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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((998))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५१५(515)*
*मन का प्रबोधन*
*भाग-३*
बहुत-बहुत धन्यवाद है प्रभु । एक निवेदन है साधक जनों, कल शाम इंदौर से दिल्ली साधना सत्संग में काफी नाम कटे हैं, अतएव आप सबसे निवेदन है, जो अभी तक साधना सत्संग हरिद्वार नहीं गए, या जिन्हें गए हुए बहुत देर हो गई है, या जिनके नाम दूसरे सत्संग में स्वीकार हुए हुए हैं, और वह पहले में जाना चाहते हैं, ऐसे सभी साधको से निवेदन है, की वह आज जाने से पहले अपने नाम श्रीमती रेनू अग्रवाल जी को लिखाते जाएं । ताकि जाने से पहले स्वीकृति की सूची आप तक पहुंच सके । धन्यवाद ।
“मन के जीते जीत है मन के हारे हार”
बुझा हुआ मन हो साधक जनो, ना कोई सीरियल देखने को मन करता है, ना भोजन ही अच्छा लगता है, ना किसी से बातचीत करनी ही अच्छी लगती है । मानो यह मन कितना महत्वपूर्ण है हमारे जीवन में । आप कहते हो आज कुछ मन बुझा बुझा है ।
क्या हुआ होगा इसको ? आज किसी चीज में रुचि नहीं है । चेहरे पर उदासी है ।
भोजन फीका फीका लग रहा है । खाने को मन ही नहीं कर रहा । आदमी इतना सतर्क होता है, लेकिन उस दिन, हर दूसरी बात भूल जाता है । आप झट से कहते हो आज मन बुझा बुझा है । तो कितना महत्वपूर्ण है यह मन, हमारे जीवन में ।
यही बंधन का कारण है, यही मोक्ष का साधन है । एक ताला, इसकी एक ही कुंजी, उससे ताला बंद भी हो जाता है और उससे ताला खुल भी जाता है, ऐसा है यह मन । बहुत महत्वपूर्ण देवियों सज्जनों हमारे जीवन में इसका roll.
उस दिन चर्चा चल रही थी मन को दर्पण कहा जाता है, बकरा कहा जाता है, घोड़ा कहा जाता है, अनेक सारे नाम इसे दिए जाते हैं । सिर्फ इसे समझने के लिए । यह है नहीं है ऐसा । लेकिन सिर्फ इसे समझने के लिए हम तरह-तरह के इसे नाम देते हैं । उस दिन चर्चा चल रही थी कि मन दर्पण है । चर्चा यूं चली थी आज एक साधक सांसारिक विचारों से जकड़ा हुआ है । अपने गुरु महाराज से अपनी परेशानी व्यक्त करता है । हर साधक की परेशानी है यह । आप इस परेशानी को जान चुके हो या नहीं जान चुके हो, लेकिन परेशानी तो है ।
It exists very much with us.
इसमें कोई शक नहीं है । कोई इन विचारों में खो जाता है, तो enjoy करता है ।
तो कोई दुखी होता है । जिसका लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है, वह अति दुखी
होगा । यह क्या, किन विचारों की उधेड़बुन में मैं फसा हुआ हूं । यह क्यों मैं बार बार इन से घिरता हूं । इनसे छूटूंगा जब तक नहीं, तब तक मेरी अशांति का निराकरण नहीं हो सकेगा । तब तक यह मेरा मन यह चंचल ही रहेगा, यह भटकता ही रहेगा । यह मुझे भी भटकाता ही रहेगा । जन्म मरण के चक्कर में भी फंसा कर रखेगा । अतएव एक समझदार साधक इन विचारों से बहुत दुखी है । होना भी चाहिए तभी बात बनेगी । तभी आप अगला कदम उठा सकोगे । तभी आप ऊपर की एक सीढ़ी और चढ़ सकोगे । नहीं तो वहीं के वहीं रहोगे । साधक जनों इसमें बिल्कुल कोई दूसरी राय नहीं, आप जितना मर्जी जाप कर लो । यदि आपने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, अपने विचारों पर break नहीं लगाई, साधक जनों तो आप बिल्कुल वहीं के वहीं रहोगे, जहां से आपने अपनी साधना का आरंभ किया था ।
एक साधक ने अपनी पीड़ा गुरु महाराज से व्यक्त की है । कहा वत्स मेरे मित्र हैं, एक अमुक स्थान पर । उनके पास जाओ । उनकी दिनचर्या देखना । हो सकता है तुम्हें कोई मार्ग मिल जाए, तुम्हें कोई रास्ता दिखाई दे जाए । यह साधक चला गया है । जाकर क्या देखता है वह मित्र कोई साधु नहीं है । एक सामान्य व्यक्ति है । एक सराय में चौकीदार । मानो सिर मुंडवाया नहीं है, वस्त्र बदले नहीं है, बाल बढ़ाए हुए नहीं है, साधुता का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता, लेकिन देखने से यह साधक है, अतएव दृष्टि एक साधक की है । झट से देखा बहुत सरल है । किसी प्रकार का कोई घमंड इत्यादि नहीं है । बहुत विनम्र है। प्रभावित हुआ ।
आज दिनचर्या देखी है। जितने भी सारे बर्तन हैं, उन्हें इकट्ठा किया । रात को सोने से पहले उन सारे बर्तनों को एक-एक करके मांजता
है । वह भी सो गए । साधक भी सो गया । सुबह उनके साथ ही लगभग जग गया है, क्यों ? दिनचर्या देखनी थी ।
क्या देखता है जिन बर्तनों को रात को मांजा था, उन्हीं बर्तनों को सुबह फिर धो रहा है । एक दिन व्यतीत हुआ, दो दिन व्यतीत हुए, तीन दिन व्यतीत हुए । देखा कि इनका routine यही है । इनकी दिनचर्या में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं है । अतएव बहुत निराश होकर यह व्यक्ति, इन के अंदर कोई ज्ञान का चिन्ह नहीं, कोई भक्ति का चिन्ह नहीं, इनसे मैं क्या सीखूंगा, क्या देखूंगा । अतएव बहुत निराश साधक वापस लौटा है ।
जाकर गुरु महाराज को प्रणाम करता है । कहा महाराज किसके पास मुझे भेज दिया । दिन में ऐसा करते हैं । सुबह उठकर ऐसा करते हैं । बस इसके अतिरिक्त कोई उनकी दूसरी दिनचर्या, मैंने कोई उन्हें जाप करते नहीं देखा । ध्यान में बैठे नहीं देखा । उन्हें स्वाध्याय करते नहीं देखा । अपना नाक मुंह सिकोड़ते नहीं देखा । मैंने ऐसा कुछ करते नहीं देखा उनको । आपने कैसे आदमी के पास मुझे भेज दिया ।
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