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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj ji
परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1055))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५७२(572)*
*WHO AM I(मैं कौन हूं)*
*(आत्मबोध )याज्ञवल्क्य का आत्मदर्शन*
*भाग-४*
पूज्य पाद स्वामी जी महाराज ने आज गार्गी की चर्चा की है । उपनिषद से है यह कथा । जिस देश का वर्णन किया गया है, जिस पारब्रह्म परमात्मा का महर्षि याज्ञवल्क्य ने वर्णन किया है, वहीं परम ब्रह्म परमात्मा आत्मा के रूप में हमारे सब के हृदय में विराजमान है । उसी आत्मा की चर्चा चल रही है । “Who am I” मैं कौन हूं ? यह जानकारी का हो जाना ही आत्मा का साक्षात्कार है, भगवद् साक्षात्कार है, इसकी जानकारी से ही जीवन सफल हो जाता है, सार्थक हो जाता है, व्यक्ति मुक्त हो जाता है, जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है, सारे दुखों से छुटकारा मिल जाता है । मात्र जानकारी से । कितनी महत्वपूर्ण है यह जानकारी । आखिर भक्तजनों यह आत्मा है क्या ? आज चर्चा इस बात पर शुरू करते
हैं ।
दो चार दिन पहले हंसता खेलता व्यक्ति, स्वयं भी हंसता है, दूसरों को भी हंसाता है । बहुत प्रसन्न चित्, घर का आत्मा जानने वाला व्यक्ति, आज लाचार बेबस हस्पताल में पड़ा हुआ है । कहते हैं ICU में दाखिल है। बनावटी मशीनें लगी हुई है, हाथ पांव बंधे हुए हैं । किस लिए, रस्सी जंजीर से नहीं मशीनों की ट्यूबो से बंधे हुए हैं । यहां भी ट्यूबे लगी है, नाक में भी ट्यूब लगी है, मुख में भी ट्यूबे लगी हुई है । एक जिंदगी लाचार, बेबस अस्पताल में पड़ी हुई है । दो-चार दिन पहले हंसती खेलती जिंदगी थी, घूमती फिरती जिंदगी थी ।
वह कौन है, जिससे हम बोलते हैं,
वह कौन है जिसकी शक्ति से हम चलते हैं, देखते हैं, उठते हैं, बैठते हैं,
वह कौन है जिसकी शक्ति से हम भोजन करते हैं । किस की शक्ति से भोजन पचता है, बनाया जाता है, परोसा जाता है,
वह कौन है ?
क्या हुआ है इस जिंदगी को ?
अचानक बेबस हो गई है । रोज काम पर जाता था । सुबह जल्दी निकलता था, रात को लेट आता था । इतना कर्मठ था, इतना अच्छा काम करने वाला था, घर को संभाले हुए था । आज अचानक क्या हो गया है । अभी कोई वृद्धावस्था तो नहीं है । आज क्या हो गया है इसको । ना यह बोल रहा है, ना यह आंखें खोल रहा है । पता नहीं सुन रहा है कि नहीं सुन रहा । यदि सुन रहा है तो आगे से कोई प्रतिक्रिया नहीं है । एक व्यक्ति देखने के लिए जाता है । एक नहीं अनेक संबंधी, मित्र देखने के लिए जाते हैं । जाकर उसे बुलाते हैं, राम राम कहते हैं । उच्च स्वर से भी कहते हैं, कान में भी कहते हैं । आंख खोलने की कोशिश करता है, आंख खुलती नहीं है । अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने की चेष्टा करता है, प्रसन्नता व्यक्त नहीं कर सकता । हाथ हिलाने की चेष्टा करता है तो हाथ बंधे हुए हैं, ट्यूबे लगी हुई, cannula लगा हुआ है, हाथ हिलाने की इजाजत नहीं है, हिला भी नहीं सकता । क्या हुआ है इस जिंदगी को ? इस हृदय को गतिशील रखने के लिए एक बनावटी मशीन लगी हुई है । सांसे भी बनावटी है, हृदय गति भी बनावटी है । मानो बनावटी जिंदगी जी रहा है यह
शव । है तो शव बन गया हुआ, लेकिन जिंदगी जी रहा है । किस के बल पर, बनावटी मशीनों के बल पर ।
एक के बाद एक व्यक्ति जाता है, देखता है जाकर । देखने वाला भी बेबस महसूस करता है । इतना ही कहता है, माथे पर हाथ रखता है, क्षमा करना, हम तेरे लिए कुछ नहीं कर सकते । इस वक्त ईश्वर के सिवाय तेरा और कोई मददगार नहीं है । वह व्यक्ति भी मानो उसे सुनाई दिया है, वह व्यक्ति भी सिर हिलाने की कोशिश कर रहा है । जो यह कह रहे है, बिल्कुल सही कह रहे हैं । इस वक्त वह ईश्वर को मानने वाला है कि नहीं मानने वाला है, इस बात को छोड़िएगा, लेकिन इस वक्त वह भी स्वीकार कर रहा है, ईश्वर के सिवा इस वक्त और कोई मददगार नहीं है ।
व्यक्ति, मित्र, संबंधी माथे पर हाथ रख कर तो चले जाते हैं । अचानक थोड़ी देर के बाद सूचना मिलती है, मशीनें चलने बंद हो गई हैं। आंख सदा के लिए बंद हो गई है । वह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो गया है । सदा के लिए सो गया है, जिसके कारण यह जिंदगी है, उसे आत्मा कहा जाता है । जिसके निकल जाने से यह जिंदगी शव हो जाती है, उसे आत्मा कहा जाता है । अपने घरों में भी देखो देवियो सज्जनो आप कहते हो ना, अमुक व्यक्ति इस घर का आत्मा है, मानो हर चीज उससे पूछकर हो रही है । हर चीज उसकी supervision में हो रही है, उसकी अनुमति से हो रही है । मानो उसके बिना घर में कुछ नहीं होता । ऐसे व्यक्ति को आप कहते हो ना, यह घर का आत्मा है । मृत्यु के बाद मरना है, मर जाता है तो आप कहते हो इस घर का आत्मा था, अब वही चला गया, तो इस घर में कुछ नहीं रहा ।
वैसा ही आत्मा इस शरीर में है । जब वह आत्मा इस शरीर से निकल जाता है, परमात्मा से जाकर मिल जाता है, तो वह शरीर शव हो जाता है । ना हाथ हिलते हैं, ना आंख खुलती है, ना मुख बोलता है, ना सांस चलती है, ना हृदय की गति होती है । मानो कुछ भी नहीं होता । सब कुछ stand still हो जाता है, शरीर अकड़ जाता है । दो चार लोग मिलकर तो,10-15 लोग मिलकर तो इसे शमशान घाट ले जाते हैं । क्या हुआ है, जिसके कारण यह जीवन है, उसे आत्मा कहा जाता है ।
वह आत्मा क्या है ? परमात्मा ही आत्मा के रूप में हम सब के हृदयों में विराजमान है । मृत्यु तो साधक जनों अवश्यंभावी है । इस आत्मा के बारे में बहुत जानकारी गीता जी में है । स्वामी जी महाराज ने भी गीता सार के अंतर्गत लिखी है, उपनिषदों के अंतर्गत भी लिखी है, हर साधक को पढ़नी चाहिए । कल भी आप जी से अर्ज की थी,
जब तक व्यक्ति देह बुद्धि नहीं छोड़ता,
जब तक उसकी देह बुद्धि खत्म नहीं होती, जब तक व्यक्ति अपने आप को देह मानना बंद नहीं कर देता,
अपने असली स्वरूप को जान नहीं लेता,
मैं आत्मा हूं, अजर हूं, अमर हूं, मुक्त हूं, अविनाशी हूं, शुद्ध हूं, प्रबुद्ध हूं, आनंद स्वरूप हूं,
जब तक अपने असली स्वरूप को वह जान नहीं लेता,
तब लाखों करोड़ों की संख्या में किया हुआ जप भी आपको शांति, परमानंद नहीं दे पाएगा । जिंदगी में अभाव आपको खटकता ही रहेगा, इतनी महत्वपूर्ण है यह जानकारी ।
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