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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी मुखारविंद से।
((1004))
धुन:
दे दो राम दे दो राम,
निर्मल वाणी दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
मीठी वाणी दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
राम दे दो राम दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
दिव्य करनी दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
दे दो राम दे दो राम ।।
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५२१(521)*
*भक्ति भगवान के अधीन।*
*भाग १*
पूज्य पाद स्वामी जी महाराज का यह भजन, परमेश्वर से स्वामी जी वरदान मांग रहे हैं, ऐसा वर दीजिएगा मुझे
“एक भक्ति हो भगवन तेरी
दूसरा देव ना देखूं”
अव्यभिचारिणी भक्ति । जहां दूसरा कोई नहीं । अनन्य भक्ति, निष्काम भक्ति, निष्कपट भक्ति, निर्भरा भक्ति । इन सब भक्तियों को मिला दिया जाए तो मिलकर बनती है परा भक्ति, प्रेमा भक्ति । ऐसी भक्ति की प्राप्ति साधक जनों लक्ष्य होना चाहिए हम सबका । अश्रुपूर्ण भक्ति, प्रेमा भक्ति, परा भक्ति, निश्छल भक्ति, सरल भक्ति, सब को मिलाकर एक भक्ति बनती है, परा भक्ति, प्रेमा भक्ति ।
ऐसी भक्ति की मांग परमेश्वर ही पूरी कर सकते हैं, कोई दूसरा नहीं । भक्त के लिए भगवान घोषणा करते हैं -
मैं तेरी भक्ति से नहीं मिलता, मैं तेरे बल से नहीं मिलता, अपने बल से मिलूंगा, जब भी मिलूंगा । मेरी प्राप्ति जब भी तुम्हें होगी, तो मेरे बल से होगी । तेरे बल से नहीं, तेरी साधना से नहीं, तेरी भक्ति से नहीं । करते रहना भक्ति, करते रहना, पुरुषार्थ करते रहिएगा, निर्भर रहिएगा परमात्मा पर । भरोसा परमात्मा पर रखिए, विश्वास उसी पर ।
अपनी भक्ति का बल नहीं, साधना का बल नहीं, बल तेरा परमात्मा । जब तेरी इच्छा होगी । राह देख रहे हैं, पड़े हैं तेरे रास्ते में । जब तेरी कृपा होगी, तभी मिलन होगा । तभी तेरा प्यार मिलेगा, तभी ऐसी भक्ति मिलेगी ।
साधना तो करते ही रहिएगा । साधक जनों हर शुभ दिन, हर उत्सव पर, विशेष प्रार्थना साधक को करनी चाहिए । कहते हैं उन दिनों परमात्मा की विशेष कृपा बरसती है ।
जैसे आज का दिन, कल का दिन था ।
13 तिथि स्वामी जी महाराज का निर्वाण दिवस होता है, मनाया जाता है जप के माध्यम से । जप करते हैं हम, और कुछ करना नहीं आता । दिन रात का जप होता है। तो इन दिनों परमात्मा से विशेष तौर से प्रार्थना करनी चाहिए । अपनी शुद्धि के लिए, भक्ति मांगने के लिए । यह काम वही कर सकेगा साधक जनों । अपने बल से नहीं होता जन्म जन्मांतर की गंदगी अंदर भरी पड़ी है । कैसे साफ होगी ? साफ कर भी लेते हो, धो भी लेते हो, पर फिर कौन से बाज आते हैं । गंदगी भरते जा रहे हैं, और भरती है, और भरती है । कहने को हम भक्ति मांगते हैं । लेकिन भक्ति जैसा कोई कर्म हम नहीं करते ।
शांति चाहते हैं, लेकिन शांति प्राप्ति जैसा कोई कर्म नहीं करते । कर्म सारे अशांति प्राप्ति वाले । तो फिर अशांति प्राप्ति वाले कर्म करके तो, शांति कैसे प्राप्त हो सकती है, भक्ति कैसे प्राप्त हो सकती है । यह मांग फिजूल । परमात्मा ऐसी मांगों को देखता, सुनता, नहीं है ।
धुन:
दे दो राम दे दो राम,
निर्मल वाणी दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
मीठी वाणी दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
राम दे दो राम दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
दिव्य करनी दे दो राम
दे दो राम दे दो राम,
दे दो राम दे दो राम ।।
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