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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj l
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।
((1013))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५३०(530)*
*आत्मिक भावनाएं*
*हमारा सदस्वरूप*
*भाग ९*
इसी बीच स्वामी जी महाराज ने शांत भावना भी ली थी ।
तो एक शब्द और आ गया यह सुख दुख तो हुआ, यह शांति क्या है ? तो अंतर होगा । इसे परमानंद कहा जाता है, इसे परम शांति कहा जाता है, तो कुछ ना कुछ तो अंतर होगा, जो अलग शब्द प्रयोग किए हैं ।
स्वामी जी महाराज बड़े सरल शब्दों में समझाते हैं-
कामना का शुभारंभ हुआ, शुभारंभ कह रहा हूं, किसी कामना का शुभारंभ नहीं होता, कामना का आरंभ हुआ तो उसकी पूर्ति तक कामना का आरंभ होना ही बेचैनी । कामना अर्थात चाह आपने देखा ना चाह में आह लगी हुई है साथ । जहां चाह होगी वहां आह भी होगी । मानो वहां बेचैनी वहां दुख होकर रहेगा । किसी भी प्रकार की कामना है, तो कामना शुरू हुई, पूर्ति तक बेचैनी रहती है । उसे दुख कहा जाता है । बड़े सरल शब्दों में समझने की हम कोशिश करते हैं, ताकि जो मुख्य बातें हैं वह याद रहे ।
हमें कोई परीक्षा नहीं देनी, हमें कोई ज्ञानी ध्यानी नहीं बनना है । हमें तो जो सार है वह जानना है । वह क्या है ? तो दुख क्या हुआ ? कामना की शुरुआत हुई दुख की भी शुरुआत हो गई । जब तक उस कामना की पूर्ति नहीं होती मन व्यथित रहता है, बेचैन रहता है ।
संत महात्मा उस बेचैनी को दुख कहते हैं ।
कामना की पूर्ति हो गई ।
बेचैनी खत्म हुई । बेचैनी खत्म होने को सुख कहा जाता है । तो कामना की पूर्ति हो गई तो सुख हो गया देवियों और सज्जनों कामना की निर्वृत्ति हो गई खत्म ।
मत सोचो कामना की निर्वृत्ति हो गई तो सब कुछ खत्म । मैं प्रश्न पूछता हूं यदि कामना की निर्वृत्ति कठिन काम है, अति कठिन काम है, तो कामना की पूर्ति क्या आसान काम है । कौन कामना की पूर्ति कर पाता है, कोई है माई का लाल जो अपनी हर कामना की पूर्ति कर पाएं । नहीं ।
जब तक उसकी कामना नहीं होती, जब तक उसकी इच्छा नहीं होती, जो हमारे भीतर विराजमान है, जब तक वह नहीं चाहता कि इसकी कामना पूरी हो,
तब तक कोई माई का लाल अपनी कामना की पूर्ति नहीं कर सकता ।
तो कामना की निर्वृत्ति हो गई दुख का अभाव हो गया, शांति ।
जहां ना सुख है, ना दुख है दोनों का अभाव है, ऐसी अवस्था को शांति कहा जाता है । उस दिन आप जी से अर्ज की थी, जैसे एक सरोवर है । उसमें आप अनुकूल पत्थर फेंकिये, प्रतिकूल पत्थर फेंकिये, हलचल मचेगी। यदि अनुकूल पत्थर फेंकते हैं तो कुछ अनुकूलता का अनुभव उसमें होता है, तो उसे सुख कहा जाता है ।
यदि प्रतिकूलता का पत्थर फेंकते हैं तो उसमें कुछ प्रतिकूलता आती है, तो उसे दुख कहा जाता है ।
सरोवर का यह स्वभाव नहीं है । यह क्यों हलचल मची पत्थर फेंकने से । सरोवर का स्वभाव क्या है, स्थिर रहता है, शांत रहता है । उसके अंदर किसी प्रकार की कोई waves कोई लहरें इत्यादि नहीं उठती । उस अवस्था को शांति कहा जाता है । यह लहरों का उठना;
चाहे अनुकूल पत्थर मारा, चाहे प्रतिकूल पत्थर मारा, इस लहरों के उठने को ही सुख या दुख कहा जाता है। इन से रहित शांति ।
चित् का स्वभाव भी, हमारे अंदर चित् है, उसके अंदर दुख सुख की अनुभूति नहीं है। आत्मा शांत स्वरूप आपने पढ़ा । उसके अंदर भी शांति है, परम शांति है । परमात्मा कहिए आत्मा कहिए एक ही बात है । साधक जनों वह परमात्मा ही आत्मा के रूप में हमारे अंदर विराजमान है ।
गीताचार्य भगवान श्री कृष्ण स्वयं स्पष्ट करते हैं -
मैं सबके हृदय में विराजमान हूं । तो वह आत्मा शांत है। चित् बिल्कुल शांत है । उसका स्वभाव बिल्कुल शांत है । उसमें सुख-दुख बिल्कुल नहीं है । सुख-दुख बाहर से आते हैं, और इस शांति को ढक लेते हैं । देखो ना स्वभाव यदि शांत है तो हमें इस सुख दुख की अनुभूति कैसे होती है ।
संत महात्मा बड़े सरल शब्दों में समझाते हैं-
सुख-दुख की अनुभूति हमें तब होती है, मानो हमारा शांत स्वभाव बिगड़ता कब है, जब सुख-दुख आकर तो इस शांति को ढक देते हैं । तो हमें दुख का अनुभव होता है या सुख का अनुभव होता है । यह सुख, यह दुख, मिटते हैं तो पुन: आदमी शांत अवस्था में स्थिर हो जाता है ।
यह इतने दिनों की जो चर्चा हो रही है, इतने दिनों से जो स्वामी जी महाराज आत्मिक भावनाएं हमें सुना रहे हैं, पढ़ा रहे हैं, सिर्फ इस बात के लिए कि जहां से आप सुख ढूंढ़ रहे हो वहां सुख नहीं है ।
परमात्मा पर लगाना ही इस जीवन का लक्ष्य है, प्रभु प्राप्ति का साधन है ।
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