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Shiv mahapuran episode 57 दक्ष के यज्ञ को किसने श्राप दिया ? shiv puran reading @sartatva
Shiv mahapuran episode 57 दक्ष के यज्ञ को किसने श्राप दिया ? shiv puran reading @sartatva
शिवपुराण - रुद्रसंहिता, द्वितीय (सती) खण्ड - अध्याय २७
दक्ष के द्वारा महान् यज्ञ का आयोजन, उसमें ब्रह्मा, विष्णु, देवताओं और ऋषियों का आगमन, दक्ष द्वारा सबका सत्कार, यज्ञ का आरम्भ, दधीचिद्वारा भगवान् शिव को बुलाने का अनुरोध और दक्ष के विरोध करने पर शिव-भक्तों का वहाँ से निकल जाना
ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! एक समय दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आरम्भ किया। उस यज्ञ की दीक्षा लेकर उन्होंने उस समय समस्त देवर्षियों, महर्षियों तथा देवताओं को बुलाया। वे सभी उस यज्ञ में पधारे। अगस्त्य, कश्यप, अत्रि, वामदेव, भूगु, दधीचि, भगवान् व्यास, भारद्वाज, गौतम, पैल, पराशर, गर्ग, भार्गव, ककुष, सित, सुमन्तु, त्रिक, कंक और वैशम्पायन – ये तथा दूसरे बहुसंख्यक मुनि अपने स्त्री-पुत्रों को साथ ले मेरे पुत्र दक्ष के यज्ञ में हर्षपूर्वक सम्मिलित हुए थे। इनके सिवा समस्त देवगण, महान् अभ्युदूयशाली लोकपालगण और सभी उपदेवता अपनी उपकारक सैन्य शक्ति के साथ वहाँ पधारे थे। दक्ष ने प्रार्थना करके सदल-बल मुझ विश्वस्रष्टा ब्रह्मा को भी सत्यलोक से बुलवाया था। इसी तरह भाँति-भाँति से सादर प्रार्थना करके वैकुण्ठ लोक से भगवान् विष्णु भी उस यज्ञ में बुलाये गये थे। शिवद्रोही दुरात्मा दक्ष ने उन सबका बड़ा सत्कार किया। विश्वकर्मा ने अत्यन्त दीप्तिमान्, विशाल और बहुमूल्य दिव्य भवन बनाये थे। दक्ष ने वे ही भवन समागत अतिथियों को ठहरने के लिये दिये। सभी लोग सम्मानित हो उन सम्पूर्ण भवनों में यथायोग्य स्थान पाकर ठहरे हुए थे। दक्ष का वह महायज्ञ उस समय कनखल नामक तीर्थ में हो रहा था। उसमें दक्ष ने भृगु आदि तपोधनों को ऋत्विज् बनाया। सम्पूर्ण मरूद्गणों के साथ स्वयं भगवान् विष्णु उसके अधिष्ठाता थे। मैं वेदत्रयी की विधि को दिखाने या बतानेवाला ब्रह्मा बना था। इसी तरह सम्पूर्ण दिक्पाल अपने आयुधों और परिवारों के साथ द्वारपाल एवं रक्षक बने थे और सदा कौतूहल पैदा करते थे। स्वयं यज्ञ सुन्दर रूप धारण करके दक्ष के उस यज्ञमण्डल में उपस्थित था। महामुनियों में श्रेष्ठ सभी महर्षि स्वयं वेदों के धारण करनेवाले हुए थे। अग्नि ने भी उस यज्ञमहोत्सव में शीघ्र ही हविष्य ग्रहण करने के लिये अपने सहस्त्रों रूप प्रकट किये थे। वहाँ अट्ठासी हजार ऋत्विज् एक साथ हवन करते थे। चौंसठ हजार देवर्षि उद्गाता थे। अध्वर्यु एवं होता भी उतने ही थे। नारद आदि देवर्षि और सप्तर्षि पृथक्-पृथक् गाथा-गान कर रहे थे। दक्ष ने अपने उस महायज्ञ में गन्धर्वों, विद्याधरों, सिद्धों, बारह आदित्यों, उनके गणों, यज्ञों तथा नागलोक में विचरनेवाले समस्त नागों का भी बहुत बड़ी संख्या में वरण किया था। ब्रह्मर्षि, राजर्षि और देवर्षियों के समुदाय तथा बहुसंख्यक नरेश भी उसमें आमन्त्रित थे, जो अपने मित्रों, मन्त्रियों तथा सेनाओं के साथ आये थे। यजमान दक्ष ने उस यज्ञ में वसु आदि समस्त गणदेवताओं का भी वरण किया था। कौतुक और मंगलाचार करके जब दक्ष ने यज्ञ की दीक्षा ली तथा जब उनके लिये बारंबार स्वस्तिवाचन किया जाने लगा, तब वे अपनी पत्नी के साथ बड़ी शोभा पाने लगे।
इतना सब करने पर भी दुरात्मा दक्ष ने उस यज्ञ में भगवान् शम्भु को नहीं आमन्त्रित किया। उनकी दृष्टि में कपालधारी होने के कारण वे निश्चय ही यज्ञ में भाग पाने योग्य नहीं थे। सती प्रजापति दक्ष की प्रिय पृत्री थीं तो भी कपाली की पत्नी होने के कारण दोषदर्शी दक्ष ने उन्हें अपने यज्ञ में नहीं बुलाया। इस प्रकार जब दक्ष का वह यज्ञ-महोत्सव आरम्भ हुआ और यज्ञ-मण्डप में आये हुए सब ऋत्विज् अपने-अपने कार्य में संलग्न हो गये, उस समय वहाँ भगवान् शंकर को उपस्थित न देख शिवभक्त दधीचि का चित्त अत्यन्त उद्विग्न हो उठा और वे यों बोले।
दधीचिने कहा – मुख्य-मुख्य देवताओ तथा महर्षियो! आप सब लोग प्रशंसापूर्वक मेरी बात सुनें। इस यज्ञ-महोत्सव में भगवान् शंकर नहीं आये हैं, इसका क्या कारण है? यद्यपि ये देवेश्वर, बड़े-बड़े मुनि और लोकपाल यहाँ पधारे हैं, तथापि उन महात्मा पिनाकपाणि शंकर के बिना यह यज्ञ अधिक शोभा नहीं पा रहा है। बड़े-बड़े विद्वान कहते हैं कि मंगलमय भगवान् शिव की कृपादृष्टि से ही समस्त मंगल-कार्य सम्पन्न होते हैं। जिनका ऐसा प्रभाव है, वे पुराण-पुरुष, वृषभध्वज, परमेश्वर श्रीनीलकण्ठ यहाँ क्यों नहीं दिखायी दे रहे हैं? दक्ष! जिनके सम्पर्क में आने पर अथवा जिनके स्वीकार कर लेने पर अमंगल भी मंगल हो जाते हैं तथा जिनके पंद्रह नेत्रों से देखे जाने पर बड़े-बड़े नगर तत्काल मंगलमय हो जाते हैं, उनका इस यज्ञ में पदार्पण होना अत्यन्त आवश्यक है।
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