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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1018))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५३५(535)*
*आत्मिक भावना*
*भाग १४*
*श्री राम शरणम् की महिमा*
*जैसे कल आपसे अर्ज की थी यदि आप भक्ति करना चाहते हो, यदि आप भक्ति की प्राप्ति करना चाहते हो, तो आपको जगह-जगह भटकने की जरूरत नहीं । हां, महत्त्वकांक्षा है, कुछ आप बनना चाहते हैं, औरों को दिखाना चाहते हैं, कुछ भक्ति के अतिरिक्त प्राप्त करना चाहते हैं, तो फिर बेटा आपको यहां जाने की जरूरत, वहां जाने की जरूरत, वहां जाने की जरूरत, वहां जाने की जरूरत । भक्ति प्राप्ति के लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है । कल भी आपसे अर्ज की थी देवी, भक्ति के लिए आदमी को भीतर जाना है । और बहुत भीतर जाना है । बहुत deep जाना है,और deep जाना है, या बेटा ऊपर उठना है । भक्ति के लिए आपको कहीं भी भटकने की आवश्यकता नहीं । जो आपको अंतर्मुखी, इसी को कहा जाता है अंतर्मुखी होना ।*
*देखो परमेश्वर के खेल देखिए, माया के खेल देखिए, प्रकृति के खेल देखिए, हमारी सभी की सभी इंद्रियां बाह्यमुखी हैं । इन सब के द्वार बाहर खुलते हैं । यह बाहर खुलती है, यह बाहर खुलती है, यह बाहर खुलती है, नीचे के दो द्वार बाहर खुलते हैं, यह सारी की सारी इंद्रियां बाह्यमुखी हैं । जहां आकर यह प्रेरणा मिले, इन द्वारों को बाहर नहीं जाने देना, इनको भीतर की ओर मोड़ना है, अंतर्मुखी होना है, इसी को कहते हैं deep जाना और deep जाना और भीतर जाना । जहां आकर देवियों सज्जनों इस बात की प्रेरणा मिलती है, वह ऐसा स्थान श्री रामशरणम ।*
यहा आपको भक्ति करने से इस प्रकार का बल प्राप्त होगा हां, कुछ भौतिक कामनाएं हैं, कुछ और बातें हैं, जीवन में जो आप चाहते हैं, महत्वाकांक्षी हैं आप, आप विशेष बनना चाहते हैं, आप औरों से कुछ पहले पाना चाहते हैं, आपके अंदर धैर्य की कमी है, आपके अंदर प्रतीक्षा करने का साहस नहीं है, तो आप इधर भी जाते हैं, उधर भी जाते हैं, उधर भी जाते हैं, और परमेश्वर की नजरों में गिर जाते हैं । परमेश्वर कहते हैं मूर्ख है, समझा नहीं ।
एक कुआं, कुछ फीट यहां खुदाई हो, कुछ फीट यहां, उससे थोड़ा और गहरा, पहले में आपने 10 फीट खुदाई की, उसके दूसरे में 15 फुट करी, तीसरे में 20 फुट करी, तो आपको कहीं से पानी नहीं मिलेगा । आपने पहले में ही और deep और गहराई में खुदाई करी हुई होती, तो आपको शीतल एवं मीठा जल आपको प्राप्त हो गया होता । यह भक्ति का सिद्धांत है । भक्ति कहती है मुझे प्राप्त करने के लिए आपको जगह-जगह भटकने की जरूरत नहीं ।
आज वेदांत, आज यह Method of Meditation, यह Method of Meditation, यह चीज, वह चीज, इससे कुछ लाभ नहीं होता । परमेश्वर की नजरों में बंदा और पीछे पड़ जाता है । वह बिल्कुल उसे ऐसा महसूस होता है, कि यह किसी काम का नहीं है । यह पक्का नहीं है, यह कच्चा है, ऐसा परमात्मा महसूस करने लग जाता । भक्ति की मांग है और भीतर जाओ, और भीतर जाओ Silence yourself still your mind.
अपने मन को शांत करो, अपने चंचल मन को अचंचल करो, निश्चल करो उसे ।
आप तेजी से जप करते हैं, लंबा करके जप करते हैं, सिर्फ इसी आशा से कि यह मन संसार में ना जाए । एक जगह पर टिका रहे, इसीलिए । अन्यथा कोई ऐसी जरूरत नहीं कोई लंबा चौड़ा करने के लिए । यदि मन अभी चंचल है साधक जनो, तो यही हमें समझना चाहिए कि अभी साधना बहुत पीछे हैं । अभी बहुत साधना करने की आवश्यकता है । केवल शांत मन, अर्थात साफ शीशा, उसी में आपको अपना प्रतिबिंब दिखाई दे सकेगा । यह तो मामूली सी बात है। आप बहुत अच्छी तरह से समझते हो मन की चंचलता खत्म अर्थात मन साफ हो गया, शीशा साफ हो गया तो उसी में परमात्मा प्रतिबिंबित होते हैं । उसी में आत्मा का प्रतिबिंब आपको दिखाई देता है ।
परमात्मा देवियों बिल्कुल स्थिर है परमात्मा का एक नाम है “अच्युत” मानो उन्हें हिलाया नहीं जा सकता । वह इतने कस कर संसार में फंसे हुए हैं, कि स्वयं भी हिल नहीं सकते । इतने deeply fitted हैं वह, इतनी fitting उनकी पूरी है कि वह हिल जुल नहीं सकते । ऐसे पर ध्यान लगाओगे तो मन भी ऐसा ही स्थिर हो जाएगा । जो अस्थिर हैं साधकजनों, जिसे संसार कहा जाता है जो स्थिर नहीं है, जो स्वयं चंचल है, उस पर ध्यान लगाओगे, उसके साथ जुड़े रहोगे, तो आपको जिंदगी में कभी स्थिरता नहीं मिल पाएगी । इसी को मन का भटकना कहते हैं। आज कुछ, आज कुछ, आज कुछ ।
*पहले ही दिन आपसे अर्ज की थी स्वामी जी महाराज एवं पूज्य श्री प्रेम जी महाराज, दोनों ही महाराज श्री की गीता में लिखा होता था, मैं सत्य, नित, शुद्ध, प्रबुद्ध, मुक्त, आनंदमयी आत्मा हूं या यह लिखा होता था अजय, अमर, अविनाशी, मुक्त, शुद्ध, प्रबुद्ध आनंदमयी आत्मा है, वह मैं हूं ।*
*यह दोनों चीजें लिखी हुई होती थी । इसका पाठ बहुत जरूरी । यह आपने आज जो प्रसंग अंतिम पढ़ा है, यह आपका यही स्वरूप है । यह वह अहम नहीं है जिस को त्यागने के लिए कहा जाता है, जो निकृष्ट है, जिसको कहा जाता है इस अहम को मारिएगा, इस "मैं" को मारने की जरूरत है नहीं, इस "मैं" को जगाने की जरूरत है।*
जहां आकर यह प्रेरणा मिली कि मैंने अपनी असली में अर्थात अपनी आत्मा को जागृत करना है, अपनी आत्मा को जगाना है, अपनी आत्मा को परिष्कृत करना है, साफ करना है, सुथरा करना है । आत्मा साधक जनों स्वभाव से मलिन नहीं है । इसके ऊपर हमने तरह-तरह की layers लगाई हैं । देखो ना एक बल्ब है । ग्लोब पहले होते थे, ऐसे ऐसे बने हुए होते । उसके अंदर बल्ब, उसके ऊपर एक कवर चढ़ा हुआ होता था, तरह-तरह के रंग का । उसमें से लाइट आपको दिखाई देती थी । उसको यदि आप साधकजनों किसी और कवर से जैसे काला कपड़ा होता है, या काला कागज होता है, उससे लपेट देते हैं, लाइट तो भीतर जल रही है, लेकिन आपको बाहर कुछ नहीं दिखाई देता । यही हमने अपनी आत्मा का हाल कर रखा हुआ है । इस पर तरह-तरह की layers जमा रखी हुई हैं हमने । अविद्या की, अज्ञानता की, अंधकार की, दुर्गुणों की, विकारों की, कई तरह की, इस रोशनी पर जो हर वक्त जगमगाती रहती हैं, इसे कोई बुझा नहीं सकता, इसे कोई कुछ नहीं कर सकता, सिवाय हमारे; हमने इसके ऊपर तरह-तरह की layers लगा कर रखी हुई हैं, अतएव वह आत्मा बेचारा ।
इतना शक्तिशाली, इतना बलवान, सब कुछ कर सकने वाला, इतना निस्सहाय हो गया है, हमारी गलतियों के कारण, हमारी भूलों के कारण । जहां आकर देवी इस प्रकार की प्रेरणा मिले भक्ति करो और अपने आत्मा को जागृत करो, अपने आप को जगाओ ।
तो देवियों सज्जनों इसी के साथ ही इस प्रसंग को समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । पुन: आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं, आज के इस मांगलिक दिवस पर । धन्यवाद ।
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