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Ramayani Sadhna Satsang Bhag 20
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1144))
*रामायणी साधना सत्संग*
*अयोध्या काण्ड भाग-२० (20)*
*महाराज श्री दशरथ का परलोक गमन एवं श्री भरत का अयोध्या आगमन*
भक्तजनों कुछ भी कहिए आप, देखने से तो यही लगता है, और समझने से भी यही लगता है, दशरथ जैसा भक्त कोई नहीं ।
पुत्र के जाने के कुछ ही देर बाद, मानो भगवान से वियोग के कुछ ही देर के बाद, एक भक्त ने प्राण त्याग दिए हैं ।
ऐसी होनी चाहिए एक भक्त की भक्ति । हमें तो उनके बिना जीते हुए पता नहीं कितने युग बीत गए हैं । राजा दशरथ कुछ दिन भी जिंदा ना रह सके ।
आज महारानी कौशल्या एक पथिक के हाथ संदेश भेजती है । यह कभी बात आपने सुनी नहीं होगी । कोई चित्रकूट की तरफ जा रहा है, उस पथिक को बुलाकर कहती है । पथिक यदि तू चित्रकूट की ओर जा रहा है, तो वहां मेरे राम को मिलना । जाकर मेरा यह संदेश देना । मेरा संदेश मैं अपनी तरफ से नहीं दे रही ।
क्या कहूं मां वापस बुला रही है, अयोध्या वापस आ जाओ । ना । मेरा ऐसा अधिकार नहीं है राम पर । काश ! मैं दशरथ जैसी होती जो कुछ ही दिनों के बाद मर गया ।
मैं तो अभी जिंदा हूं । मेरा अधिकार राम पर इस प्रकार का नहीं है, कि मैं उनको अधिकार से कह सकूं कि वह अयोध्या लौट आए । मैं तो मात्र यह कहना चाहती हूं, उन्हें कहना, तुम्हारे घोड़े तुम्हें बहुत याद करते
हैं ।
कैसा है राम इससे व्यक्ति ही प्यार नहीं करते, इससे घोड़े भी उतना ही प्यार करते हैं, संभवतया मानवों से अधिक । कहते हैं जिस वक्त सुमंत्र घोड़े लेकर वापस लौट रहा था, रथ को लेकर वापस लौट रहा था, घोड़े हिनहिनाए और उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे । मानो उनके हृदय में भी परमात्मा से बिछड़ने की बड़ी वेदना थी । मां कौशल्या भी यही कह रही है । अरे जिन घोड़ों पर तू, जिन की पीठ थपथपाता था ना, जिन्हें प्रेम करता था, वह तुम्हें बहुत याद करते हैं । पथिक मैं मानती हूं, वह तेरी बात नहीं मानेगा । वह कहेगा नहीं, यह गलत है ।
जो भरत है ना, वह मेरे से कहीं अधिक, मानो सौ गुना मेरे से अधिक प्रेम घोड़ों को दे सकता है । वह कहेगा जरूर यह बात,
तुम सुन लेना । मैं उसकी मां हूं । मैं उसके हृदय को जानती हूं, कि वह क्या-क्या शब्द बोलेगा ? वह यह शब्द तुम्हें कहेगा, जो भरत है ना वह मेरे से सौ गुना अधिक प्रेम उन्हें दे सकता है । पीठ उनकी थपथपाता होगा, प्रेम से खाना खिलाता होगा । चारा, दाना इत्यादि सब कुछ देता होगा ।
लेकिन एक बात उसे कहना -
तू ठीक कहता है । भरत तेरे से सौ गुना अधिक प्रेम दे सकता है, और दे रहा है । कोई शक नहीं इसमें । पर मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूं, मेरी तरफ से यह बोलना,
जितना भरत यह प्रेम अधिक देता है, उतने घोड़े तुझे अधिक याद करते हैं, उतनी उन्हें तेरी अधिक याद आती है ।
वह भरत का सांवला शरीर, उन्हें भरत की याद नहीं दिलाता, उन घोड़ों को तेरी याद दिलाता है । यह मां कौशल्या घोड़ों की तरफ से उस पथिक को संदेश दे रही है । राजा दशरथ यदि उनके विरह वियोग में मर गए हैं, तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है ।
देवियो सज्जनो भक्त वास्तव में ऐसा ही होना चाहिए । यदि जिंदा भी है तो वह प्राण हीन जिंदा है । प्राण तो भगवान के साथ ही रहते हैं, प्राण तो परमात्मा के साथ ही रहते हैं । यदि भक्त, आज का भक्त कोई मरा हुआ दिखाई नहीं देता, तो उसके पीछे भी कोई कारण होगा ? लेकिन वह होता तो प्राण हीन है, प्राण शून्य है । भले ही वह जीवित दिखाई देता है, लेकिन परमात्मा के वियोग में प्राण नहीं होते उसके अंदर, ऐसे ही जैसे लाश जिंदा घूमती है, वैसे ही वह अपने जीवन को बिताता है ।
जीवन बिताता है या वह बिताती है ।
धन्यवाद भक्तजनों । कोटि कोटि प्रणाम ।
राजा दशरथ के मरणोपरांत उनका शव तेल में preserve कर दिया गया है, रख दिया गया है । महर्षि वशिष्ठ जी को मुख्य पद प्रदान करके, सचिव भरत जी को बुलाने के लिए चले गए हैं । एक सप्ताह की यात्रा के बाद भारत लौटे हैं, अयोध्या । भरत जी के अयोध्या आगमन पर वह सीधे अपने महल में, अपनी मां के महल में जाते हैं । पहली बार है, जब उन्हें राजा दशरथ उन्हें वहां दिखाई नहीं देते । सारी बातचीत मां से पूछते हैं । पहले वे थोड़ी बात को छुपाती है, उसके बाद पूरे का पूरा भेद वह खोल देती है । भरत को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। यह क्या कर दिया ?
राजधर्म की, राजवंश की, मर्यादा जो है, वह तूने भंग कर दी । हमारे वंश की मर्यादा यह हैं, जेष्ठ पुत्र को राज्य मिलता है । आपने क्या काम कर दिया ।
बड़ा कुकर्म कर दिया, बड़ा पाप कर्म कर दिया, बड़ा अपयशकारी कर्म कर दिया आपने । बहुत मां को गाली निकालते हैं । यह जो कुछ भी तूने रचा है षड्यंत्र, यह कभी तेरा पूरा नहीं होगा, कह कर आगे निकलते हैं । देखे भक्तजनों आज जो कुछ भी आपने पढ़ा है, भरत जैसा भक्त आज तक कोई नहीं हुआ, और संभावना भी नहीं कि उन जैसा भक्त कोई होगा, ऐसी मान्यता है शास्त्र में ।
सर्वप्रथम शंका करी है उस पर मां कौशल्या ने । उसके बाद यहीं पर कथा समाप्त नहीं हो जाती । उसके बाद जिस वक्त वह निषाद के पास गए हैं, तो उन्होंने भी शंका करी है। इतना ही नहीं इसके बाद वह महर्षि भारद्वाज के आश्रम में पहुंचे हैं, वहां भी यह शंका करी है उनके ऊपर । इन सब बातों को लांघता हुआ एक साधक किस प्रकार से राममिलन तक पहुंचता है । भक्तजनों करेंगे इस बात की चर्चा आज रात को । एक साधक की साधना और आरंभ हुई है आज । भरत जी महाराज की साधना, राम जी महाराज की साधना की अपेक्षा यह बहुत गहरी साधना है, बहुत गहन साधना है ।
किसी ने पूछा राम का तप श्रेष्ठ है या भरत का ? तुलसीदास ने तुरंत जवाब दिया,
भरत का । राम का तप तो कुछ भी नहीं है भरत के तप के सामने । जितना तपस्वी, त्यागी जीवन भरत ने व्यतीत किया है, जिस प्रकार की साधना भरत ने साधी है, वह साधना राम जी की या सीता जी की साधना नहीं है । सीता जी की साधना भी राम जी की साधना से बड़ी है, लेकिन भरत की साधना तो इन दोनों की साधनाओं से बहुत ऊंची है । करेंगे भक्तजनों आज रात को इस बात की चर्चा थोड़ी । यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद ।
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