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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1056))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५७३(573)*
*WHO AM I(मैं कौन हूं)*
*(आत्मबोध )याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन*
*भाग-५*
वह आत्मा क्या है ? परमात्मा ही आत्मा के रूप में हम सब के हृदयों में विराजमान है । मृत्यु तो साधक जनों अवश्यंभावी है । इस आत्मा के बारे में बहुत जानकारी गीता जी में है । स्वामी जी महाराज ने भी गीता सार के अंतर्गत लिखी है, उपनिषदों के अंतर्गत भी लिखी है, हर साधक को पढ़नी चाहिए । कल भी आप जी से अर्ज की थी,
जब तक व्यक्ति देह बुद्धि नहीं छोड़ता,
जब तक उसकी देह बुद्धि खत्म नहीं होती, जब तक व्यक्ति अपने आप को देह मानना बंद नहीं कर देता,
अपने असली स्वरूप को जान नहीं लेता,
मैं आत्मा हूं, अजर हूं, अमर हूं, मुक्त हूं, अविनाशी हूं, शुद्ध हूं, प्रबुद्ध हूं, आनंद स्वरूप हूं,
जब तक अपने असली स्वरूप को वह जान नहीं लेता,
तब लाखों करोड़ों की संख्या में किया हुआ जप भी आपको शांति, परमानंद नहीं दे पाएगा । जिंदगी में अभाव आपको खटकता ही रहेगा, इतनी महत्वपूर्ण है यह जानकारी ।
संत महात्मा समझाते हैं, बहुत सूक्ष्म है । कल आप जी से अर्ज की थी इसकी तुलना, आत्मा की तुलना विद्युत शक्ति से electricity से की जा सकती है । बल्ब जलता हुआ दिखाई देता है, लेकिन बिजली दिखाई नहीं देती, जिसके कारण बल्ब जल रहा है । यह बल्ब रोशनी दे रहा है, यह ट्यूब रोशनी देती हुई दिखाई देती है, लेकिन जो रोशनी दे रही है, वह दिखाई नहीं देती,
जिसे बिजली कहा जाता है, electricity, विद्युत शक्ति कहा जाता है । ठीक ऐसे ही आत्मा है । यह शरीर तो दिखाई देता है चलता, फिरता, बोलता, काम करता, सब कुछ करता दिखाई देता है, लेकिन जिस शक्ति से यह शरीर चल रहा है, वह शक्ति अव्यक्त है । उसे आत्मा कहिए, उसे परमात्मा कहिए, एक ही बात है ।
वहीं परमात्मा हमारे शरीर में विद्यमान है, सूक्ष्म है । दुख-सुख, भूख-प्यास दिखाई तो नहीं देते, महसूस होते हैं । कहते हैं इसी प्रकार से यह आत्मा सूक्ष्म होने के नाते दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस होता है। इसलिए इसकी अनुभूति कहा जाता है, दर्शन कम कहे जाते हैं, अनुभूति कहा जाता है । यह अनुभव करने की चीज है, कि यह आत्मा है और वह मैं हूँ । मैं देह नहीं हूं, मैं इंद्रियां नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं, मैं बुद्धि नहीं हूं, मैं प्राण नहीं हूं ।
यह साधक जनो यह जप राम राम की तरह निरंतर हमारे अंदर चलना चाहिए । बहुत लंबा अभ्यास चाहिए, तब जाकर तो आदमी को वास्तविक अनुभूति होती है अपने अस्तित्व की, अपने स्वरूप की मैं क्या हूं ? इस स्वरुप को जानना ही जीवन का
लक्ष्य है ।
शबरी को भगवान श्री कहते हैं -
अरे भामिनी ! जानती है मेरे दर्शन का परम लाभ क्या है ? व्यक्ति अपने स्वरुप में स्थित हो जाता है । उसको अपने स्वरूप का तत्काल बोध हो जाता है, मैं इनका अंश हूं, जो मेरे सामने खड़े हैं । मैं यह जड़ शरीर नहीं हूं, मैं यह नश्वर शरीर नहीं हूं । मैं वह नहीं हूं जिस को जलाकर राख कर दिया जाता है । मैं तो अजर अमर आत्मा हूं, उस परमात्मा का अंश ।
इस शरीर का विस्मरण होना चाहिए और परमात्मा का, आत्मा का सदा स्मरण होना चाहिए । राम राम करना अर्थात परमात्मा का स्मरण करना एवं संसार का विस्मरण करना ।
पूज्य पाद स्वामी जी महाराज से अंतिम दिनों में जब वह बीमार थे, जैसे वृद्ध अवस्था साधक जनों हर साधक पर अनिवार्य है, बाल अवस्था आती है, यौवन आता है, अनिवार्य अवस्था । वृद्धावस्था हर एक पर आकर रहेगी, यदि वह उससे पहले मर नहीं जाता तो । उससे पहले मर जाता है तो वृद्धावस्था नहीं आती । अन्यथा हर युवक पर, हर बालक पर, वृद्ध अवस्था आकर रहेगी । चौथी अवस्था है मृत्यु । यह ज्ञान की बातें हैं, समझने की बातें हैं, याद रखने की बातें हैं । यह संभव है कि जिंदगी में व्यक्ति अंधा ना हो, बहरा ना हो, दुखी ना हो, शोक ग्रस्त ना हो, लेकिन किसी की मृत्यु ना हो यह संभव नहीं है ।
सब कुछ अनिश्चित है, मृत्यु निश्चित है, इसमें कोई शक नहीं है । यह चौथी अवस्था है,
जो इन अवस्थाओं को जानने वाला है,
देखने वाला है, यह कहने वाला है,
अनेक वर्ष पहले मैं बालक था, उसके बाद मेरे ऊपर जवानी आई, उसके बाद फिर वृद्धावस्था आई, अब मृत्यु की तैयारी है;
जो यह बोलने वाला है, वह है आत्मा, वह है परमात्मा ।
जो यह कहता है मैं रात बहुत गहरी नींद सोया । कौन है यह कहने वाला ? तू तो सोया पड़ा है, शरीर तो सोया पड़ा है, मन भी सोया पड़ा है, फिर कौन है यह बोलने वाला, जो यह जानता है कि तू गहरी नींद सोया, सारी रात करवटें बदलता रहा, नींद नहीं आई सारी रात स्वप्न में व्यतीत हो गई । जो यह बोलता है, वह आत्मा है ।
स्वामी जी महाराज से कोई पूछने की हिम्मत करता स्वामी जी महाराज आप की तबीयत कैसी है ? बड़ों से यह बातें पूछी नहीं जाती, ना ही बड़ो को यह बधाई दी जाती है congratulations जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई ! बड़ी हिम्मत चाहिए ऐसे लोगों को ऐसा करने के लिए । आप मित्र नहीं हो ।
यह मित्र मित्र आपस में बात करते हैं या हाल पूछने वाला बड़ा होना चाहिए जो छोटे से हाल पूछता है । बड़े से नहीं, और खासकर स्वामी जी महाराज से, स्वामी जी महाराज से ऐसी बात पूछने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए । स्वामी जी महाराज तत्काल पूछते आप डॉक्टर हो ? अरे, जिस शरीर को मैं भूलने की चेष्टा कर रहा हूं, आप मेरा हाल पूछ कर उसे मुझे याद दिला रहे हो । आप मेरे मित्र हो या मेरे शत्रु । डांट देते थे, फटकार देते थे । यह डॉक्टर का काम है, तुझे क्या करना है, मैं कैसा हूँ ।
क्या करेगा जानकर ?
एक साधक को साधक जनों ऐसा ही होना चाहिए, पक्का । मुझे शरीर को याद नहीं करना है । मुझे अपने सद्स्वरूप को याद रखना है, कि मैं देह नहीं हूं ।
कल इस चर्चा को और आगे जारी रखेगें ।
है तो रूखी सूखी चर्चा, लेकिन देवियो सज्जनों इसके बिना निर्वाह नहीं है । इसका बोध जितनी जल्दी जिसको हो सके, उसे अपने आप को बहुत भाग्यवान समझना चाहिए । उसे अपने आप को परमात्मा की कृपा का पुण्य पात्र समझना चाहिए । शुभकामनाएं मंगल कामनाएं ।
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