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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1044))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५६१(561)*
*राजा जनक पर चर्चा*
*भाग-१*
भक्ति प्रकाश के अंतर्गत राजा जनक के प्रसंग से आज की चर्चा, इससे पहले भक्त कैसा हो, भक्त कौन होता है ? पहले प्रसंग में यह चर्चा की थी । ऐसे भक्त जैसे उन्होंने वर्णन किए, ऐसे भक्तों का बखान स्वामी जी महाराज राजा जनक की चर्चा से शुरू कर रहे हैं । जिसे भगवान के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए, भक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए, वह भक्त । भक्त कौन हैं ?
स्वामी जी महाराज समझाते हैं कैसे भक्तों की चर्चा यहां की है ?
जो हर वक्त भगवान में रमते है वह भक्त,
जो संसार में रमते है वह संसारी ।
यह भगवान की भक्ति भी करते हैं, लेकिन संसार पाने के लिए जो ऐसा करते हैं वह संसारी ।
जो भगवान की भक्ति करते हैं, जिन्हें भगवान चाहिए या उनसे भी बढ़कर भक्ति चाहिए, वह परमात्मा के भक्त । जिनका काम दूसरों का हित ही हित देखना है, वह परमात्मा के भक्त । जिनका काम अपना ही हित देखना है, वह स्वार्थी, वह संसारी । जिनका काम दूसरों को सुख बांटना है, और सुख बांटकर दूसरों को सुखी देखकर प्रसन्न होना, सुखी होना है, वह परमात्मा के भक्त। जो दूसरों को दुख देकर दुखी नहीं होते, सुखी होते हैं, वह संसारी, स्वार्थी ।
संसारी में और भक्त में कितना अंतर है। जिन्हें संसार ही संसार चाहिए वह संसार ही इकट्ठा करते हैं । संसार अर्थात धन इकट्ठा करेंगे, संपदा इकट्ठी करेंगे, नश्वर चीजें इकट्ठी करेंगे, वह संसारी ।
जिन्हें भगवत संपदा चाहिए, जिन्हें संतोष चाहिए, नाम की कमाई चाहिए, सत्कर्मों की पूंजी चाहिए, वह भक्त । संसार में रहते हुए भी जो निर्लेप है, संसार जान ही नहीं सकता कि वह किसके हैं ? मानो संसार को लगता है कि यह सब का है, मेरा है । जितना मेरा है उतना और किसी का नहीं है, वह होता किसी का नहीं । ऐसे निर्लेप, ऐसे वीतराग को स्वामी जी महाराज भक्त कहते हैं ।
स्वामी जी महाराज का अपना जीवन इस प्रकार का, सो ऐसे ही भक्त उन्होंने चुने हैं, चर्चा करी है । रहे हैं संसार में स्वामी जी महाराज, लेकिन निर्लेप रहे हैं, अनासक्त रहे हैं । आज ऐसे ही शब्द राजा जनक के लिए उन्होंने प्रयोग किए हैं । सुंदर शुभारंभ ।
राजा जनक से किसी के मन में प्रश्न उठेगा सब कुछ है, राजाधिराज हैं, पुत्र है, पुत्री है, दोनों ब्याहे हुए हैं, पत्नी है, राजपाट है, सब कुछ है । आप चकित ना हूजिएगा सीता का बड़ा भाई भी था । लेकिन चर्चा नहीं है, कभी समय लगा तो जरूर करेंगे चर्चा । बहुत सीता से भी बढ़कर भाई है सीता का । ब्याह हुआ हुआ है उसका । प्रभु राम से भी आयु में बड़े, सीता से भी बड़े ।
यह बहने जो भाई को कहीं कहीं वीर जी कहती हैं, यह वही से प्रथा चली हुई है । सीता अपने भाई को वीर जी कहा करती
थी । मानो सब कुछ है किसी चीज की कमी नहीं राजा जनक के पास । और क्या चाहिए। जिसके पास सब कुछ है, उसे भगवान की कहां जरूरत महसूस होती है। लेकिन प्रकृति का क्या नियम है, सब कुछ पाकर जो भगवान को नहीं पाता, जो भगवान से जुड़ा नहीं रहता, यह प्रकृति का नियम है, प्रकृति उसे नीचे गिराकर रहती है ।
राजा जनक के साथ ऐसा नहीं हुआ ।
क्योंकि उन्होंने ऐसी गलती की ही नहीं । वह हमेशा परमात्मा के साथ जुड़े रहे । हमें तनिक थोड़ा सा मिलता है, तो हम परमात्मा की जरूरत महसूस करना बंद कर देते हैं, अब हमें परमात्मा की जरूरत नहीं । राजा जनक के जीवन में ऐसा नहीं आया । वह हमेशा परमात्मा से जुड़े रहे हैं, और उनके जुड़ने में नित्य वृद्धि होती रही है । इस वक्त नौबत यह है उन्हें सर्वत्र राम ही राम दिखाई देते हैं । यह प्रगति के चिन्ह हैं । यह उन्नति के चिन्ह है । यह पराकाष्ठा के चिन्ह हैं । हमें संसार दिखाई देता है ।
एक अनजान आदमी खेत में चला जाता है तो उसे घास दिखाई देता है । लेकिन किसान जो समझदार है, वह जाता है तो उसे घास दिखाई नहीं देता । उसे दिखाई देता है यह गेहूं के पौधे हैं ।
अज्ञानियों को, जैसे हम,
हमें संसार दिखाई देता है,
लेकिन जो ज्ञानी है, जो वीतराग है, जो राज ऋषि हैं, जो मनीषी हैं, जो आप्त पुरुष हैं, जो हर वक्त परमात्मा के साथ जुड़े हुए हैं, उन्हें संसार, संसार नहीं दिखाई देता । उन्हें वह भगवान दिखाई देता है । यह संसार भगवान का साकार रूप है, परमात्मा का साकार रूप । दृष्टि बदल जाती है । भक्ति में समर्थ है, आपको एक दिन पहले भी अर्ज की थी, भक्ति ही एक ऐसी है जो बहुत कुछ परिवर्तन कर सकती है । ज्ञान में यह समर्थ नहीं । ज्ञान तो सिर्फ प्रकाशित करता है । जो असली चीज है वह दर्शा सकता है । उदाहरण दी थी ।
यह बोध कि यह रस्सी है या सांप;
आप मामूली सा प्रकाश करते हैं तो यह झट से पता लग जाता है, कि यह रस्सी है या सांप । यह ज्ञान का काम है प्रकाशित करना। जो चीज वस्तुतः है उसे भी दिखा देता है, लेकिन परिवर्तित नहीं कर सकता । परिवर्तन केवल भक्ति कर सकती है । आपका मन भक्ति बदल सकती है, आपकी बुद्धि भक्ति बदल सकती है, आपका जीवन भक्ति बदल सकती है, आपका स्वभाव भक्ति बदल सकती है, यह सब कामना के चिन्ह हैं ।
आप बंधे हुए हैं, आपको को खोल सकती है, परिवर्तन ला सकती है आपके जीवन में। आपको जीवन मुक्त बना सकती है भक्ति । परिवर्तन करने का, बदलने का, भक्ति में ही सामर्थ्य हैं ।
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