Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1019))
धुन:
दर्शन दीजियो आऐ प्यारे
दर्शन दीजियो आऐ
तुम बिन रहियो ना जाऐ प्यारे
दर्शन दीजियो आऐ ।।
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५३६(536)*
*परमात्मा का स्मरण-सिमरन*
*भाग १*
कोटिशय प्रणाम है मेरी माताओ सज्जनो आप सब के श्री चरणों में । असंख्य बार मेरी चरण वंदना स्वीकार कीजिएगा ।
एक सूचना है, 4 से 7 नवंबर तक हरिद्वार में जो साधना सत्संग होने जा रहा है, जिनके नाम स्वीकार हुए हैं उनकी सूची बाहर लगी हुई है । मेहरबानी करके सूची देख
लीजिएगा । जिनके नाम स्वीकार हुए हैं, उनसे करबद्ध प्रार्थना है समय से पूर्व ही हरिद्वार पधारने की कृपा कीजिएगा । जिन साधकों के नाम स्वीकार नहीं हो सके हाथ जोड़कर उन सब से क्षमा की भीख मांगता
हूं । परमेश्वर उन्हें जल्द ही फिर अवसर दें ।
गत रविवार को चर्चा चल रही थी विस्मरण पर, परमात्मा का विस्मरण सबसे बड़ी विपत्ति है और परमात्मा का स्मरण सबसे बड़ी संपत्ति है । परमेश्वर का स्मरण नित्य बना रहना चाहिए, सतत् बना रहना चाहिए । मानो सिमरन परमेश्वर के साथ जुड़ने का एक अमोघ साधन । जो साधक परमेश्वर से जुड़े रहते हैं, प्रसन्नता के स्रोत से, सुख के स्रोत से, शांति के स्रोत से, आनंद के स्रोत से जुड़े रहते हैं, उन्हें यह सब चीजें सरस ही मिलती रहती हैं । कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता । प्रयत्न मात्र इतना ही है उस स्रोत से जुड़ना है, सिमरन के माध्यम से ।
सिमरन साधन है । कहीं भी हैं आप साधक जनो, सिमरन की महिमा ही यही है सिमरन किया नहीं जाता, होता है । कहीं भी आप बैठे हुए हैं, आप दफ्तर में बैठे हैं, आप kitchen में काम कर रही हैं, आप दुकान पर बैठे हैं, हाथों से काम होता है, सिमरन तो हृदय से होता है ।
संत महात्मा ठोक बजाकर स्पष्ट करते हैं, कहीं भी आप बैठे हो, आपके हाथ में कलम है, बड़ी ताकत है । इतना ही कहो परमेश्वर इस कलम से जो लिखवाओ वह तेरी इच्छा हो, परमात्मा का सिमरन है ।
परमेश्वर जो भी बना रही हूं, तेरे लिए बना रही हूं, स्वादु बनाना, तुझे भोग लगाना है, परमात्मा का सिमरन है ।
कितना आसान है परमात्मा का सिमरन । यह स्मरण नित्य बना रहना चाहिए । व्यक्ति निश्चिंत हो जाता है, निर्भय हो जाता है, हर वक्त आनंदित, परमानंदित अवस्था में वह रहता है ।
पिछले रविवार को आप जी ने देखा था एक बुजुर्ग ने क्या कहा है, जो सदा मुस्कुराता रहता, सदा हंसता रहता था । जिंदगी में मुसीबतें कोई कम नहीं आईं । बचपन में ही माता पिता की death हो गई थी । एक अनाथ की तरह पला । युवक हुआ दोनों टांगे कट गई । जिंदगी wheelchair पर बिताई है । लेकिन कभी किसी ने उनके चेहरे को उदास नहीं देखा । हर वक्त मुस्कुराता चेहरा उनका रहता था प्रसन्न । इतना ही कहा करते - परमेश्वर को यह मत बताओ आप की मुसीबतें कितनी बड़ी है, मुसीबतों को यह बताओ कि मेरे पास, मेरा राम कितना बड़ा है । मुसीबत को बताओ तू कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, मेरे राम से तो बड़ी नहीं हो सकती । उसका अनुग्रह मुझे सदा प्राप्त रहा, उसकी कृपा मुझे सदा प्राप्त रही । मुझे जिंदगी में कभी पता ही नहीं लगा कि विपत्ति कब आई और चली गई ।
“गम राह में खड़े थे साथ हो लिए,
जब कुछ बिगाड़ ना सके तो वापिस हो लिए”
ऐसी हालत सिमरन करने वाले की
“गम राह में खड़े थे साथ हो लिए,
जब कुछ बिगाड़ ना सके तो वापिस हो लिए”
उसे पता ही नहीं लगता सब कुछ क्या हो रहा है । मैं परमात्मा की कृपा को याद कर करके तो सदा मुस्कुराता रहता हूं । मुझे विपत्ति, आपत्ती, संकट, दुख, इत्यादि मानो मैंने कभी इन पर विचार ही नहीं किया । कभी मैं इनके साथ चिपका ही नहीं । मुझे कभी इन बातों का कभी बोध ही नहीं हुआ । मैं उस परमात्मा की, उस देवाधिदेव की कृपा को, अनुकंपा को याद कर करके, इतना प्रसन्न, इतना हर्षित होता रहता हूं, कि मुझे यह सब कुछ देखने की जरूरत नहीं महसूस होती ।
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