Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

11 months ago
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परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1046))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५६३(563)*
*राजा जनक*
*भाग-३*

बहुत-बहुत धन्यवाद, हार्दिक धन्यवाद। ग्वालियर एवं हांसी के साधना सत्संग के लिए जिन्होंने नाम दिए थे, स्वीकृत नामों की सूची बाहर लगी हुई है, मेहरबानी करके देखते जाइएगा ।
पूज्य पाद स्वामी जी महाराज राजा जनक की चर्चा को जारी रख रहे हैं । अभी कुछ दिन और जारी रखेंगे । आप जी से निवेदन किया जा रहा था कि राजा जनक को वीतराग क्यों कहा जाता है । संसार के प्रति जिस का राग नहीं है, जिसकी आसक्ति नहीं है, वह वीतराग । राजा जनक को विदेह कहा जाता है । मानो इनको, जो महानतम आसक्ति शरीर के साथ व्यक्ति को हुआ करती है, वह नहीं है । यहीं से सारी आसक्तियों की उत्पत्ति होती है । इन्हें देह के साथ आसक्ति नहीं । अतएवं इस देह के साथ, इसके संबंधियों के साथ भी आसक्ति नहीं । इस देह को सुख सुविधाएं देने वाली वस्तुओं से भी आसक्ति नहीं । क्योंकि अगर देह के साथ ही आसक्ति नहीं,
एक मुख्य बात हम सब कहां फंसे हुए हैं इस देहासक्ति के प्रति । हमें सब कुछ अपना देह ही देह दिखाई देता है ।

स्वामी जी महाराज कहते हैं यह भावना जन्म जन्मांतर से चली आ रही है, कोई आज की भावना नहीं और बड़ी पक्की हो गई है । बेचारा आत्मा आकर इस देह में फंस जाता है । मेरी छोटी बुद्धि, मैं तो कुसंग कहता हूं । उस आत्मा को इस देह का कुसंग मिल गया और इस कुसंग के कारण वह भी अपने आप को देह मानने लग जाता है । इसे देहाभिमान कहा जाता है । यही से साधक जनों अविद्या का आरंभ और दुखों का आरंभ होता है । महा अज्ञानता यह कि व्यक्ति अपने आप को देह मानने लग जाता है, जो वह है नहीं । यह उसका वास्तविक स्वरूप नहीं ।
राज ऋषि राजा जनक इन सब बातों से बहुत ऊपर उठ चुके हुए हैं । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ।

आज तीन साधक अपने आप को वीतराग कहने वाले तपस्वी, बड़े भारी तापस, निर्जन जंगल में तपस्या करने वाले, वहीं कुटिया बनाई हुई है, वहीं रहा करते । राजा जनक की महिमा सुनी, तो बहुत चकित हुए । हमने संसार से दूर रहकर भी वह कुछ नहीं पाया, राजा जनक के लिए सुनने में आता है । दर्शन करने चले । उनकी ख्याति को सुनकर, उनकी महिमा एवं उनकी उपलब्धि को, आध्यात्मिक उपलब्धि को, भौतिक उपलब्धियां नहीं । राजा जनक की महिमा यही है देवियों सज्जनों, उनके पास भौतिक उपलब्धियां भी अनंत है, और उतनी ही अनंत हैं उनके पास अलौकिक उपलब्धियां। A very rare combination ऐसा अक्सर होता नहीं है ।

डॉक्टर डॉक्टरी में ही खोया रहता है । उसे आध्यात्मिक उपलब्धियों की या अध्यात्म में उन्नति की कोई चिंता नहीं हुआ करती ।अपने जीवन को सफल बनाने की कोई चिंता नहीं है । एक डॉक्टर को इसी बात की चिंता है कि उसकी डॉक्टरी किस प्रकार से flourish होनी चाहिए । किस प्रकार से भी उसका कामकाज बढ़ना चाहिए । किस प्रकार से उसकी ख्याति और बढ़नी चाहिए इत्यादि इत्यादि, ultimately पैसा ही इसके पीछे होता है, यश मान भी इसके पीछे होता है ।

राजा जनक परमेश्वर की कृपा के पुण्य पात्र हैं । अतएवं उन्हें इन भौतिक उपलब्धियों के साथ बिल्कुल कोई आसक्ति नहीं । अनासक्त राजा जनक, वीतराग राजा जनक, महिमा सुनी, संत दर्शन करने के लिए आए हैं । कहते हैं जिस वक्त वह महल में पहुंचे, उस वक्त राजा जनक नाच देख रहे थे । मन में शंकाओं का सिलसिला शुरू हो गया । बहुत सुन कर आए थे हम, यह तो नाच गाने में व्यस्त हैं । राजा जनक ने सब कुछ जानते हुए भी मस्त, अतएव उनके रहने की व्यवस्था महल में ही कर दी । आप महल में ही रहे । नहीं नहीं हम वीतराग हैं, हम महल में नहीं रहते । हमें यह नाच गाना अच्छा नहीं लगता । हमें नहीं देखना यह सब कुछ । हम तो कुटिया में रहने वाले हैं । राजा जनक ने उनकी वैसी ही व्यवस्था कर दी, जैसा वह चाहते थे । हुकम ही तो करना था । राजा जनक मालिक हैं, अपने नौकरों को हुक्म दिया कुटिया जल्दी से जल्दी तैयार कर दी जाए, इनके रहने की व्यवस्था कर दी जाए ।

राजा जनक, देवियों सज्जनों देखो यह है वास्तविक आध्यात्मिक उपलब्धि, भौतिक किसी चीज की कमी नहीं, अध्यात्म किसी चीज की कमी नहीं, उसके बाद भी राजा जनक इतने विनम्र हैं, यह सर्वोच्च उपलब्धि है । कहते हैं उन तीनों के दर्शनार्थ राजा जनक रोज रथ पर जाया करते । राजा जनक जाते हैं, याज्ञवल्क्य से उपदेश सुनते हैं । तरह-तरह का उपदेश वह संत करते । उन्हें माया मोह से रहित रहने के लिए उपदेश देते हैं । राजा जनक मुस्कुरा देते हैं । उपदेश ग्रहण करने के लिए शब्द कैसे हैं, उपदेश ग्रहण करने के लिए राजा जनक उनके पास दर्शनार्थ रोज जाते हैं, तरह तरह की चर्चा होती है ।

आज चर्चा चल रही थी पदार्थों की नश्वरता पर । राजा जनक जैसा व्यक्ति उनके उपदेश सुनने के लिए, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए रोज रथ पर आते हैं । तन्मय होकर बैठते हैं, तो वक्ता को अभिमान ना आए कैसे हो सकता है । अतएव वह तीनो के तीनो अभिमान के शिकारी हो गए हुए हैं अभिमान की पकड़ में आ गए हुए हैं ।

आज चर्चा का विषय पदार्थों की नश्वरता। उसी वक्त किसी व्यक्ति ने आकर कहा महाराज कुटिया में कोई ऐसा जानवर आ गया हुआ है, वह सब सामान उठाकर तो ले जा रहा है । भागे, कुटिया में । संत ने देखा जो कुछ भी था थोड़ा बहुत, वह तो ले गया। लेकिन लंगोट जो कल पहनना था, चिंता तो उसकी थी ज्यादा । कल क्या पहनेंगे ? तो उसे उन्होंने उठाया तो जरूर, लेकिन जमीन पर ही फेंक गए । प्रसन्न हुए । उचित स्थान पर लंगोट को डालकर जो कुछ भी करना था, पुन: आ गए । राजा जनक प्रतीक्षा कर रहे हैं । महानता के बाद महानता देखिए, राजा जनक तीनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।चर्चा फिर जारी हुई । क्षमा भी मांगी । राजा जनक ने बीच में व्यवधान पड़ा, क्षमा कीजिएगा, अपना दोष कोई नहीं, लेकिन उसके बावजूद भी क्षमा मांगी है ।

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