Premium Only Content
Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1003))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५२०(520)*
*सत्संगति की महिमा*
*भाग -२*
सिर्फ संतों महात्माओं के दर्शन किए हैं। भजन पाठ करते हुए उनके दर्शन किए हैं । वृथा तो नहीं जा सकते, अतएव सर्प के काटने से सुधनवा की मृत्यु हो गई है । संतों महात्माओं को अच्छा नहीं लगा । हमारे पास मृत्यु का हो जाना अच्छी बात नहीं लगी। कैसे हिम्मत हुई मृत्यु की, कैसे हिम्मत हुई काल की । भीतर ही भीतर संत महात्मा इस बात को सोचते हैं, पर जाना तो होता ही है । चाहे आप श्री राम शरणम् में बैठे हुए हो, चाहे आप कहीं, मृत्यु का बुलावा तो कहीं भी आ जाएगा । संत के सत्संग में बैठे हो या कहीं और बैठे हुए हो, मृत्यु को इस बात से क्या लेना ? संकोच तो होता है उसे, लेकिन फिर बड़ी सरकार का हुक्म है, हुकम तो उसी का मानना पड़ता है ।
सुधनवा को उसके कर्मों के अनुसार यमराज के सामने पेश किया गया है । यमदूत उसका सारे का सारा हिसाब किताब, चिट्ठा, यमराज को सुनाते हैं । यमराज तत्काल उनको कहते हैं इसे घोर से घोर नरक की यातनाएं दी
जाए । तपती हुई बालू में, रेत में इसे घसीटते हुए, इसे जितनी दूर तक घसीट सको, घसीटते जाओ । आपको आगे उबलते हुए तेल का कड़ाहा मिलेगा, उसमें इसे फ्राई करने के लिए डाल देना । ऐसा ही हुआ । लेकिन परमेश्वर की लीला देखिएगा । तेल, उबलता हुआ तेल, बिल्कुल शीतल हो गया है । नरक में, यमपुरी में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ । सब अचंभित हैं । यमराज ने यह सब कुछ अपनी आंखों से देखा । अतएव बहुत अचंभित, बहुत चकित । यह सब कुछ कैसे हो गया, कुछ समझ में नहीं आ रहा ।
कहते हैं देवियो सज्जनो, उसी वक्त देवर्षि नारद का आगमन होता है । याद किया, आवाहन किया, आगमन होता है ।
वह समझाते हैं यमराज को, देवर्षि नारद समझाते हैं, कहते हैं -
यमराज जी यह नरक की यातनाओं के काबिल उनका पात्र नहीं है । इसने एक महीने तक संतों महात्माओं को भक्ति करते हुए उनके दर्शन किए हैं । निकालिएगा इसको वहां से । बसस इसका यहां से गुजरना ही इसकी सजा थी । यह यक्ष योनि का पात्र बन गया हुआ है । इसे यक्ष योनि दीजिएगा, इसे ऊपर भेजिएगा । ऊपर के लोकों में जाने योग्य हो गया हुआ है । ऐसा ही हुआ ।
आप जी से संत महात्मा इस प्रकार की अर्ज करते हैं, सुधनवा ने मात्र संतों महात्माओं की श्रद्धापूर्वक, प्रायश्चित पूर्वक, पश्चाताप पूर्वक दर्शन किए हैं । मन में ग्लानि अपने पाप की । मैं घोर पापी, यह कितने कितने पुण्य आत्मा है । मानो यह उसे अंतर दिखाई दे रहा है अपने में और उनमें । अतएव आंखें छलक रही है अपने पापों पर अपने पाप कर्मों पर । परमेश्वर ने उसके अनेक पाप धोकर बहा दिए, अनेक पापों को धो दिया। वह सुधनवा, सुधनवा नहीं रहा होगा । काश उसने थोड़ी देर और जिया हुआ होता, तो वह मोक्ष का अधिकारी हो गया होता । उसे सत्संगति मिली हुई होती, तो वह मोक्ष का अधिकारी हो गया होता । कुछ भजन पाठ उसने किया हुआ होता, तो वह मोक्ष का अधिकारी हो गया होता ।
संत महात्मा समझाते हैं साधक जनों, उसने तो कुछ नहीं किया । कहते हैं आप तो बहुत भाग्यवान हो । आप तो परमेश्वर श्री राम का नाम जपते हो, आप सत्संग में जाते हो, भजन कीर्तन करते हो, आप ध्यान में बैठते हो । यदि परमात्मा आपके जन्म मरण के चक्कर को काटकर आपको मुक्ति दे दे तो इसमें यह कौन सी बड़ी बात है, कौन से आश्चर्य की बात है । चर्चा यहां समाप्त
हुई थी ।
आज और आगे बढ़ते हैं । अगले रविवार को इसी चर्चा को आगे जारी रखेंगे । जो संतों महात्माओं ने कहा है, क्या यह सत्य है ? उनकी वाणी गलत तो नहीं हो सकती । लेकिन हम तो प्रमाण चाहते हैं । हम यह चीजें सुनना चाहते हैं, देखना चाहते हैं, कि वाकय ही किसी के साथ ऐसा घटित हुआ है, जो संतों महात्माओं ने कहा है, अपने अनुभव के अनुसार कहा है । क्या प्रमाण है इसका ? एक दृष्टांत के माध्यम से देखिएगा।
भद्र तनु नामक एक ब्राह्मण है । जाति का ब्राह्मण है । बाल्यावस्था में माता-पिता का देहांत हो गया । उनका साया सिर से उठ गया । जवान हो गया है । सत्संग का अभाव, संयमी जीवन का अभाव, मार्गदर्शक कोई जीवन में नहीं मिला, जीवन विषयी हो गया, जीवन बर्बादी की तरफ मुड़ गया । सन्मार्ग की तरफ जाने की बजाए कुमार्ग अपना लिया । कोई ऐसा पाप नहीं जो सुधनवा ने नहीं किया । जीवन व्यसनी हो गया । परस्त्री की चाह, परधन की चाह, जुआ, शराब, सारे के सारे दुर्गुण, जितने आप सोच सकते हो, वह सारे के सारे भद्रतनु के अंदर । नगर के बाहर ही थोड़ी ही दूर एक वैश्य रहती है । बहुत सुंदर । उसके प्रति भद्रतनु आसक्त हो गए हैं । नित्य का आना जाना हो गया । वह वैश्या दिल की बहुत अच्छी है । वह किस मजबूरी में यह सब कुछ कर रही होगी, परमात्मा जानता है। अतएव स्वयं जो कुकर्म करती है उसका भी पश्चाताप करती है और जो भद्रतनु करता है उस पर उसे ज्यादा ग्लानि है । यह मेरे पास क्यों आता है । उसे समझाती है मेरे पास आना पाप है, यह पुण्य नहीं है । इससे तेरा जीवन बर्बाद हो जाएगा । यहां का जीवन भी, और जहां जाना है, वहां का जीवन भी तेरा बिल्कुल बर्बाद हो जाएगा। यह नरक की यातनाएं, घोर से घोर यातनाएं तुझे मिलेंगी । लेकिन इसकी समझ में, युवक की समझ में कुछ नहीं आता ।
आज पिता का श्राद्ध है, श्रद्धा नहीं है । श्रद्धा वाला हृदय नहीं है । श्रद्धा और मन दोनों से वहां बैठा हुआ है, उस वैश्या के पास । अतएव एक मजबूरी से जो कुछ किया जाता है, छुटपुट कर्म किया और भागा उस वैश्य की तरफ । लानत है तेरे ऊपर, आज वैश्या को इस बात का पता था, कि इसके पिता का श्राद्ध है ।
She was very sure कि आज यह ब्राह्मण युवक, ब्राह्मण के घर पैदा हुआ है, इसका आज तक कोई कर्म ब्राह्मण का नहीं है, सिर्फ जाति का ब्राह्मण है, आकृति से मानव है, अमानवीय कर्म इसके, कोई कर्म मानव वाला कर्म नहीं है इसका । क्रूर है हर तरफ से क्रूर । उसे पक्की आशा थी आज यह नहीं आएगा । आज इसके पिता का श्राद्ध है । आखिर ब्राह्मण की संतान है, लेकिन वह श्राद्ध के प्रति श्रद्धा नहीं है, पिता के प्रति प्यार नहीं है । दोनों चीजें वहां टिकी हुई है । अतएव छोटा-मोटा जो कुछ भी करना था, वह कर करा कर, श्राद्ध नहीं बस वैसे ही कुछ किया और चला गया है वेश्या के पास । आज वैश्य ने बहुत लताड़ा है । निर्लज्ज कहीं का, तुझे इस शरीर में क्या दिखाई देता है ?
तू मुझे बता इस शरीर में हड्डी, मांस, रक्त, विष्ठा के अतिरिक्त और कुछ है, मज्जा इत्यादि के अतिरिक्त और कुछ है । क्या तुम्हें दिखाई देता है, जिसके प्रति तुम इतनी बुरी तरह से आकर्षित हो । काश इतना ही आकर्षण यदि तुझे परमात्मा में हो गया हुआ होता, तो वह तेरा जीवन बदल कर रख देते। वह तुम्हें इंसान बना देते, वह तुम्हें भक्त बना देते, और तेरा लोक परलोक दोनों सुधर गए होते । लानत है तेरे ऊपर ।
तेरा पिता आज क्या सोचता होगा, यही सोच रहा होगा तेरे जैसा नालायक पुत्र मेरे घर में पैदा ही ना होता तो अच्छा था । तेरे जैसे नालायक पुत्र के बिना यदि मैं पुत्रहीन होता तो आज अच्छा होता । कम से कम ऐसा तो ना होता कि मैं तेरे कारण नरक की यातनाएं, या पितृलोक में भटक रहा होता । पुत्र ने कुछ नहीं किया, अपने पिता के लिए कुछ नहीं किया ।
आज बहुत गहरा धक्का लगा है, आज बड़ी गहरी चोट लगी है । अतएव जीवन की दिशा बदल गई । आज भद्रतनु यह शब्द, यह शब्द नहीं थे, बड़ा गहरा घाव इन शब्दों ने किया है। मैंने ब्राह्मण होकर अब्राह्मण जैसे कर्म किए हैं । मानव होकर अमानव जैसे कर्म मैंने किए हैं । लानत है मेरे जीवन पर । मुड़कर उस घर की और कभी नहीं देखा। वहां से रोता हुआ बाहर निकला है ।
माताओं कहते हैं वैश्या तो पहले ही तैयार बैठी थी, कब यह मेरा पीछा छोड़े और कब मैं अपना जीवन, भक्तिमय जीवन, बनाऊं। उसने उधर अपने जीवन को बदल लिया, और भद्रतनु इधर अपने जीवन को बदलने के लिए तैयारी में है । समय हो गया है भक्तजनों । अगले रविवार को करेंगे आगे की चर्चा । आज यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद ।
-
1:03:30
A Cigar Hustlers Podcast Every Day
1 day agoEpisode 416 Epstein Files w/Matt Booth
28 -
LIVE
BEK TV
22 hours agoTrent Loos in the Morning - 11/25/2025
188 watching -
LIVE
The Bubba Army
21 hours agoMAJORIE TAYLOR GREENE QUITS! - Bubba the Love Sponge® Show | 11/25/25
1,957 watching -
51:11
ZeeeMedia
14 hours agoBREAKTHROUGH: Nattokinase Dissolves 84% of Amyloid Microclots Within 2 Hours | Daily Pulse Ep 150
25.3K23 -
1:12:22
Coin Stories with Natalie Brunell
22 hours agoArnaud Bertrand on Changing World Order: U.S. vs China, Gold, Bitcoin & Dollar Hegemony
11.6K6 -
40:23
MetatronHistory
1 day agoI REFUSE To Use BCE/CE And Here is Why
8.07K7 -
16:00
Actual Justice Warrior
2 days agoDearborn Muslims Go To WAR With Protesters
6.21K28 -
16:33
Code Blue Cam
4 days agoWhen Begging for No Ticket Backfires Immediately
12.4K16 -
19:22
stateofdaniel
4 days agoPresident Trump STRIKES Back Against Democrats Who Encouraged Military to DEFY Him
18.4K9 -
14:12
itsSeanDaniel
1 day agoThe Dumbest Liberal in Congress Just EMBARRASSED Herself
13.7K11