Premium Only Content
Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।
((1059))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५७६(576)*
*WHO AM I (मैं कौन हूं)* *(आत्मबोध) याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन*
*भाग -८*
यही एक ढंग है देवियो सज्जनो आत्मसाक्षात्कार का ।यह जितने भी साधन है, चाहे अखंड राम नाम स्मरण है, चाहे कुछ भी है, प्राणायाम करता है, योगाभ्यास करता है, कर्मयोग करता है, भक्तियोग करता है, ज्ञान योग करता है, जितनी भी साधनाएं हैं,
सब का एक ही लक्ष्य है अपने मन को मौन, स्थिर, शांत करना । जब मन ऐसा हो जाता है, उसी को आत्मा कहा जाता है ।
कैसी भेद की बात है, उसी को आत्मा कहा जाता है । मानो वह आत्मा जो हर वक्त सोच विचार में डूबा रहता है, उसे मन कहते हैं । जिसकी सोच विचार सारी खत्म हो जाती है, जिसका मन निश्चल हो जाता है,
फिजूल की उधेड़बुन खत्म हो जाती है जिसकी,
शांत हो जाता है, जो चंचल नहीं रहता, अचंचल हो जाता है, जो अस्थिर नहीं रहता, स्थिर हो जाता है, उस मन को मन नहीं कहा जाता, उसे आत्मा कहा जाता है ।
मानो मन नाम की कोई चीज अंदर है ही नहीं। यह आत्मा ही है, जो मनन करता है तो मन बन जाता है, चिंतन करता है तो चित्त बन जाता है । मानो इस आत्मा के अतिरिक्त और इस देह में और कुछ है ही नहीं । वह देह है, या फिर आत्मा हैं बससससस ।
*वह परम ब्रह्म परमात्मा ज्योति रूप में, आत्मिक रूप में हमारे भीतर विराजमान है । वत्स, वह ज्योति पांच तत्वों से ढकी हुई है। उन तत्वों को, उन परतो को आदमी जब एक एक करके तोड़ता जाता है, तब ज्योति के दर्शन होते हैं । ज्योति सदा जगमगाती रहती है । उसमें तेल, घी, बाती, इत्यादि डालने की आवश्यकता नहीं । स्वयं ज्योतिर्मयी है वह ज्योति । आत्मिक ज्योति, स्वयं ज्योतिर्माण है । उसको किसी बाह्य प्रकाश की आवश्यकता नहीं । उसे मोमबत्ती की जरूरत नहीं, दीपक की जरूरत नहीं, लालटेन की जरूरत नहीं, सूर्य की जरूरत नहीं, चंद्रमा की जरूरत नहीं, सितारों की जरूरत नहीं । उसे बाह्य प्रकाश की जरूरत नहीं । वह स्वत: प्रकाश है । वह अपने आप में ही जगमगाने वाली ज्योति है । ना घी चाहिए, ना तेल, ना बाती चाहिए । वह हर वक्त जगमगाती है । हां, पांच तत्वों से ढकी हुई है, cover है । ऐसे ही मानिएगा जैसे एक बल्ब है । उस बल्ब के ऊपर एक घड़ा बांध दिया जाए अच्छी तरह से, तो लाइट तो जल रही है लेकिन उस घड़े में से कुछ दिखाई नहीं दे रहा आपको । मानो अंधकार ही अंधकार हो गया है ।*
सबसे पहली layer बाहर से शुरू करते हैं, सबसे पहली layer पृथ्वी तत्व की layer है, इससे लोभ की उत्पत्ति होती है ।
संत महात्मा बड़े सरल ढंग से हम सब को समझाते हैं, वह ज्योति किन तत्वों से ढकी हुई है । सब से बाहर बड़ी मोटी परत है, यह बड़ी मोटी layer है । जैसे आपको घड़े उदाहरण दी है, घड़ा ऊपर से बांध दिया जाए, अंदर जितनी मर्जी रोशनी होगी, बाहर निकल नहीं सकती । किसी भी ढंग से नहीं निकल सकती । पहली layer, बाहर की layer, बड़ी मोटी layer है । लोभ की layer है । हम लोभ के बारे में चर्चा नहीं करेंगे । आप जानते हो इससे अंदर की layer, दूसरी layer जल तत्व की है । इससे मोह की उत्पत्ति होती है । एक ही से मोह हो सकेगा मेरी माताओं सज्जनो । संतों महात्माओं के टोटके बहुत याद रखने योग्य। या संसार से, या परमात्मा से ।
very clear. जब तक संसार के प्रति मोह बना रहेगा, तब तक परमात्मा के साथ मोह नहीं हो पाएगा ।
Be sure about it.
दूसरी, तीसरी हम बाहर से अंदर आ रहे हैं । तीसरी layer, पहली पृथ्वी तत्व, दूसरा जल तत्व ।
तीसरी layer अग्नि तत्व की है । इससे क्रोध की उत्पत्ति होती है । क्रोधी स्वभाव वाला व्यक्ति कभी अपने आपको जान नहीं सकेगा, कभी परमात्मा के समीप तक नहीं पहुंच सकेगा । क्रोध करने वाले व्यक्ति से परमात्मा भी घबराता है । इसे दूर ही रखो। इसे दूर ही रहना चाहिए, इसे मेरे पास नहीं फटकना चाहिए । क्यों ?
मैं मौन हूं, मैं शांत हूं, मैं हर वक्त आनंदित हूं। मैं नहीं चाहता कि मेरे आनंद एवं मेरी शांति में कोई खलल आकर मचाए, और क्रोधी हर एक के जीवन में, अपने जीवन में भी और दूसरों के जीवन में भी खलल ही खलल पैदा करने वाला व्यक्ति हुआ करता है, क्रोधी ।
चौथी परत वायु तत्व । इससे काम की उत्पत्ति होती है । चार layers हो गई ।
अंतिम परत संत महात्मा कहते हैं बहुत बारीक है । बिल्कुल ज्योति के साथ लगभग चिपकी हुई, जुड़ी हुई, बहुत पतली, आकाश तत्व । इससे अहंकार की उत्पत्ति होती है । यह सब कुछ खत्म हो जाए,
यदि वह जो साथ जुड़ी हुई बड़ी बारीक layer है, वह बनी रहती है, तो भी आत्मज्योति जो है, वह प्रकट नहीं होती ।
तो देवियो सज्जनो साधना का लक्ष्य हुआ अपने आप को निर्विचार करना, निर्विचार तो बाद की बात है, अपने आप को निर्विकार करना । निर्विकार हो जाओगे तो अपने आप निर्विचार हो जाओगे । तो लक्ष्य क्या हुआ साधना का ? अपने आपको निर्विकार करना। इन विकारों को एक-एक करके छोड़ते जाना ही साधना का लक्ष्य है ।
यही साधना की प्रगति है ।
कैसे जानोगे कौन सा विकार बाकी रह गया है, कौन से छूट गए हैं ।
इनको देखते रहना, निहारते रहना इन को । छोड़ते जाना ही साधना में प्रगति के चिन्ह हैं। तो यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा इस प्रसंग को । धन्यवाद ।
-
LIVE
Jeff Ahern
46 minutes agoThe Sunday Show with Jeff Ahern
150 watching -
4:41
Sean Unpaved
22 minutes agoNFL Week 8 Eye Openers
-
37:00
Tactical Advisor
1 hour agoNew Budget Honeybadger/Glock Discontinues All Models | Vault Room Live Stream 043
49.4K1 -
LIVE
GritsGG
4 hours agoQuads Win Streak Record Attempt 28/71 ! Top 70! Most Wins in WORLD! 3744+!
245 watching -
LIVE
Total Horse Channel
5 hours ago2025 IRCHA Derby & Horse Show - October 26th
156 watching -
4:23:33
BBQPenguin_
5 hours agoBattlefield 6 - Battle Royale Waiting Room
9.83K -
13:49
Clintonjaws
20 hours ago $53.05 earnedWOW Trump Just Said He's Doing This To Canada
53.3K68 -
3:40:40
EXPBLESS
6 hours agoWAKE UP WITH BLESS WE GAMIN SON 🫡
9.59K1 -
2:04:59
LFA TV
2 days agoTHE RUMBLE RUNDOWN LIVE @9AM EST
78.7K23 -
MrR4ger
7 hours agoDEMONS VS ANGELS - THE BORNLESS W/ TONYGAMING (LILSHAWTYSTREAM)
9.72K