जो छोटा होता है, उसकी लघुता को दूर कर देते हैं ।

भगवान अपने श्रीमुख से कहते हैं -
मेरा अवतार, मैं उनको निर्भय कर देता हूं, मेरा अवतार इन्हीं कारणों से हुआ है । जो अभिमानी व्यक्ति होता है, अपने आप को बड़ा मानने वाला होता है, उसका अभिमान मैं नष्ट कर देता हूं, और जो अपने आप को छोटा मानता है, लघु मानता है, उसकी लघुता की भावना जो है वह निकाल देता हूं, और उसे भी ऊपर ले आता हूं । अपने जैसा या दूसरों जैसा, जैसे सामान्य व्यक्ति होते हैं, भाई अपने आप को छोटा ना मान ।
तेरा काम उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बड़ों का काम । तू किसी भी प्रकार से छोटा नहीं है

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