Shiv Mahapuran Episode 62 वीरभद्र और महाकाली full shiv puran हिंदी में शिव पुराण @sartatva

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Shiv Mahapuran Episode 62 वीरभद्र और महाकाली full shiv puran हिंदी में शिव पुराण @sartatva

शिवपुराण रुद्रसंहिता, द्वितीय (सती) खण्ड - अध्याय ३२

वीरभद्र और महाकाली हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण देवी-देवता हैं, और वे विशेष अवसरों पर या विशेष कार्यों के लिए प्रकट होते हैं।

वीरभद्र भगवान शिव (महादेव) के भयानक रूप रूप में जाने जाते हैं। उनकी प्रकटि भगवान शिव के अधीन उनके शूल और त्रिशूल धारी अवतार के रूप में होती है। वीरभद्र को साधारणतः देवी दुर्गा की क्रोधभद्र या रुद्र भद्र के रूप में भी जाना जाता है। वे दुर्गा देवी के द्वादश अवतारों में से एक माने जाते हैं। वीरभद्र की प्रकटि नवरात्रि के दौरान होती है, जब मां दुर्गा असुर रक्षसों पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रकट हुई थीं। वीरभद्र उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए उनके साथ उपस्थित होते हैं और शक्ति के अपार स्रोत भगवान शिव से प्राप्त करते हैं।

महाकाली मां दुर्गा की एक अवतारिण हैं और भगवान शिव की सहस्त्रभुजा रूपिणी हैं। महाकाली भगवान शिव की भयानक शक्ति के रूप में जानी जाती हैं, जो अधर्म को नष्ट करने और सत्य को स्थापित करने की शक्ति है। उनके प्रत्यक्ष दर्शन भक्तों के लिए सांत्वना देने, शक्ति और साहस प्रदान करने, और दुर्भावनाओं और अनाधिकृत कार्यों का नाश करने के लिए होते हैं। उनकी प्रकटि भगवान शिव और देवी दुर्गा के साथ मिलकर उन्हें उनके साधकों की सहायता करने के लिए होती है।

इन देवी-देवताओं के प्रकट होने के पीछे विभिन्न कथाएं और पौराणिक कथाएं हैं, जो उनके महत्व और उपास्यता को समझाती हैं। यह भारतीय परंपरा और धरोहर में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और देवी-देवता की शक्ति और प्रेम का प्रतीक हैं।
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गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्ष पर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना

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ब्रह्माजी कहते हैं – नारद! वह आकाशवाणी सुनकर सब देवता आदि भयभीत तथा विस्मित हो गये। उनके मुख से कोई बात नहीं निकली। वे इस तरह खड़े या बैठे रह गये, मानो उन पर विशेष मोह छा गया हो। भृगुके मन्त्रबल से भाग जाने के कारण जो वीर शिवगण नष्ट होने से बच गये थे, वे भगवान्‌ शिव की शरण में गये। उन सब ने अमित तेजस्वी भगवान्‌ रुद्र को भलीभाँति सादर प्रणाम करके वहाँ यज्ञ में जो कुछ हुआ था, वह सारी घटना उनसे कह सुनायी।

गण बोले – महेश्वर! दक्ष बड़ा दुरात्मा और घमंडी है। उसने वहाँ जाने पर सती देवी का अपमान किया और देवताओं ने भी उनका आदर नहीं किया। अत्यन्त गर्व से भरे हुए उस दुष्ट दक्ष ने आपके लिये यज्ञ में भाग नहीं दिया। दूसरे देवताओं के लिये दिया और आपके विषय में उच्च स्वर से दुर्वचन कहे। प्रभो! यज्ञ में आपका भाग न देखकर सती देवी कुपित हो उठीं और पिता की बारंबार निन्दा करके उन्होंने तत्काल अपने शरीर को योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। यह देख दस हजार से अधिक पार्षद लज्जावश शस्त्रों द्वारा अपने ही अंगों को काट-काट कर वहाँ मर गये। शेष हम लोग दक्ष पर कुपित हो उठे और सबको भय पहुँचाते हुए वेगपूर्वक उस यज्ञ का विध्वंस करने को उद्यत हो गये; परंतु विरोधी भृगु ने अपने प्रभाव से हमें तिरस्कृत कर दिया। हम उनके मन्त्रबल का सामना न कर सके। प्रभो! विश्वम्भर! वे ही हम लोग आज आपकी शरण में आये हैं। दयालो! वहाँ प्राप्त हुए भय से आप हमें बचाइये, निर्भय कीजिये। महाप्रभो! उस यज्ञ में दक्ष आदि सभी दुष्टों ने घमंड में आकर आपका विशेष रूप से अपमान किया है। कल्याणकारी शिव! इस प्रकार हमने अपना, सती देवी का और मूढ़ बुद्धिवाले दक्ष आदि का भी सारा वृत्तान्त कह सुनाया। अब आपकी जैसी इच्छा हो, वैसा करें।

ब्रह्माजी कहते हैं – नारद! अपने पार्षदों की यह बात सुनकर भगवान्‌ शिव ने वहाँ की सारी घटना जानने के लिये शीघ्र ही तुम्हारा स्मरण किया। देवर्षे! तुम दिव्य दृष्टि से सम्पन्न हो। अतः भगवान्‌ के स्मरण करने पर तुम तुरंत वहाँ आ पहुँचे और शंकरजी को भक्तिपूर्वक प्रणाम करके खड़े हो गये। स्वामी शिव ने तुम्हारी प्रशंसा करके तुमसे दक्षयज्ञ में गयी हुई सती का समाचार तथा दूसरी घटनाओं को पूछा। तात! शम्भु के पूछने पर शिव में मन लगाये रखने वाले तुमने शीघ्र ही वह सारा वृत्तान्त कह सुनाया, जो दक्षयज्ञ में घटित हुआ था। मुने! तुम्हारे मुख से निकली हुई बात सुनकर उस समय महान्‌ रौद्र पराक्रम से सम्पन्न सर्वेश्वर रुद्र ने तुरंत ही बड़ा भारी क्रोध प्रकट किया। लोक संहारकारी रुद्र ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक उस पर्वत के ऊपर दे मारा। मुने! भगवान्‌ शंकर के पटकने से उस जटा के दो टुकड़े हो गये और महाप्रलय के समान भयंकर शब्द प्रकट हुआ। देवर्ष! उस जटा के पूर्व भाग से महाभयंकर महाबली वीरभद्र प्रकट हुए, जो समस्त शिवगणों के अगुआ हैं। वे भूमण्डल को सब ओर से व्याप्त करके उससे भी दस अंगुल अधिक होकर खड़े हुए।

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