Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((997))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५१४(514)*
*मन का प्रबोधन*
*भाग-२*

एक संत आज सत्संग में रुमाल लेकर गए हैं, और सभी से पूछते हैं; ऐसे करके बच्चो बताओ यह क्या है ? सभी ने कहा गुरु महाराज रुमाल है । किस काम आता है ? सभी ने बताया इस काम के लिए आता है, मुख साफ करना हो, हाथ साफ करने हो, पसीना आ गया है, उसे साफ करना हो, कोई गंदगी है उसे साफ करने के लिए रूमाल का प्रयोग होता है । शाबाश, गुरु महाराज बहुत प्रसन्न, बहुत सही उत्तर आपने दिया ।

गुरु महाराज सत्संग में बैठे बैठे ही साधक जनो उस रुमाल पर अनेक गांठें लगा देते हैं, और कहते हैं अब क्या है ? कहते हैं रुमाल ही है गुरु महाराज । क्या यह काम अभी भी पोछने का, सफाई का कर सकता है, कि नहीं कर सकता । सभी ने कहा महाराज अब यह वह काम तो नहीं कर सकता, क्यों इसमें गांठें पड़ गई हैं । यह गांठें यदि खोल दी जाए, तो रुमाल फिर सदुपयोग किया जा सकता है । उसका सही उपयोग किया जा सकता है । अपने मन रूपी दर्पण में भी साधक जनो हमने इसी प्रकार की गांठें डाल रखी हुई है । इसी प्रकार की गंदगी रखी हुई है, की मन का जो सही उपयोग होना चाहिए, जो सदुपयोग होना चाहिए, वह हम नहीं कर पाते । वह मन अतएव विषयासक्त है, और काम तो वह बहुत करता है, लेकिन जो काम मन को करना चाहिए, जो काम मन को देना चाहिए, वह दे नहीं पाता क्यों ? उसके अंदर विकार आ गया हुआ है, वह विकृत हो गया हुआ है ।

आज किसी साधक ने अपने गुरु महाराज से कहा - महाराज जिस वक्त भी ध्यान में बैठता हूं, मेरे अंदर एक विचारों का बहुत सा भंडार पैदा हो जाता है, एक बवंडर सा उठ जाता है । सिर्फ ध्यान के वक्त ही नहीं, दिन भर भी मेरी यही हालत है । मैं अमृतवाणी का पाठ करता हूं, उस वक्त भी मैं सिर्फ अमृतवाणी का पाठ नहीं करता । यूं तो मैं जप करता हूं, उस वक्त भी मैं सिर्फ जप नहीं करता । मेरे अंदर तरह-तरह के भौतिक विचार उठते रहते हैं ।

इसी को मन का भटकना कहा जाता है । मानो यूं कहो गुरु महाराज मैं इतना इन विचारों से ग्रस्त हूं, इन विचारों से इतना दुखी हूं, कि मुझे लगता है कि मैं पागल सा हो जाऊंगा । हर छोटी सी बात मुझे इतनी चुभती है, हर छोटी सी बात मुझे इतनी याद रहती है, कि मैं कभी उसे भूल नहीं पाता । जो बीती हुई बातें हैं उनको तो छोड़िएगा, वह तो हर वक्त मेरे सिर पर सवार रहती है, वह हर वक्त मेरे मस्तिष्क में रहती है, हर वक्त मेरे मन में रहती हैं, इसलिए साधक जनो मन को A bundel of thoughts कहा जाता है । मन नाम का कोई आकार, कोई organ हमारे शरीर में नहीं है ।
It is just a bundels of thoughts
संत महात्मा जो विशेषज्ञ है मन के,
यह घोषणा करते हैं
Mind is nothing but a bundle of thoughts.
इन्हीं विचारों से भरा हुआ कुछ गुच्छा है उसे मन कहा जाता है ।

हमारे अंदर मस्तिष्क तो हैं, आँखें तो हैं, हृदय तो है, जिगर है, गुर्दे हैं, हाथ पांव हैं, यह तो organs हैं, लेकिन मन रूपी कोई organ, डॉक्टर बैठे हैं यहां पर उनसे पूछ कर देखिएगा आप, वह आपको बताएंगे कि मन रूपी कोई organ हमारी body में, हमारे शरीर में नहीं है ।
It is just a bundle of thoughts.

शिष्य कहता है गुरु महाराज मुझे लगता है मैं बर्बाद हो जाऊंगा । कहने को मैं जप बहुत करता हूं, ध्यान में बैठता हूं, सुबह शाम बैठता हूं, अमृतवाणी का पाठ भी करता हूं, जो कुछ आप कहते हैं, मैं सब कुछ करता हूं, उसके बावजूद भी इन विचारों पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है ।
It is a predictable condition. दयनीय दशा, सबकी जिस किसी भी है । देवियो सज्जनो वह दयनीय है, वह दया के पात्र हैं । उन्होंने जाप तो किया है, लेकिन अपने मन को नहीं संभाला । अपने मन पर break नहीं लगाई । अपने विचारों पर break नहीं लगाई । आप सोचो आप गाड़ी drive करते हो, आप सब कुछ उसमें कर सकते हो, सब कुछ हो सकता होगा, आज कल gear बदलने की जरूरत नहीं पड़ती, अपने आप बदली जाती है, लेकिन break तो आप ही को लगानी पड़ती है ।
Break अपने आप नहीं लगती । तो यूं कहिएगा आपने कभी अपने विचारों पर break नहीं लगाई ।

आपके पास साधन, स्वामी जी महाराज ने बड़ा बलवान साधन दिया हुआ है । अति बलशाली साधन दिया हुआ है । अतएव स्वामी जी महाराज फरमाते हैं, जाप इस तरह से करो, इतना करो, कि यह आपके विचारों में बस जाए । मानो वह सांसारिक विचार आपको ग्रस्त ना करें । आप हर वक्त भगवद विचारों में खोए रहो, हर वक्त भगवत विचारों में डूबे रहो । जप करो तो सिर्फ जप करो । उस वक्त आप के अंदर worldly thoughts जो हैं, भौतिक विचार जो हैं, वह नहीं आने चाहिए । यह साधक एक बिल्कुल ईमानदार साधक है और हमारी ही तरह का साधक है । जैसे हम हैं। हमारे रोगों का एक कारण यह है देवियो सज्जनो । सच मानिएगा आप, जिनका अपने विचारों पर नियंत्रण है, वह निरोग हो जाएंगे, वह शरीर से भी निरोग हो जाएंगे, और आध्यात्मिक निरोगता भी उनमें आ जाएगी । यह सबसे बड़ा रोग है सांसारिक विचार ।

मन का क्या काम है । सिर्फ यही संकल्प तरह-तरह के इसमें उठते हैं । सब तरह तरह के विकल्प इसमें उठते हैं, उठते हैं, बैठते हैं, उठते हैं, बैठते हैं, उठते हैं, बैठते हैं । मानो jogging सी कर रहे हैं । ताकि व्यक्ति एक ही स्थान पर रहे । कहीं एक पग भी आगे ना बढ़ पाए, इन्हीं विचारों के कारण । आदमी बच्चा है तो विचारों से घिरा है, विद्यार्थी है तो विचारों से घिरा है, युवक है तो विचारों से घिरा है, और बुढ़ापे का तो कहना ही क्या
है । सारे विचार जिंदगी के इकट्ठे होकर तो बुढ़ापे में आकर उसे पकड़ लेते हैं ।
आदमी की हालत और दयनीय । देखो देवियो बीता हुआ याद कर करके उसकी हालत यह हो गई है, कि आदमी उसे enjoy करता है, यह स्मृतियां बहुत अच्छी हैं । अतएव कभी स्मृतियां अच्छी भी होंगी तो कभी यह स्मृतियां दुखदाई भी होंगी । बेहतर यही है की जिस वक्त सुखद स्मृतियां आपको आए तो उनसे सुख ना लीजिएगा ।
उनका मुख मोड़ दीजिएगा । तो आपका दुखद स्मृतियों से बचाव हो सकेगा । नहीं तो कोई नहीं बचाने वाला, साधक जनों कोई नहीं बचाने वाला । कोई नहीं बचाएगा ।

गुरु महाराज, संत महात्मा भी थोड़े समय के लिए तो आपके मन पर नियंत्रण कर देते हैं । अपने बल से, आत्मिक बल से, कुछ समय के लिए आपके मन को रोक देते हैं । लेकिन उसके बाद अभ्यास तो आप ही को करना है, प्रयास तो आप ही को करना है, साधना तो आप ही को करनी है । क्यों ?
मोक्ष आपको चाहिए, क्यों ? बंधन से आप छूटना चाहते हो, गुरु महाराज नहीं, संत
नहीं ।
वह उनका अपना काम है । उन्होंने अपना काम कर दिया हुआ है । आपको साधन दिया है, चलना आपको है, क्यों ? पहुंचना आपको है। यदि वह चलते हैं, तो आप पहुंचोगे नहीं, वह पहुंचेंगे ।

आज एक साधक ने गुरु महाराज से अपनी बड़ी भारी कठिनाई ईमानदारी से स्वीकार करी है । कहा बेटा इसका समाधान मेरे मित्र संत हैं । अमुक नगर में यह उनका address है, इस पते पर चले जाओ । देखते रहना, उनकी दिनचर्या देखते रहना, यदि उनसे कुछ सीख सको तो तेरी समस्या का समाधान तुम्हें मिल जाएगा ।
आज वह शिष्य गुरु महाराज की आज्ञा के अनुसार गुरु महाराज के मित्र के पास चला गया है । मित्र कोई संत नहीं है । मानो पहरावे का संत नहीं है । कोई वेष का संत नहीं है । सिर नहीं मुंडवाया हुआ, कोई बाल नहीं बढ़ाए हुए, कोई कपड़े नहीं बदले हुए । एक साधारण व्यक्ति है । एक सराय में चपरासी का काम करता है । एक peon है, एक care taker कहिएगा, जाकर अपना परिचय दिया । अमुक गुरु महाराज ने मुझे भेजा है । भक्तजनों समय हो गया है । परसों चर्चा आगे करेंगे । आज यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद ।

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