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Ramayani Sadhna Satsang Bhag 12
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1137))
*रामायणी साधना सत्संग*
*बालकांड की समाप्ति अयोध्याकांड का शुभारंभ भाग-१२*
*रामराज्य का प्रस्ताव*
*अहिल्या*
वापिस अयोध्या लौट आते हैं।। भरत जी महाराज अपने मामा के साथ अपने ननिहाल चले जाते हैं । शत्रुघ्न भी साथ जाते हैं । इसके साथ ही बालकांड की संपन्नता होती है । अयोध्या कांड का शुभारंभ होता है ।
अब आगे की भूमिका अयोध्या कांड की बनाई जा रही है । भगवान की लीला देखिएगा आज अपराह्न क्या होता है ?
रामराज्य का प्रस्ताव, राम के गुणों को देखते हुए, वर्णन करते हुए, राजा दशरथ की ओर से आता है । एक दिन दर्पण देखते है ।
संत महात्मा कहते हैं दशरथ में और दशमुख में एक बड़ा अंतर है । दशरथ स्वयं दर्पण देखता है, रावण दूसरों को दर्पण दिखाता है। बड़ा अंतर है । जा तू अपना मुख शीशे में जा कर देख । ऐसी बात कहने में और स्वयं दर्पण देखने में बहुत अंतर है । स्वयं दर्पण आप लोग देखते हैं तो अपने मुख को जहां जहां भी कहीं धब्बा, दाग इत्यादि लगा हुआ होता है, उसे साफ कर लेते हैं । साधक को भी यह दर्पण नित्य देखते रहना चाहिए । बाहरी सजावट सज्जा, सौंदर्य के लिए नहीं, भीतर झांकने के लिए ।
मन को दर्पण कहा जाता है । इसका निरीक्षण नित्य करते रहना चाहिए । अपने आप को उस दर्पण में नित्य निहारते रहना चाहिए । इन्होंने भी देखा है । राम गुणवान पाया है । अपना अंतकाल समीप पाया है, तो सोचा राम को राज्य दे दिया जाए ।
तैयारी हो रही है । सब कुछ मान गए है । उधर देवर्षि नारद,
अध्यात्म रामायण में वर्णन आता है,
प्रांगण में राजा राम, मातेश्वरी सीता विराजमान है । आपस में बातचीत हो रही है। उसी वक्त वीणा की झंकार करते हुए देवर्षि नारद आकाश मार्ग से नीचे उतरते हैं। प्रणाम करते हैं । प्रभु ब्रह्मा जी का भेजा हुआ आया हूं । पिताश्री ने भेजा है । देवर्षि नारद ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं । ब्रह्मा जी का भेजा हुआ आया हूं महाराज । याद दिलाने के लिए । उन्होंने कहा है प्रभु राम को याद दिला दो । यहां राज्याभिषेक की तैयारी हो रही है, और आप किसी और काम के लिए अवतरित हुए हुए हैं । मैं वह याद दिलाने के लिए आया हूं ।
आप ने रावण को मारना है महाराज ।
आपने प्रण लिया हुआ है । इसलिए अवतार लिया हुआ है कि धरती का बोझ हल्का करेंगे । मैं वही याद दिलाने के लिए आपको आया हूं ।
प्रभु राम कहते हैं चिंता ना करो । ऐसा कभी नहीं होगा । जाओ । उनको लौटा देते हैं । होता तो वही है ना, हो तो वही रहा है, जो राम चाहते है, जो उन्होंने रच रखा हुआ है। जो उन्होंने विधि बना रखी हुई है, बिल्कुल उसी अनुसार ही होता जा रहा है । राम अनभिज्ञ नहीं है । मानव है, नर बने हुए हैं, इसलिए वह मासूम, भोले-भाले बने हुए हैं, अनभिज्ञ बने हुए हैं । पर कृति तो सारी उन्हीं की है, बागडोर तो उन्हीं के हाथ में है। आइए भक्तजनों अहिल्या के उद्धार की बात करते हैं ।
अहिल्या
सुबह आपसे अर्ज करी गई थी की इसे थोड़ा विस्तार पूर्वक देखेंगे । यह अहिल्या कौन है ? ब्रह्मा की पुत्री है । कहते हैं अति सुंदर, बहुत सुंदर । तभी तो बुद्धि की प्रतीक है । बुद्धि भी तो हमारी अति सुंदर है । यदि विवेक युक्त है, ठीक दिशा में लगी हुई है, तो अति सुंदर है । इसी के कारण तो हम बुद्धि जीव हैं, इसी के कारण तो हम मानव हैं ।
यदि यह हमारे अंदर ना होती तो हम भी कहीं पशु पक्षी, इत्यादि कीट इत्यादि बने हुए होते । इसी के कारण, इसी बुद्धि के कारण हम बुद्धिजीवी हैं, मानव हैं, इसी की उत्कृष्टता के कारण । विवेक युक्त यदि बुद्धि है, ज्ञान युक्त यदि बुद्धि है, परमेश्वर के श्री चरणों में लगी हुई बुद्धि है, तो इस जैसी सुंदरता और किसी में नहीं ।
अहिल्या अति सुंदर है । इंद्र को पता लग गया है । ब्रह्मा जी ने एक बहुत सुंदर पुत्री की सृष्टि करी है । मैं स्वर्ग का देवता हूं, मालिक हूं । इसका विवाह मेरे साथ ही करेंगे। यह अपने मन में उसने ठान ली । ब्रह्मा जी के पास एक और व्यक्ति भी है जिसे महर्षि गौतम कहते हैं ।
दो लोग हैं इस अहिल्या को पाने वाले । देखते हैं ब्रह्मा जी महाराज किस को चुनते
हैं । एक का भोगी जीवन है, दूसरे का त्यागी जीवन है । मानो यह संकेत दे रहे हो ब्रह्मा जी महाराज हमारी बुद्धि को, भोगी जीवन की ओर जाना चाहिए या हमारी बुद्धि को त्यागी जीवन की ओर जाना चाहिए । आखिर वह त्यागी जीवन को ही, तपस्वी जीवन को ही चुनते हैं । मानो हमारी बुद्धि कैसी भी है, कैसी भी क्यों ना हो, इस बुद्धि को त्याग के साथ जुड़ना चाहिए, इस बुद्धि को तप के साथ जुड़ना चाहिए ना कि भोग के साथ । जब भोग के साथ जुड़ जाती है, तो यह बुद्धि जड़ बुद्धि हो जाती है ।
विवाह तो महर्षि गौतम के साथ अहिल्या का हो गया । ब्रह्मा जी बहुत समझदार पिता है। इसलिए विवाह जो है वह महर्षि गौतम के साथ कर दिया । लेकिन इंद्र भूल नहीं पा रहा। इस बात को । उसने अपना अपमान ही माना है इसको । लेकिन साथ ही साथ वह अहिल्या के सौंदर्य को याद करता रहता है। किसी ना किसी ढंग से इसे पाकर रहूंगा ।
आज कूटनीति का प्रयोग करके,
जानता है महर्षि गौतम सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के लिए बाहर जाते हैं। आज उससे भी पहले, मानो इंद्र देवता को सारी रात नींद नहीं । आई कुकर्म करने जा रहा है । कुकर्म करना, पाप करने के
लिए नींद नहीं आई, सारी रात सोया नहीं
क्या किया है ?
रात नींद नहीं आई । कुकर्म करने जा रहा है। कुकर्म करना, पाप कर्म करने के लिए नींद नहीं आई । सारी रात सोया नहीं । क्या किया है ? ब्रह्म मुहूर्त थोड़ा पहले कर दिया है । मानो जैसे महर्षि गौतम की आंख खुली, उसे लगा बहुत जल्दी सवेरा हो गया है । थोड़ा प्रकाश सा इस प्रकार का कर दिया और महर्षि गौतम स्नान के लिए चल पड़े । जाते-जाते स्नान करने के लिए अभी नदी तक पहुंचे नहीं, रास्ते में ही देखा मुझे गलती लगी है । यह समय स्नान करने का नहीं, वापस मुड़ आए । वह सब कुछ तो इंद्र ने माया के अनुसार किया हुआ था । माया का जाल रचा हुआ था । उस वक्त प्रभात नहीं थी अभी ।
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